तू आया है, तो जायेगा हम रोटी–भात खायेगा। तू लोहा–सोना खोदेगा हम खेत में नागर जोतेगा। तू हीरा-पन्ना बेचेगा हम
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छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार- निदा फ़ाजली
अनिमेष पाठक बात दिसंबर 2015 के पहले हफ्ते की है। ऑफिस से काम जल्दी निबटाकर लगभग दौड़ता हुआ मैं मुनव्वर राणा
खुद से झूठ बोलती औरतें
पिता द्वारा आपने आस पास खींचे गए वृत्त में बंधी गाय की तरह पगहे में लवराई लड़कियां जा सकती हैं
लेखकों का ‘आपातकाल’ और ‘फासीवाद’ बस हौव्वा है ?
संजय द्विवेदी देश में बढ़ती तथाकथित सांप्रदायिकता से संतप्त बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला वास्तव
यारों को वीराने में छोड़ गए वीरेन
श्रद्धांजलि तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
पटना के रंगमंच पर ‘मेहमान’ की ‘दस्तक’
बदलाव प्रतिनिधि निर्मल वर्मा की कहानियों को मंच पर उतारना आसान नहीं है। मगर पटना के प्रेमचंद रंगशाला में निर्देशक
ऑस्ट्रेलिया में पूर्णिया के ‘ईयान बाबू’!
सत्येंद्र कुमार शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद इनके लिए भी आप बोल सकते हैं। बहुत ही दिलचस्प और जानदार शख़्स हैं। ये
पगला नथुनिया… तेरा बऊआ आया गांव रे!
तब ये ट्रेन कहां थी गांव जाने के लिए। रामेश्वर घाट पर मिनी बसें छोड़ जातीं और फिर वहां
कोमल मन का पहाड़ सा हौसला
पहाड़ पर खेतों से खर पतवार निकाल जमीन में बीज रोपती हैं पहाड़ी औरतें | वे बैल हैं और हल