रवि किशोर श्रीवास्तव
कतार घट चुकी थी, एकआध लोग ही बचे थे। पोलिंग बूथ के अधिकारी और कर्मचारी रवानगी की तैयारी कर रहे थे। शाम भी दस्तक देने को तैयार थी। इधर नेताजी भी अहाते में सुस्ता रहे थे। रोज की तरह आज शाम भीड़ थोड़ी कम थी। शायद वोटिंग की छुट्टी वाले दिन कार्यकर्ता और समर्थकों को भी आराम चाहिए होगा। अहाते के बाहर लगी रोड लाइट की चमक तेज हो रही थी। चाय की चुस्की के साथ नेताजी हल्की फुल्की गपशप कर रहे थे। तभी एक आवाज़ आवाज़ आती कि भैय्याजी कोई नहीं है टक्कर में… इतने में तपाक से मोहल्ले के एक दादाजी बोल बैठे भैया मुकाबला तो कांटे का लगता है। उनका इतना बोलते ही नेताजी की भौहें चढ़ गई..गुस्ताखी माफ फिर दादाजी की जुबां नहीं खुली..और एक श्रोता बनकर कुंडली मारके बैठ गए। खैर अब तो बटन दब चुका था। कोई कसर बच गई होगी तो दिल में ही रहे तो अच्छा है। चुनावी रैलियों और भाषणों के अंबार से नेताजी भी थोड़ी थकावट महसूस कर रहे थे मन तो आराम करने का था लेकिन वक्त ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रहा। सोच विचार में मग्न नेताजी के घर एक-एक कर पोलिंग एजेंट्स आने लगे..उनके हाथ में एक पन्ना थमाते और कान में कुछ फुंसफुसाते रहे और सामने बैठे लोग उतावले थे कि पोलिंग बूथ से क्या पैगाम आया है। बावजूद इसके सबकुछ गोपनीय ही रखा जा रहा था जैसा कि प्लान था। एजेंट्स से बात करते हुए नेताजी कभी मुस्कुराते तो कभी सकपकाते। अंदाज-ए-इशारा साफ था दिल और जुबां का कोई नाता नहीं है । वक्त का तकाजा है ज्यादा कुछ खुलेआम बोलना खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा। कुल मिलाकर..’मामला टाइट है’ मंद मंद आवाज़ में लोग तो यही खिचड़ी पकाने लगे थे।
अहाते में अचानक शोर शाम के मुताबिक ज्यादा ही बढ़ गई। चाय पर चाय चल रही थी। अचानक नेताजी उठे और अपने सबसे खास सिपहसलार के पास गए..बोले नुक्कड़ वाली गली के लोग कहां गए..वो मोहल्ले वाले कहां गए सवाल जायज था कि जब इतनी आबादी है इलाके में वोट इतना कम क्यों पड़ा। नेताजी खुद में बड़बड़ाने लगे कि जब रैलियों जुलूसों में भीड़ इतनी ज्यादा होती रही तो एजेंट्स ये क्या ले आ धमके…बतियाते बतियाते नेताजी कहीं खो जाते हैं । अचानक एक टोली उनके पास पहुंचती है दिलासा देते हैं, अजी भैय्या काउंटिंग का इंतजार कर लो..होली अपनी होगी। इसी हां में कुछ हां और मिलते हैं । नेताजी भी सिर झुकाकर हामी भर देते हैं । तभी घर के अंदर से आवाज आती है शायद य़े आवाज़ श्रीमती जी की होगी। पूछ रही थी कि….’आज रूकेंगे या जाएंगे’.. उनका इतना पूछना भर था कि नेताजी तमतमा गए फौरन पलटे और घुड़की लगाई…’अरे तुम्हें बड़ी जल्दी है’ । नेताजी का इतना कहना भर था कि अहाते में जोर जोर से गपशप होने लगी कि आखिर भैय्याजी इतने टेंशन में क्यों है? पहले तो नहीं देखा ऐसा?.. खैर जिनती जुबान उतनी बातें… दिल का दर्द जाने कौन..? अचानक नेताजी फिर अपनी कुर्सी तक लौट आए औऱ आहिस्ता आहिस्ता गपियाना शुरू करने लगे.. और 11 मार्च का इंतजार करवट बदल रहे हैं ।
रवि किशोर श्रीवास्तव, टीवी पत्रकार । एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय।
सुंदर अभिव्यक्ति है-पशुपति शर्मा