देवांशु झा बेटे ने बूढ़ी मां से कहा मां चलो, सूर्य नमस्कार करते हैं लगभग अपंग मां सहज तैयार हुई
Tag: कविता
गए साल को चरण स्पर्श
नीलू अग्रवाल विदा, विदा, विदा…अलविदा। अब मिलेंगे नहीं कभी नहीं हमें है पता। हँसते हुए, फिर भी देते हैं विदा।
छांव
मृदुला शुक्ला छाँव कहाँ होती है अकेली खुद में कुछ ये तो पेड़ों पर पत्तियों का दीवारों पर छत का
आत्मवंचना
अखिलेश्वर पांडेय शाबासी की सीढ़ीयां चढ़ते हुए पहुंच गया हूं उस मुकाम पर जहां से सिर्फ भीड़ दिख रही आंखें
‘अंतरात्मा की पीड़ित विवेक-चेतना’ के कवि को अलविदा
उदय प्रकाश ‘आत्मजयी’ वह कविता संग्रह था, जिसके द्वारा मैं कुंवर नारायण जी की कविताओं के संपर्क में आया. तब
समय ‘वाचाल’ है और कवि ‘मौन’!
पशुपति शर्मा ‘समय वाचाल है’ इसी शीर्षक से आजतक में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार साथी देवांशुजी का काव्य संग्रह हाथ में
मां की आदत
मां ने पल्लू में अभी तक बांधकर रखी है मेरी पहली खिलखिलाहट जटामासी जैसे मेरे बालों के गुच्छे पोटली में
मित्र
मित्र करता हूं मैं कई बार तुम्हारी आलोचना वह आलोचना जितनी तुम्हारी होती है उतनी ही मेरी भी ऐसा लगता
मछलियां
मछली का मायका नहीं होता उसे ब्याह कर ससुराल नहीं जाना पड़ता उसका मरद उसे छोड़ कमाने बाहर नहीं जाता
स्कूल की छुट्टी
बदलाव बाल क्लब की कार्यशाला फिलहाल गाजियाबाद के वैशाली में हर दिन शाम 7 बजे लग रही है। बच्चे हर