मृदुला शुक्ला वो जाने कौन सा साल बरस था तेज चटकती दुपहरी थी बस इतना याद है। कहाँ से लौटी
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बेटियों की चीख और तड़प
वो चीख रही थी और मैं सोच रहा था ये चीख किस मजहब की है वो दर्द से तड़प रही
भीड़ हो तब भी डरो, भीड़ न हो तब भी डरो
भारती द्विवेदी बेंगलुरु की दोनों घटनाएं किसी भी संवेदनशील इंसान को हिला कर रख देती है। अब दिल्ली की घटना