सत्येंद्र कुमार
लोग कहते हैं कि ज्ञान घोलकर नहीं पिलाया जा सकता लेकिन मेरी ज़िंदगी में ऐसे कई गुरु हैं, जिन्होंने मुझे ज्ञान घोलकर पिलाया। शिक्षक दिवस के मौके पर वही गुरु जेहन में घूमते रहते हैं, कई-कई दिनों तक।
पहली कक्षा से लेकर पत्रकारिता की पढ़ाई तक कई गुरुओं ने अपनी जिम्मेदारी मानकर मुझे विषय ज्ञान दिया और साथ-साथ आगे बढ़ने के रास्ते दिखाए। इनमें देवरिया जिले के ग्राम डुमरी निवासी दयाशंकर तिवारी, मार्कण्डेय तिवारी, गोरखपुर में पत्रकारिता का ककहरा सिखाने वाले रोहित पांडे (अब इस दुनिया में नहीं हैं) और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्याल, भोपाल में पत्रकारिता की उच्च शिक्षा देने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनकर शुक्ला और श्रीकांत सिंह हैं। इनमें सबसे ख़ास बात ये थी कि ये छात्रों को अपनी ज़िम्मेदारी मानते थे। जिम्मेदारी पूर्वक शिक्षा के साथ-साथ ज़िंदगी संवारने और आगे बढ़ते रहने की सलाहियत सिखाते थे।
गुरुओं के नाम एक दिन
दयाशंकर तिवारी सर ने छठवीं से आठवीं कक्षा तक मुझे संस्कृत, अंग्रेजी की शिक्षा दी। इनकी खास बात थी कि, ये छात्रों को गाना गा कर कई चीजों को समझाया करते थे। कहानियों में ज्ञान की बात करते थे। ग़ुस्सा होने पर भी प्यार के साथ फटकार लगाते थे। 12वीं में मार्कण्डेय तिवारी सर ने ‘my struggle for an education’ और ‘on his blindness’ का मर्म हिंदी में समझाया और मैं अंग्रेजी में समझा तभी तो 12वीं कक्षा पास की।
भूगोल, समाजशास्त्र में स्नातक और भूगोल में परास्नातक के बाद गोरखपुर विश्वाविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में तेज तर्रार पत्रकार रोहित पांडेय से मुलाकात हुई। पत्रकारिता विभाग के हेड ने हाथों से इशारा करते हुए कहा कि गेट के बाहर खड़े शख़्स को लेते आओ। मैंने अपनी स्कूटर पर उन्हें बैठाकर लाते वक़्त पूछा- आप कौन हैं? जवाब था- रोहित पांडेय, मैंने तुरंत दूसरा सवाल किया, क्या करते हैं? उन्होंने कहा- कुछ नहीं ऐसे ही घूमते रहते हैं? लेकिन जब क्लास में गया तो थोड़ी देर बाद शिक्षक के तौर पर उनका परिचय कराया गया। बिल्कुल साधारण व्यक्तित्व के धनी रोहित पांडे बहुत ही बेबाक थे। 2005 में रोहित पांडेय दैनिक हिंदुस्तान में कार्यरत थे। उन्होंने मुझे राजनीतिक सवाल और पत्रकारों के सवालों के बीच का फर्क समझाया। लेकिन दुर्भाग्य जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी पर शोध करने वाले रोहित पांडे गंभीर बीमारी की वजह से इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन अपने शिष्यों के दिल में जिंदा हैं।
गोरखपुर से पढ़ाई पुरी करने के बाद पत्रकारिता की उच्च शिक्षा के लिए भोपाल पहुंचा और वहां वरिष्ठ पत्रकार दिनकर शुक्ला और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विभागाध्यक्ष श्रीकांत सिंह से मुलाकात हुई। श्रीकांत सर ने पत्रकारिता और कानून के उलझनों को सुलझाया तो दिनकर शुक्ला सर ने अपने अंग्रेजी पत्रकारिता के अनुभवों के साथ अंग्रेजी के बारीकियां बताईं।
4 सितंबर 2015 को मैंने अपने तीन गुरुजनों से बात की। तीनों का मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था।समस्या थी कि गुरुजनों से बात कैसे की जाए? तभी ख्याल वरिष्ठ पत्रकार दिनकर शुक्ला सर के बेटे अक्षय शुक्ला का आया, जो नवभारत टाइम्स में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं। मैंने उन्हें फोन लगाया और दिनकर सर की एक तस्वीर की मांग की। उन्होंने तुरंत whatsapp पर फोटो भेज दी। थोड़ी देर बात एक अज्ञात नंबर से कॉल आई। कॉल रिसीव करते ही उधर से आवाज आई- आप सत्येंद्र यादव बोल रहे हैं? इतना सुनते ही मैंने आवाज पहचान ली और कहा, सर, आप दिनकर सर बोल रहे हैं? उन्होंने कहा- हां, बड़ी जल्दी आवाज़ पहचान गए! फिर क्या था गुरु शिष्य ने करीब पंद्रह मिनट तक बात की। गुरु जी ने मेरे साथ पढ़े बाकी साथियों का हाल जाना और दिल्ली में मिलने के वादे के साथ बात पूरी की। फिर गांव में रहने वाले मेरे गुरु दयाशंकर तिवारी को फोन लगाया और हालचाल जाना। 1995 के बाद मैंने उनसे पहली बार बात की, बात करके काफी खुश थे। लगे हाथ मार्कण्डेय तिवारी सर से भी बात की और हाल जाना।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए जब मैं भोपाल आया तो बाकी छात्रों की तुलना में मैं काफी कमजोर था। अंग्रेजी का तो मत पूछिए, अंग्रेजी में बिल्कुल लोल था। पढ़ाई शुरू होने के तीन-चार महीने बाद एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विभागाध्यक्ष श्रीकांत सिंह सर एक व्यक्ति के साथ क्लास रूम में आए और परिचय कराते हुए कहा कि ‘ये दिनकर शुक्ला जी हैं और आज से आप लोगों को अनुवाद पढ़ाएंगे।’ और उसी समय से दिनकर शुक्ला सर हम लोगों को अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी पढ़ाने में जुट गए। अंग्रेजी की पढ़ाई के साथ-साथ अपने पत्रकारिता के अनुभवों को भी शेयर करते थे। देश-विदेश में की गई रिपोर्टिंग के बारे में बताते थे। भले ही विश्वविद्यालय में स्थाई तौर पर उनकी नियुक्ति नहीं थी लेकिन हम लोगों को अपनी जिम्मेदारी मानते थे। कभी भी कहीं भी मदद के लिए तैयार रहते थे। फोन पर भी चौबीसों घंटे अवेलेबल रहते थे।
सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
शिक्षकों को याद करते हुए… सुमित कुमार की रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें