सांसद से ज्यादा कड़ी शर्तें पंचायत चुनाव में क्यों ?

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                                                        फोटो- वीरेंद्र सिंह चौहान

पवन शर्मा

भारत में ग्राम पंचायतें ही लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी होती हैं। देश की बहुसंख्यक जनता का अपने दैनिक जीवन में ग्राम पंचायत से सीधा सरोकार रहता है। कोई भी ग्राम पंचायत तभी प्रभावशाली ढंग से काम कर सकती है, जब इसके सदस्य बौद्धिक दृष्टि से परिपक्व और शिक्षित हों। परंतु अभी तक पंचायतों की बात तो एक ओर, विधान सभाओं और संसद तक के चुनाव लडऩे के लिए भी न्यूनतम शिक्षा की अनिवार्यता निर्धारित नहीं है। इसी को ध्यान में रख कर कुछ राज्य सरकारों ने पंचायत सदस्यों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय करने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं।  राजस्थान सरकार ने गत वर्ष पंचायती राज अधिनियम में संसोधन कर सरपंच पद के लिए न्यूनतम शिक्षा 8वीं पास और पंचायत समिति या जिला परिषद के सदस्यों के लिए 10वीं पास तय कर दी है। इतना ही नहीं ग्राम पंचायत का चुनाव लडऩे वालों के घर में शौचालय होना भी अनिवार्य नियम के तौर पर लागू किया गया।

हरियाणा में पंचायतें भंग कर दी गईं और उनके चुनाव भी होने हैं। इसी बीच हरियाणा सरकार ने पंचायत चुनावों की घोषणा से पूर्व 11 अगस्त को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में ‘हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 1994’ में संशोधन करके पंचायती राज संस्थाओं के सभी स्तरों के निर्वाचित प्रतिनिधियों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक व महिलाओं तथा अनुसूचित जाति के लिए 8वीं पास तय कर दी। संशोधनों के अनुसार जिन व्यक्तियों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले लंबित होंगे और जिनमें उन्हें 10 वर्ष तक कैद की सजा दी जा सकती हो, ऐसे व्यक्ति तब तक पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे जब तक उन्हें अदालत दोष मुक्त करार न कर दे।

एक अन्य संशोधन के अनुसार सहकारी व भूमि बंधक बैंक ऋणों के डिफाल्टर तथा वे व्यक्ति भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, haryana panchayatजिनका बिजली का बिल बकाया हो। चुनाव लडऩे के इच्छुक प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अपने घर में शौचालय होने का स्वप्रमाणित शपथ पत्र देना भी अनिवार्य कर दिया गया है।  पंचायतों के चुनावों को गुटबाजी व लड़ाई-झगड़ों से मुक्त रखने के लिए सर्वसम्मति से अपना चुनाव करने वाली पंचायतों को पहले से अधिक प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय किया गया है।

क्या कहना है हरियाणा सरकार का ?

राज्य सरकार का कहना है कि इस संसोधन से जहां राज्य सरकार को आर्थिक लाभ होने के साथ-साथ इससे राज्य में पंचायत राज प्रणाली में शुचिता और मजबूती आएगी तथा स्वच्छ भारत अभियान को भी बल मिलेगा। इस समय हरियाणा के कुल 6075 सरपंचों में से 1000 और 58608 पंचों में से 20,000 के लगभग अंगूठा छाप हैं। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय कर देने से इस स्थिति में भारी बदलाव होगा और पढ़े-लिखे लोगों को आगे आकर अपने इलाके की ग्रामीण जनता की सेवा करने का सुअवसर मिलेगा।

सरकार के इस संसोधन के पश्चात हरियाणा में पंचायती चुनाव अधर में ही लटक गए हैं। पिछले कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर लगातार सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मुद्दों पर बहस के बाद सुनवाई को 27 अक्तूबर तक के लिए स्थगित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में कई अहम मुद्दों पर बहस हुई। अदालत ने सरकार से कई सवाल पूछे हैं, जिनके जवाब से ही पंचायत चुनावों का भविष्य तय होगा।

15 अक्टूबर की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हरियाणा सरकार से कई सवाल पूछे और टॉयलेट की शर्त पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें नहीं लगता कि कोई अपनी मर्जी से बाहर टॉयलेट जाना चाहेगा। 14 अक्टूबर की सुनवाई में भी कोर्ट ने नई शर्तों पर कई सवाल उठाए थे। इनमें कई सवालों के जवाब सरकार नहीं दे पाई। उसे अदालत से समय मांगना पड़ा था।

हरियाणा विधानसभा की तस्वीर
हरियाणा विधानसभा की तस्वीर

कोर्ट ने सरकार से आंकड़ा मांगा कि, संशोधन पर रोक के बाद कितने उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है और कितने उम्मीदवार योग्य पाए गए। प्रदेश के कितने घरों में शौचालय हैं। सरकार की योजना के तहत कितने घरों में टॉयलेट बनाए गए हैं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकार से पूछा कि प्रदेश में कुल कितने स्कूल हैं। इन स्कूलों में कितने बच्चे पढ़ते हैं। छात्रों को कितनी स्कॉलरशिप दी जाती है। इन तमाम सवालों पर बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 27 अक्तूबर निर्धारित की है।

गौरतलब है कि सरकार के इस फैसले को महिला संगठन AIDWA की जगमती सांगवान ने चुनौती दी थी। जगमती सांगवान ने याचिका में कहा है कि सरकार के इस फैसले से 83 फीसदी दलित महिलाएं चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगी। हरियाणा सरकार ने पंचायती राज कानून में बदलाव लाने संबंधी संशोधन विधेयक विधानसभा में ध्वनिमत से पारित किया था।

क्या कुछ है नए कानून में?

सरकार की ओर से नियमों में संशोधन पर पंचायत चुनाव लड़ने के लिए चार शर्तें लागू की गई थीं। इसमें महिलाओं और एससी वर्ग के लिए शैक्षिक योग्यता 8वीं और बाकी सभी के लिए 10वीं पास कर दी गई हैं। यही नहीं सरकार ने पर्चा भरने से पहले घर में टॉयलेट होना, सहकारी बैंक का लोन और बिजली बिल समेत सभी सरकारी देनदारियों का भुगतान निपटाना व 10 साल की सजा के प्रावधान वाले मामलों में प्रत्याशी का चार्जशीटेड न होना को शामिल कर दिया।

अदालत ने कौन-कौन से सवाल उठाये? 

1.      कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछते हुए आंकड़ा मांगा है कि संशोधन पर रोक के बाद कितने sc
उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है? और कितने उम्मीदवार योग्य पाए गए?

2.      प्रदेश के कितने घरों में टॉयलेट हैं?

3.       सरकार की योजना के तहत कितने घरों में टॉयलेट बनाए?

4.       प्रदेश में कुल कितने स्कूल हैं?

5.       इन स्कूलों में कितने बच्चे पढ़ते हैं?

6.       छात्रों को कितनी स्कॉलरशिप दी जाती है।

इतना ही नहीं इससे पूर्व बुधवार को भी अदालत ने कुछ प्रश्न उठाये थे बिजली बिल पर पूछा- गांवों में बिल देर से पहुंचता है। कोई व्यक्ति बिल भरने से चूक जाता है, उसका एक रुपया बिल है तो क्या वह चुनाव नहीं लड़ सकता?

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मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा

प्रदेश सरकार- अदालत के कई सवालों का मौके पर ही जवाब नहीं दे पाए अटॉर्नी जनरल।

सरकार- पंचायती संस्थाओं, खासकर सरपंच के पास कार्यकारी शक्तियां होती हैं, इसलिए प्रतिनिधियों का पढ़ा-लिखा होना जरूरी है।

अदालत- कार्यकारी शक्तियों के निर्वाहन के लिए क्या 5वीं, 8वीं और 10वीं पास होना ही पर्याप्त है?

अदालत- क्या नगर निकायों में ये शर्तें लागू है?

सरकार- नहीं।

अदालत- एक्ट में संशोधन का प्रावधान किया क्या?

सरकार- नहीं।

अदालत- तो क्या आप सिर्फ गांवों में ही सुधार करना चाहते हैं?

अब मामले में अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी। वहीं केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह ने पंचायत चुनाव में शैक्षणिक योग्यता के सवाल पर कहा कि पढ़े-लिखे लोग आगे आएं, ये अच्छा है लेकिन जिसे वोट डालने का अधिकार है, वो चुनाव भी लड़ सकता है।


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पवन शर्मा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई। 14 साल से टीवी पत्रकारिता में सक्रिय।


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