तीसरे चरण में यूपी की 10 सीटों का पूरा सियासी गणित समझिए

तीसरे चरण में यूपी की 10 सीटों का पूरा सियासी गणित समझिए

gathbandhan
पीयूष बबेले के फेसबुक वॉल से साभार
लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण की वोटिंग से साथ लोकसभा के लिए आधे से अधिक सीटों पर चुनाव हो चुका है, जिसमें यूपी की 80 सीटों में से 26 सीटों पर वोटिंग खत्म हो चुकी है, अभी यूपी में 54 सीटों पर वोटिंग होनी है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा के पहले दो चरण में जहां आठ आठ सीटों पर वोट पड़े वहीं तीसरे चरण में आने वाली सभी 10 सीटें पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी का गढ़ रही हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में इस दुर्ग की छत उड़ गई थी। उस चुनाव में बीजेपी ने 10 में सात सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी पर बहुजन समाज पार्टी का हाथ है। साइकल को मिले हाथी के साथ से इन 10 सीटों पर राजनैतिक समीकरण काफी बदलता नजर आ रहा है।

मुरादाबाद
2009 में मुरादाबाद से भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्ताल मोहम्मद अजहरुद्दीन कांग्रेस के टिकट से जीते थे, लेकिन 2014 में समीकरण पलट गया और यहां से बीजेपी प्रत्याशी 43 फीसदी वोट के साथ विजय हुए और कांग्रेस चौथे नंबर पर चली गई, लेकिन इसी चुनाव में सपा और बसपा के प्रत्याशियों के वोट जोड़ें तो 49.5 फीसदी होते हैं। अगर 2014 की मोदी लहर ज्यों की त्यों कायम रहती है तब भी भाजपा को इस बार यह सीट जीतने के लिए करीब 7 फीसदी अतिरिक्त वोट चाहिए होंगे।

रामपुर
तीसरे चरण की दूसरी महत्वपूर्ण सीट रामपुर है। रामपुर को देश की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाली सीटों में शुमार किया जाता है। भारत में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस की ओर से मौलाना अबुल कलाम आजाद इसी सीट से चुनाव मैदान में उतरे और जीते थे। इस सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस की ओर से रामपुर नवाब खानदान की ओर से बेगम नूरबानो का कब्जा रहा और लंबे समय से यहां सपा नेता आजम खान की तूती बोलती है। इस सबके बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रामपुर सीट पर जीत हासिल की। यहां बीजेपी प्रत्याशी ने सपा प्रत्याशी को 23,000 से अधिक वोटों से हराया था। लेकिन इस बार बीजेपी के लिए सीट बचाना कठिन है। बीजेपी की ओर जयाप्रदा चुनाव मैदान में हैं, जया यहां से दो बार सपा सांसद रही हैं। इस बार उनका मुकाबला सपा के मोहम्मद आजम खान से है। आजम खान के लिए चुनावी गणित में दो सीधे फायदे हैं। पहला यह कि 2014 में बीजेपी यह सीट 34.98 फीसदी वोट पाकर जीती थी, जबकि सपा और बसपा का वोट मिलाकर 46 फीसदी था। दूसरी बात यह कि इस बार कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां को टिकट नहीं दिया है। नवाब निर्दलीय भी मैदान में नहीं हैं। नवाब को पिछले चुनाव में 1.56 लाख वोट मिले थे। यानी बीजेपी के लिए अगर जयप्रदा यह सीट बचा लेती हैं तो उनकी बड़ी कामयाबी होगी।

संभल
संभल
संभल की सीट भी पिछले चुनाव में बीजेपी की झोली में गई थी। बीजेपी ने सपा प्रत्याशी को यहां महज 5,000 वोट से हराया था। 2014 में बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले थे। वहीं सपा बसपा को कुल मिलाकर 57 फीसदी वोट मिले थे। वोटों के पुराने समीकरण में गठबंधन को बढ़त हासिल है। इस सीट को बचाने के लिए बीजेपी को करिश्माई प्रदर्शन करना होगा।

फिरोजाबाद
कांच की चूड़ियों के लिए मशहूर फिरोजाबाद सीट से पिछली बार सपा नेता राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव चुनाव जीते थे। पिछले चुनाव में यहां सपा और बसपा का कुल वोट 59 फीसदी था जबकि बीजेपी को 38 फीसदी वोट मिले थे। सपा को भरोसा है कि वह अपनी सीट कायम रखेगी।

मैनपुरी
मैनपुरी सीट समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पारंपरिक सीट रही है। पिछली बार उन्होंने इस सीट पर 60 फीसदी वोट के साथ जीत हासिल की थी। अगर बसपा के वोट भी जोड़ लें तो गठबंधन को 2014 में 75 फीसदी वोट मिले। बाद में मुलायम सिंह ने आजमगढ़ की सीट बचाकर रखी थी और मैनपुरी से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद इस सीट से सपा नेता तेज प्रताप सांसद बने थे।लेकिन इस चुनाव में मुलायम फिर चुनाव मैदान में हैं। उनके लिए उनकी चिर प्रतिद्वंद्वी मायावती वोट मांग चुकी हैं और नेताजी ने जनता से कहा है कि यह उनका आखिरी चुनाव है। जाहिर है यहां मुलायम सिंह के सामने कोई चुनौती नहीं है।

बदायूं
यादवलैंड की इस सीट पर पिछली बार मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव सपा सांसद बने थे। इस सीट पर 2014 में सपा बसपा का वोट जोड़ दिया जाए तो गठबंधन ने कुल मिलाकर 64 फीसदी वोट हासिल किए थे। बीजेपी को 32 फीसदी वोट मिले थे। इस बार अगर धर्मेंद्र को चुनौती देनी है तो बीजेपी को अच्छी खासी वोट स्विंग की दरकार होगी । जो हुआ या नहीं वो 23 मई को पता चलेगा ।

आंवला
आंवला सीट पर पिछली बार बीजेपी 41 फीसदी वोट हासिल कर जीत गई थी। वहीं सपा बसपा को मिलाकर 46 फीसदी वोट मिले थे। करीब 10 फीसदी वोट कांग्रेस को भी मिले थे। यह सीट इस बार कड़े मुकाबले में रहेगी ।

एटा
अगर मैनपुरी यूपी में सपा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की सीट है तो एटा यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री और अब राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की पारंपरिक सीट है। इस सीट से पिछली बार उनके बेटे राजवीर सिंह आसानी से जीत गए थे। बीजेपी प्रत्याशी राजवीर को पिछले चुनाव में 51.28 फीसदी वोट मिले थे। वहीं सपा और बसपा को कुल मिलाकर 45 फीसदी वोट मिले थे। आंकड़ों में यहां बीजेपी मजबूत है, लेकिन अपराजेय होने के लिए कुछ और भी चाहिए।

बरेली
फिल्मों में अपने झुमके और सौंदर्य में अपने सुरमे के लिए मशहूर बरेली लोकसभा सीट से पिछली बार बीजेपी नेता संतोष कुमार गंगवार चुनाव जीते थे। गंगवार को 51 फीसदी वोट मिले थे। उस चुनाव में सपा बसपा को मिलाकर 38 फीसदी और कांग्रेस को 8 फीसदी वोट मिले थे। इस चरण में बीजेपी के लिए यह फेवरिट सीट है।

पीलीभीत
पीलीभीत बीजेपी के लिए लंबे समय से सुरक्षित सीट रही है। यहां से बीजेपी नेता मेनका गांधी लगातार जीत दर्ज करती रही हैं और पिछली बार भी जीती थीं। मेनका को पिछले चुनाव में 52 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस बार मेनका ने यह सीट अपने बेटे वरुण गांधी के लिए छोड़ दी है। मेनका अपेक्षाकृत कठिन सीट सुल्तानपुर से चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी अपने इस गढ़ को सुरक्षित मान रही है।