मर जाते हैं या मार दिये जाते हैं । थोड़ी समझ होती है तो दोनों अलग रास्ता खुद अपना लेते
Tag: समाज
डेढ़ साल बाद लौटा तो घर में पड़ा था मां का कंकाल!
नीरज बधवार मुम्बई से जुड़ी एक ख़बर पढ़ी। बाद में टीवी चैनल्स पर भी उससे जुड़ी एक-आध रिपोर्ट देखी। एक
‘पिंक’ के मुरीद अब ‘ऐसी-वैसी लड़की’ का तमगा बांटते हैं!
शालू अग्रवाल पता नहीं हम कब सुधरेंगे। मुझे उस वक्त का इंतज़ार है जब कथनी ही करनी होगी, इनके बीच
कीर्ति दीक्षित के उपन्यास ‘जनेऊ’ की पहली झलक
सत्येंद्र कुमार यादव मार्च 2009 में ईटीवी न्यूज से जुड़ा। फिर मुझे रायपुर से हैदराबाद जाना हुआ। चूंकि मैं नया-नया
रायपुर में ‘मोचीराम’ की चीख और चुप्पी
टीम बदलाव “बाबूजी सच कहूं, मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा, मेरे लिए हर आदमी एक
ज़िंदगी इतने बड़े इम्तिहान क्यों लेती है ?
कीर्ति दीक्षित कई दिनों से फेसबुक पर उसकी पीहू और उसे देख रही हूं। एक बार नहीं दर्जनों बार। अखबारों