आशीष सागर दीक्षित कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढुंढे वन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि। वैसे तो ये
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बांदा के गांव में जिंदा है ‘ठाकुर का कुआं’
आशीष सागर दीक्षित ”आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको जिस गली