नीलू अग्रवाल विदा, विदा, विदा…अलविदा। अब मिलेंगे नहीं कभी नहीं हमें है पता। हँसते हुए, फिर भी देते हैं विदा।
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छांव
मृदुला शुक्ला छाँव कहाँ होती है अकेली खुद में कुछ ये तो पेड़ों पर पत्तियों का दीवारों पर छत का
‘अंतरात्मा की पीड़ित विवेक-चेतना’ के कवि को अलविदा
उदय प्रकाश ‘आत्मजयी’ वह कविता संग्रह था, जिसके द्वारा मैं कुंवर नारायण जी की कविताओं के संपर्क में आया. तब
मां की आदत
मां ने पल्लू में अभी तक बांधकर रखी है मेरी पहली खिलखिलाहट जटामासी जैसे मेरे बालों के गुच्छे पोटली में
‘तुलसीदास’ कविता और सांप्रदायिकता का सवाल
देवांशु झा कवि अज्ञेय ने अपने संस्मरण में लिखा है “निराला के प्रति मेरी धारणा तब तक पूरी तरह बदल
विद्रोही कवि रामधारी सिंह दिनकर
ब्रह्मानन्द ठाकुर जी हां , विद्रोही कवि रामधारी सिंह दिनकर। हालांकि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर टिकी इस व्यवस्था
लेखक और पत्रकार सबसे आसान शिकार हैं- उदय प्रकाश
गौरी लंकेश की हत्या से देश स्तब्ध है। पत्रकार-साहित्यकार वर्ग सहमा हुआ है। आखिर अभिव्यक्ति की आज़ादी के मतलब क्या
वंशीपचडा-वह गांव जिसने रामबृक्ष को बेनीपुरी बना दिया
ब्रह्मानंद ठाकुर एक नन्हा -सा टुअर बालक जिसकी मात्र 4 साल की उम्र में मां मर गयी और जब वह
मित्र
मित्र करता हूं मैं कई बार तुम्हारी आलोचना वह आलोचना जितनी तुम्हारी होती है उतनी ही मेरी भी ऐसा लगता
स्त्री सृजन के ‘आयाम’ का दूसरा साल
इति माधवी “सुलगते चूल्हे पर स्त्री जब रांधती है भात बटलोही के अदहन से पकते चावल की खदबदाहट हर स्त्री