पुरुषोत्तम असनोड़ा
उत्तराखण्ड की ‘जनता की राजधानी’ के नाम से विख्यात गैरसैंण में 2 नवम्बर से आयोजित विधान सभा सत्र पक्ष-विपक्ष के हो-हल्ले, आरोप-प्रत्यारोप से आगे नहीं बढ पाया। केवल दो दिनों में सिमट गये सत्र से जनता को जो अपेक्षाएं थीं, वे धूल-धूसरित हो गयीं। सत्र के अंजाम का अंदाज कांग्रेस के अधिवेशन (1 नवम्बर) से ही मिल गया था। इस अधिवेशन में उत्तराखण्ड आन्दोलन के अगुुआ बने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने गैरसैंण राजधानी पर एक शब्द नहीं बोला। गैरसैंण अधिवेशन को शहीदों व राज्य आन्दोलन को समर्पित करने जैसे दार्शनिक जुमलों का उपयोग किया लेकिन राजधानी की मांग को अपनी जुबान नहीं दे सके। किशोर उपाध्याय गैरसैंण को गाहे-बगाहे राजधानी बनाने का शोशा छेड़ते आये हैं।
कांग्रेस अधिवेशन में गैरसैंण राजधानी का कोई प्रस्ताव न आने के बाद से ही लगने लगा था कि सरकार गैरसैंण सत्र को केवल प्रचार तक सीमित रखने वाली है। विधान सभा की कार्यमंत्रणा समिति ने भी दो दिन की ही कार्य योजना बनाई थी। 18 मई 15 को देहरादून में विधान सभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विधान सभा में कम से कम 100 दिन कामकाज की सलाह दी थी। विधान सभा अध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल ने भी कहा था कि वे चाहते हैं गैरसैंण विधान सभा सत्र 10 से 15 दिन का हो।
सरकार अनुपूरक बजट और 10 विधेयक के साथ दो संकल्पों के पारित होने को सत्र की उपलब्धि बता रही है। वहीं, विपक्ष ने सत्र को फिजूलखर्ची और व्यर्थ की कवायद करार दिया है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष सत्र के दौरान और बाद में आयी कटुता का है, जिसका जनता के बीच आना चिंता का विषय है। दरअसल, जो कटुता 2-3 नवम्बर को गैरसैंण में देखी-सुनी गयी, वो एक दिन की उपज नहीं है। देहरादून में वह पिछले 15 सालों से पल-बढ रही है। दोनों दिन एक दूसरी पार्टी के पुतले फूंकने के अलावा जनता के बीच अपशब्दों का प्रयोग और प्राथमिकी दर्ज होने, राज्यपाल को शिकायत करने की नौबत स्थिति की गम्भीरता दिखाती है। विपक्ष को सरकार के साथ ही विधान सभा अध्यक्ष तक पर हमले का मौका मिल गया। इसमें मुख्य मुद्दा जो जन अपेक्षाओं का था, दूर-दूर तक गायब हो गया।
गैरसैंण को जनता की राजधानी क्यों कहा जाता है? गैरसैंण की क्या विशेषता है? ये देखने समझने बहुत से लोग आये थे और सत्र के बाद वे उसकी चर्चा करते रहे। हमने गैरसैंण सत्र में ड्यूटी पर आयी दो महिला कांस्टेबलों से पूछा -आपको गैरसैंण कैसा लगा? दोनों ने ही खुश होकर कहा बहुत अच्छा। एक महिला अल्मोड़ा और दूसरी चमोली से थी, दोनों पहली बार गैरसैंण आयी थी। उत्तरकाशी के एक बुजर्ग कह रहे थे ‘मैं पहली बार गैरसैंण आया हूं और ये देखने कि गैरसैंण कैसा है?’ उनकी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया थी। बहुत से युवाओं से बात हुई जो उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के ज्वार के समय बहुत छोटे रहे होंगे लेकिन उन्हें गैरसैंण राजधानी चाहिए।
गैरसैंण में अपनी मांग रखने आये संगठनों को गैरसैंण नजदीक और सुलभ स्थान लगा। वीरोंखाल जिला बनाओ संघर्ष समिति के लोग 40 वाहनों में भरकर गैरसैंण में प्रदर्शन करने आये थे। पार्टियों ने भी रैली कर अपनी मांग रखी। देहरादून में जो लोग विधानसभा के पास रिस्पना पुल से आगे नहीं जा सकते, वे गैरसैंण में विधान सभा के मुख्य गेट तक पहुंच रहे थे। ग्रामीण जनता को विधान सभा की कार्यवाही देखने या ये कहें कि माननीयों की धींगा-मुश्ती सदन के अन्दर देखने का अवसर मिल गया। घूम-फिर कर फिर वहीं पहुंचें तो पाते हैं कि राज्य अवधारणा का रोना रोने वाले नेता कहीं जनता को बरगला तो नही रहे हैं? भराडी सैंण में विधानसभा, विधायक निवास, सचिवालय बनने के बाद भी क्या नेता-अधिकारी गैरसैंण आना चाहेंगे?
गैरसैंण में हुए पहले सत्र के बाद जनता में उत्साह दिखा था लेकिन दूसरे सत्र के बाद निराशा का भाव है। मुख्यमंत्री हरीश रावत से जब पत्रकारों ने पूछा कि सरकार और विपक्ष यदि गैरसैंण राजधानी पर सहमत हैं तो उसकी घोषणा क्यों नही करते? मुख्यमंत्री चिरपरिचित अंदाज में कहते हैं, सर्व सम्मति बनायेंगे।किसी भी राजनैतिक दल के लिए राजनैतिक लाभ के प्रश्न बड़े होते हैं । क्या राज्य में जनता की अपेक्षाओं की कीमत पर राजनीति होगी?
पुरुषोत्तम असनोड़ा। आप 40 साल से जनसरोकारों की पत्रकारिता कर रहे हैं। मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर के संपादक हैं। आपसे [email protected] या मोबाइल नंबर– 09639825699 पर संपर्क किया जा सकता है।