शिरीष खरे
अस्सी साल के जगदीश सोनी ने अपने तीन बेटों के साथ 15 एकड़ खेत में धान बोया, मगर सूखे से पूरी फ़सल चौपट हो गई। वे बताते हैं कि एक दाना घर नहीं आया। परिवार पर एक लाख का कर्ज चढ़ा है और पटाने के लिए फूटी कौड़ी नहीं है। घर में खाने तक के लाले पड़े हैं। जब उन्हें पता चला कि सरकार की राहत सूची में उनका नाम नहीं है तो फूट पड़े- ‘पटवारी न खेत गया, न मिलने आया, उसने ग़लत लोगों को मुआवजा बांटा, मरना तो है ही, वह सामने आया तो गोली मार दूंगा!’
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से बमुश्किल 25 किमी दूर अछोटी गांव के सैंकड़ों किसानों का यही हाल है। यहां 200 किसानों में सरकार ने महज 99 को ही सूखा राहत का पात्र माना है। सरपंच हेम साहू बताते हैं कि गांव के पास से तांदुल नहर निकलती है, लेकिन इस साल समय पर पानी नहीं छोड़ने से अछोटी सहित नहर किनारे के कई गांवों- नारधा, चेटवा, मुरंमुंदा, ओटेबंध, गोड़ी, मलपुरी आदि- के खेतों की फ़सल 75 फ़ीसदी से ज़्यादा सूख गई।
दुर्ग जिले की कलेक्टर आर संगीता कहती हैं, मुआवजे की लिस्ट में कुछ लोगों के नाम शायद छूट गए हों, लेकिन सर्वे की प्रक्रिया एकदम सही है। सूखे से ख़राब हुई फ़सल के बाद मुआवजा निर्धारण और वितरण के खेल ने प्रदेश के किसानों का दर्द और बढ़ा दिया है। प्रभावितों के लिए आवंटित मुआवजा ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान है, लेकिन इसमें भी धांधलियों का आलम यह है कि चौतरफा शिकायतों का अंबार लग गया है। 25 एकड़ तक के कई छोटे किसानों की 20 से 30 फ़ीसदी से ज्यादा फसल खराब होने पर भी उनका नाम राहत सूची में नहीं हैं। जिनके नाम राहत सूची में हैं वह भी देरी के चलते अधीर हो रहे हैं।
हालत यह है कि किसानों के पास खेतों में बोने के लिए बीज तक नहीं बचे। इसे देखते हुए अगले साल बुआई पर भी ख़तरा मंडरा रहा है। राजनांदगांव, महासमुंद, जांजगीर-चांपा और दुर्ग जिले के गांवों में पहुंचकर सरकारी दावों की पोल खुल जाती है। यहां किसानों के चेहरों पर चिंता, दुख, असंतोष और आक्रोश दिखाई देता है। राज्य ने केंद्र सरकार से सूखा राहत के लिए छह हजार करोड़ रुपए मांगे थे। केंद्र ने 12 सौ करोड़ रुपए का राहत पैकेज आंवटित किया। राज्य सरकार ने करीब 800 करोड़ रुपए की राशि सूखा पीड़ित किसानों को मुआवजा बांटने के लिए रखी।
राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग की माने तो प्रदेश में मुआवजा वितरण का काम पूरा हो चुका है और इससे ज्यादा राशि बांटने की जरुरत नहीं है। विभाग ने सूखा पीड़ितों में सिर्फ 380 करोड़ रुपए की राशि बांटी है। विभाग के सचिव केआर पिस्दा के मुताबिक किसी जिले से सूखा राहत के लिए और अधिक राशि की मांग नहीं आने के बाद यह निर्णय लिया गया है। विशेषज्ञों की राय में सूखा पीड़ितों के लिए सरकार की यह राशि वैसे ही बहुत कम है, उसमें भी इतनी बंदरबांट हुई है कि प्रदेश के लाखों पीड़ित किसानों तक राहत पहुंची ही नहीं है। कई इलाकों में किसानों ने लागत न निकलने के डर से अपनी फसलों को मवेशियों के हवाले कर दिया है। अब ऐसे किसानों को भी शासन सूखा राहत सूची के योग्य नहीं मान रहा।
कई जिलों में किसानों द्वारा राहत राशि में गड़बड़ियों को लेकर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। किसान नेता राजकुमार गुप्ता बताते हैं, ‘सूखा राहत के लिए केंद्र से मिले 12 सौ करोड़ में किसानों को महज 380 करोड़ बांटने का मतलब यह है कि बाकी का 820 करोड़ रुपए सरकार अपनी झोली में डालना चाहती है। सरकार ने यह कमाल मुआवजा वितरण में कई तरह की शर्ते जोड़कर ज्यादातर किसानों को सूची से बाहर करके दिखाया।” एक तथ्य यह भी है कि प्रदेश के करीब दस लाख किसानों के धान नहीं बेचने के बावजूद यदि सरकार नाम मात्र के किसानों को ही सूखा प्रभावित बता रही है तो यह अपने आप में विरोधाभास है।
इस विकट परिस्थिति में प्रदेश के किसानों के सामने अब बड़ा सवाल है कि क्या खाएं और कमाएं? महासमुंद जिले के बागबाहरा, पिथौरा, बसना, झलप, सरायपाली, भंवरपुर क्षेत्र के सैकड़ों परिवार पलायन कर चुके हैं। जांजगीर-चांपा में बलौदा क्षेत्र के मनरेगा मजदूरों का तीन महीने से भुगतान नहीं हुआ है। यहां भी पलायन एक मजबूरी बन गई है। किसानों की फसल खराब होने के कारण उनकी रही-सही सारी जमा भी पूंजी खर्च हो चुकी है। दुर्ग में अछोटी गांव के रिखीराम साहू बताते हैं। ‘गांव का हर किसान भारी कर्ज में डूबा है. कई किसानों के पास तो अगले साल बोने के लिए बीज भी नहीं हैं। ऐसे में अगले साल उन्हें अपने खेत खाली छोडऩे पड़ेंगे।’
(साभार- राजस्थान पत्रिका, रायपुर)
शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति राजस्थान पत्रिका के लिए रायपुर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।
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