बहिनी, गंगाजी के किनारे कईसन लगेला?

बहिनी, गंगाजी के किनारे कईसन लगेला?

पुष्पांजलि शर्मा

शहरों में सियासत के स्वर भले ही इस दंभ में चूर हों कि हमारा गांव बदल रहा है, गांव की महिलाएं सशक्त हो रही हैं। हमारी ग्रामीण सोच बदल रही है और बदल रहा है वह सब जो एक विकासशील देश के लिए अपरिहार्य है लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलहदा है। हांडी के एक दाने के स्पर्शभर से पूरे चावल के भात बन जाने का भान हो जाता है। बसहीं गांव में योगसूत्र ग्राम यात्रा के शिविर के दौरान जो अहसास हुआ, वह परंपरा की आड़ में मानव संवेदनाओं की अनदेखी का जीता जागता उदाहरण है

मैं यह नहीं मानती कि इसमें किसी एक का दोष है लेकिन मैं यह भी नहीं मान सकती कि कभी इसके विरुद्ध कोई स्वर मुखर नहीं हुआ होगा। यह अलग बात है कि वह आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हुई हो। आज मुझे संतोष है कि बसहीं के योग शिविर में विभिन्न आयु वर्ग की जिन महिलाओं ने हिस्सा लिया, उनमें पारिवारिक अनुशासन के बीच चेतना आई है। यही नहीं उनके परिजन भी बदलाव की जरूरत से ठिठकते हुए ही सही इत्तफाक रखने लगे हैं।

बसहीं और आसपास के गांवों की महिलाओं को इतवार की सुबह अनूठी रोशनी के मानिंद नजर आई। 50 से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं ने संभवतः पहली बार सुबह-ए-बनारस देखी। वे अब तक सुनती आई थीं कि पतित पावनी गंगा के किनारे सुबह के वक्त अलौकिक आनंद का संचार होता है। दुनियाभर के लोग इस नजारे को आंखों में बसाने के लिए बनारस आते हैं लेकिन बनारसी महिलाएं इस सुख से अब तक वंचित थीं। इनकी झिझक योग शिविर के दौरान परत-दर-परत खत्म होती गई। मुंह अंधेरे घुंघट के ओट छोड़ लोवर-टीशर्ट में पहुंचकर उजाला होने से पहले ही योगाभ्यास करके घर लौट जानेवाली इन महिलाओं ने एक दिन मुझसे अपनी जिज्ञासा जाहिर की थी। तारीफ करनी होगी इन समर्पित महिलाओं की, जिनकी जिज्ञासा के पीछे छिपे दर्द में किसी के प्रति कोई शिकवा- शिकायत नहीं थी। उन्होंने मुझसे पूछा था- बहिनी, गंगाजी के किनारे कईसन लगेला…। मेरे लिए यह जिज्ञासा चौंकानेवाली ही नहीं हृदय को बेंधनेवाली भी थी। गंगा तट से चंद किलोमीटर दूर रहनेवाली इन स्त्रियों के लिए सुबह-ए-बनारस कौतूक का विषय क्यों होना चाहिए?

बहरहाल, मैंने उसी दिन तय किया कि इन शिविरार्थी महिलाओं को एक दिन गंगाजी जरूर ले जाऊंगी। … लेकिन उनके परिवार के पुरुष सदस्यों को राजी करना एक चुनौती थी। इस चुनौती से निपटने की जिम्मेदारी भी मैंने खुद उठाई और सफल हुई। फिर क्या, सभी महिलाएं इतवार की सुबह गंगा किनारे पहुंचीं। मैं तो उन प्यासी आंखों में रोमांच की चमक पढ़ने का प्रयास करती रही। उन ललचाई आंखों ने मेरी आंखों के कोर तर कर दिए।

अस्सी घाट पर यज्ञ, आरती और संगीत के कार्यक्रम का आनंद उठाने के बाद बुजुर्ग महिलाओं ने पापनाशिनी में डुबकी लगाकर आसमान पर लालिमा छिड़ककर आने का संकेत दे रहे सूर्य देव को अंजुरी से अर्घ्य दिया। फिर सभी एक बड़ी नाव पर सवार हुईं। मध्य गंगा से गुजरते हुए उनके मंगल गीतों की स्वर लहरियां नदी की लहरों से जैसे तालमेल बिठाने लगीं। गंगा पार रेत पर इन महिलाओं ने खूब दौड़ लगाई। एक-दूसरे को दौड़ाकर पकड़ने और दौड़ कर आगे निकलने का खेल खेला। दो-तीन घंटे कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला। लौटकर सबने खरीदारी की। फिर वापस अपने गांव…। ये यादें इन महिलाओं में अरसे तक ऊर्जा का संचार करती रहेंगी और मुझमें भी…।

किसी ने कहा है….

ये जिंदगी तमन्नाओं का गुलदस्ता ही तो है,
कुछ महकती है,कुछ मुरझाती है और कुछ चुभ जाती है!!


पुष्पांजलि शर्मा। योग और फिटनेस गुरु। डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा। संप्रति वाराणसी में निवास।

2 thoughts on “बहिनी, गंगाजी के किनारे कईसन लगेला?

  1. Great Pushpanjali ji.
    Congratulations.
    Yaad rahe ess Dunia main bahut kam log hain Jo kisi ki zindagi main Uzale failaten gain aur mujhe Garv hai ki aap bhi unme se ek ho. Aapne jis sachchaie se enn gramin aurton k jeewan main naie chetna ka sanchar kiya hair wo quabil-e-taarif hai.
    Baba Vishwanath aapko asim shaktiyan pradan Karen Jo manavta k liye samarpit hon.
    Dhersari Badhaieyan ewam shubhkamnayen hain aapko.
    Keep it up.
    God bless you.
    Nice article, great writing skills. ?
    Shubh Sandhya.

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