अजीत अंजुम प्यारा सा ये लड़का इस दुनिया में नहीं रहा . विकल्प त्यागी नाम था इसका . फेसबुक पर
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वक़्त ने तीसरी मोहलत नहीं दी
रंजीत कुमार बिल्कुल ठीक-ठीक याद तो नहीं जब पहली बार तुम मिले थे, चैनल लांचिंग से पहले ट्रेनिंग का दौर
मनमोहन-मोदी का फर्क, जवाब में नहीं मीडिया के सवाल में ढूंढिए
राकेश कायस्थ यह समय भारतीय समाज के स्मृति लोप का है। याद्दाश्त गजनी की तरह आती-जाती रहती है। जो लोग
विनोद दुआजी, तुस्सी ग्रेट हो!
नदीम एस अख़्तर कहते हैं जो पेड़ से फल से जितना लदा होता है, वो उतना ही झुका होता है.
पटाखे धीरे चलाओ, स्क्रीन हिली तो सीटें कम हो जाएंगी!
धीरेंद्र पुंडीर ये जीत का जश्न फीका है, ये हार का स्वाद मीठा है। ये गुजरात की उलटबांसी है। सिर्फ
मीडिया से गांव गायब बताना आंचलिक पत्रकारिता की अनदेखी है
शिरीष खरे क्या मीडिया से गांव गायब हो गए हैं? जवाब है- हां। यदि कोई एक जगह से एक जगह
पत्रकारिता को न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में मत तलाशिए
पुष्यमित्र हिंदी पत्रकारिता में आज भी एक स्वतंत्र पत्रकार का सर्वाइवल मुश्किल है। विभिन्न अखबारों में फीचर और आलेख लिखने वाले
मी लॉर्ड! कुछ ‘गुनाहों’ का हिसाब अभी बाकी है!
धीरेंद्र पुंडीर अब बौने (हम पत्रकार) किसकी चरित्र हत्या करेंगे। केस में अभी सुप्रीम कोर्ट की दहलीज बाकि है। आरूषि
कितने संपादक ‘गणेश विधि’ से LIVE टेस्ट को तैयार हैं?
मनीष कपूर के फेसबुक वॉल से ज्यादातर हिंदी न्यूज चैनलों के संपादक बिहार के हैं। जाहिर है उनमें से ज्यादातर
इंटरनेट की दुनिया- ‘कुंदन’ घिसता गया, चमक बढ़ती गई
कुंदन शशिराज एक ऐसे युवा के तौर पर अपने साथियों के बीच जाने जाते हैं, जो अपने जुनून के लिए