राकेश मालवीय स्मृतियां जब दस्तक देती हैं तो आपको हंसाती हैं, रुलाती हैं, गुदगुदाती हैं, कुछ जोड़ती हैं, कुछ घटाती
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अपने गुरु से नाता जोड़, कहां गए मेरे गुरु हमको छोड़
पशुपति शर्माबंसी दा ने अपने गुरु नेमिचंद्र जैन की स्मृति में एक नाटक का ताना-बाना बुना- ‘साक्षात्कार अधूरा है’। नाटक
इलाहाबाद में रंग प्रेमियों ने मनाया बंसी दा की स्मृतियों का उत्सव
‘निर्देशक नाटक में रहते हुए भी मंच पर अनुपस्थित रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।आज बंसी कौल भले ही शारीरिक
बंसी कौल के लिए थिएटर ही रहा पहला और आखिरी परिवार
अंजना पुरी एक रिश्ते के अड़तीस बरस बीत गए और आज पहली बार यह समझ में आ रहा है कि
बंसी कौल को कहाँ ढूंढे रे बंदे?
सच्चिदानंद जोशीसब कुछ वैसा ही था जैसा होता है किसी नाटक के अंत में। सारे कलाकार अपने काम खत्म कर
रचना प्रक्रिया का ‘अधूरा साक्षात्कार’
पशुपति शर्मा 23 जुलाई को ग्रेटर नोएडा में बंसी दा से एक और मुलाकात। कमरे में बिस्तर पर लेटी माताजी
सेंटिमेंटल होने से मत डरिए जनाब
पशुपति शर्मा भावुक हो जाना भला भी है बुरा भी। भावुकता में संतुलन बिगड़ जाता है। भावनाओं पर संतुलन बना
‘साक्षात्कार अधूरा है’- गुरु से गुरु तक की यात्रा
पशुपति शर्मा बंसी दा के साथ काम करने का अपना अनुभव है। रचना-कर्म के दौरान एक आत्मीय रिश्ता रहता है
गुरु बंसी कौल ने अपने गुरु से यूं जोड़ दिया नाता
पशुपति शर्मा शिक्षक दिवस पर तमाम गुरुजनों को नमन। इस बार रंगकर्म के गुरु बंसी कौल से जुड़ी कुछ यादें
नेमिजी के होने न होने के 100 बरस
रवीन्द्र त्रिपाठी किसी बड़े रचनाकार की जन्मशती के मौके पर ये सवाल उठ सकता है कि उसे किस रूप में