रंगमंच पर साकार राजकमल चौधरी की ‘मल्लाह टोली’

रंगमंच पर साकार राजकमल चौधरी की ‘मल्लाह टोली’

संगम पांडेय

नीलेश दीपक की प्रस्तुति ‘मल्लाह टोली’ एक बस्ती का वृत्तचित्र है। ‘कैमरा’ यहाँ ठहर-ठहरकर कई घरों के भीतर जाता है, और एक छोटे से परिवेश में तरह-तरह के किरदारों से बनी एक दुनिया को दिखाता है। यह मिथिलांचल के तीन बड़े कथाकारों में से एक राजकमल चौधरी की कहानी है, जिसमें एक आम यथार्थ के भीतर कुछ खास पात्र दिखाई देते हैं। ये पात्र अचानक कोई ऐसी हरकत कर बैठते हैं कि उससे एक घटना पैदा होती है।

हट्टा-कट्टा महंता अपने खास दोस्त से मारपीट कर उसकी नई ब्याहता को हड़प लेता है। सब शराब के साथ मछली खाते हुए जश्न मना रहे हैं कि उसकी उपेक्षित हस्ती ऐसा उबाल मारती है कि वो जाकर पिरितिया से लिपट जाता है और छुड़ाने आए उसके पति को उठाकर पटक देता है। ऐसी एक्शनपैक्ड स्थितियों से जो रुचि बनती है उसे नीलेश ने लोक संगीत के साथ नत्थी कर एक निरंतरता बनाए रखी है। कहानी में एक ओर दबंग की बीवी होने को मजबूर पिरितिया है, तो वहीं अपने अशक्त पति की सेवा-सुश्रूषा में पूरी मोहब्बत से जुटी केतकी भी है, जो काफी लंबे अंतिम दृश्य में तिरपित मिसिर की गुप्ती उसी के पेट में उतार देती है। प्रस्तुति में नए-नए पात्रों और स्थितियों की यह आवाजाही शुरू से अंत तक बनी रहती है।

मछली पकड़ने के बड़े-बड़े जालों से मंच पर परिवेश का अच्छा संकेत बनाया गया है। इसी तरह फूस वगैरह की कारगुजारी से घरों के संकेत। नाव, नदी, मछली के जाल फेंकने वगैरह के दृश्यों में भी अच्छी मेहनत और युक्ति दिखाई देती है। इसी युक्ति से केतकी के बेहद कामचलाऊ घर में ब्रा और ब्लाउज को काफी प्रमुखता से टाँग दिया गया है। कारण ये है कि अगले दृश्य में कामातुर तिरपित मिसिर उन्हें सूँघेगा। जो भी हो इन्हीं सब कारणों से नीलेश की ये प्रस्तुति अपनी बुनावट में कुछ अलग तरह की है। किरदारों में भी उन्होंने नाटकीयता और हकीकत का अच्छा पुट दिया है।

बीमार बच्चे का इलाज करने वाला डॉक्टर इस लिहाज से काफी रोचक है, और कमली के किरदार में भी उसके भलेपन और हीन हैसियत का अच्छा समावेश है। हालाँकि बीमार पति की पत्नी केतकी के बनाव-श्रृंगार का तुक कुछ स्पष्ट नहीं होता, पर दृश्य बना कुछ ऐसा है कि दर्शक इसमें भी अटका रहे। अभिनय प्रस्तुति में यूँ ठीक-ठाक है, पर रिहर्सल की कमी कुछेक जगह दिखाई देती है। प्रस्तुति का नाट्यालेख इस विधा के विशेषज्ञ सुमन कुमार ने तैयार किया है, जो कथानकों के रूप परिवर्तन का ये काम लगातार किए जा रहे हैं।


संगम पांडेय। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। जनसत्ता, एबीपी समेत कई बड़े संस्थानों में पत्रकारीय और संपादकीय भूमिकाओं का निर्वहन किया। कई पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। नाट्य प्रस्तुतियों के सुधी समीक्षक। हाल ही में आपकी नाट्य समीक्षाओं की पुस्तक ‘नाटक के भीतर’ प्रकाशित।