पुष्यमित्र फरकिया के ढेंगराहा पुल की लड़ाई अभी शुरू हुई है। हो सकता है इन्हें जल्द सफलता मिल जाये, हो
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फरकिया का आंदोलन और “रेडियो कोसी”
राजीव रंजन प्रसाद पुष्यमित्र के उपन्यास “रेडियो कोसी” पर टिप्पणी करना चाहता था, शायद अब सही समय है। पिछले कई
कन्हैया से गुरमेहर तक ट्रैप में क्यों फंसा मीडिया?
पुष्यमित्र अपने देश में राजनीति ने काम करने का बड़ा दिलचस्प तरीका अख्तियार कर लिया है, दुर्भाग्य यह है कि
‘देशभक्ति’ की बहस के बीच कौन सुनेगा फरकिया की गुहार?
पुष्यमित्र जरा इस तसवीर को देखिये, आधा दर्जन से अधिक लोगों की बाहों में स्लाइन की बोतलें लगी हुई हैं।