हिंदी दिवस और कोपेनहेगन 

हिंदी दिवस और कोपेनहेगन 

कोपेनहेगन

सच्चिदानंद जोशी

7 सितंबर 2017 को कोपेनहेगन में था। थोड़ा तफरी करने के इरादे से विश्व प्रसिद्ध लिटिल मर्मेड की प्रतिमा तक चला गया। वो जगह सचमुच बहुत सुंदर और शांत है ।वही उसके निकट एक चर्च था। उसके द्वार पर लिखा था ” visitors are welcome here “. आम तौर पर ऐसी जगह जहाँ बहुत पर्यटक आते है इस प्रकार के स्थानों पर प्रवेश सीमित ही रखा जाता है। ये चर्च आपको बुला रहा है देखकर आश्चर्य हुआ और मैं अंदर चला गया। ये संत अल्बन का एंग्लिकन चर्च था।कुछ लोग बाहर निकल रहे थे। एक बुजुर्ग अंग्रेज महिला ने चर्च के द्वार पर स्वागत किया और पूछा आप कहाँ से है। जब मैंने बताया भारत तो उन्होंने पूछा हिंदी या इंग्लिश। प्रश्न समझ में नही आया तो उन्होंने सामने अलमारी में रखे सूचना पत्रको की ओर इशारा किया। इन पत्रको में अलग अलग भाषाओ में इस चर्च के बारे में लिखा था।बात समझ में आने पर मैंने कहा हिंदी। उन्होंने हिंदी में छपा सूचना पत्रक मुझे दिया। सात समंदर पार हिंदी का पत्रक देख कर मुझे अपार खुशी हुई। मैं चर्च में बैठ कर उसे पढ़ गया। 1877 में बना यह चर्च अंग्रेजो ने बनाया था। उसका विवरण नीचे दिया है। पत्रक अच्छा लिखा गया था हाँ कुछ वर्तनी की गलतियां थी जो कि स्वाभाविक थी ।

मैंने पत्रक पढ़ने के बाद उन्हें लौटाते हुए उनका आभार किया। इस पर उन्होंने कहा भारत से आने वाले भी ज्यादातर इंग्लिश वाला ही पत्रक मांगते है। उस बहस में न पड़ते हुए मैंने उनसे अनुरोध किया कि यदि वे अनुमति दे तो मैं इस पत्रक की वर्तनी त्रुटिया दूर कर दूँ। मेरा इतना कहना था कि वो प्रसन्नता से उछल पड़ी। उन्होंने अपनी एक और मित्र को बुला कर भी बताया कि ये हज़रत खुद होकर ये सेवा दे रहे है। उन्होंने कहा यदि अभी समय हो तो मैं ये काम अभी ही कर दूँ। मैंने हाँ तो कहा लेकिन असली समस्या टाइपिंग की थी । वहाँ हिंदी टाइपिंग की सुविधा वे कैसे जुटाती । वे दोनों प्रश्न में पड़ गयी। अंततः मैंने सुझाव दिया कि मैं इसकी एक प्रति भारत ले जाता हूँ। मैं दिल्ली 14 सितंबर को पहुँचूँगा जो कि हिंदी दिवस है। संभव हुआ तो मैं दिल्ली पहुँच कर 14 सितंबर को ही यह काम कर दूंगा। उनके लिए तो ये महत्वपूर्ण था कि कोई खुद होकर ये काम करने को तैयार है। मेरे लिए 14 सितंबर भी महत्वपूर्ण थी ।

14 सितंबर की सुबह दिल्ली पहुँच कर सबसे पहले ये काम किया। शाम तक उनके बताए मेल पते पर भेज भी दिया। अब इसका वो क्या करेंगे पता नही। वो मेल के आधार पर उस पत्रक को फिर बना पाएंगे ये भी पता नही। संतोष है कि मैं अपना वादा निभा पाया। यह संतोष है उतना ही जितना रामायण की कहानी में गिलहरी को हुआ होगा।


सच्चिदानंद जोशी। शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की एक पीढ़ी तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। इन दिनों इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स के मेंबर सेक्रेटरी के तौर पर सक्रिय।