नमस्ते, कल्पितजी ! मैं नीलाभ मिश्र हूँ, पटना से आया हूँ । नवें दशक का कोई शुरुआती वर्ष था, जब
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रंगों का कोलाज विकल्प… कुछ रंग अब भी बिखरे हैं
अजीत अंजुम प्यारा सा ये लड़का इस दुनिया में नहीं रहा . विकल्प त्यागी नाम था इसका . फेसबुक पर
वक़्त ने तीसरी मोहलत नहीं दी
रंजीत कुमार बिल्कुल ठीक-ठीक याद तो नहीं जब पहली बार तुम मिले थे, चैनल लांचिंग से पहले ट्रेनिंग का दौर
‘अंतरात्मा की पीड़ित विवेक-चेतना’ के कवि को अलविदा
उदय प्रकाश ‘आत्मजयी’ वह कविता संग्रह था, जिसके द्वारा मैं कुंवर नारायण जी की कविताओं के संपर्क में आया. तब
कुंदन शाह को ‘जाने भी दो यारों’
मयंक सक्सेना कुंदन शाह से दिल्ली में एक पत्रकार के तौर पर मिलना हुआ। पहली बार जब मिला था, तो छात्र
कृष्ण से सम्मोहन वाला सितारा अब गगन में चमकेगा!
देवांशु झा ऐसा सितारा कभी-कभार चमकता है, जिसमें किसी हॉलीवुड हंक सी अदा हो, किसी आदर्श पौराणिक भारतीय चरित्र जैसा सुघड़
ऐसे साक्षात्कारों से ‘मुस्कान’ चुराता था कामता
पिछले कई घंटों से सोशल मीडिया पर कामता सिंह के निधन की सूचना के बाद पत्रकार साथियों के गमजदा संदेश
“सरजी एक आइडिया है” वाला कामता चला गया
संजय बिष्ट के फेसबुक वॉल से दुनिया किसी के न रहने के बाद भी चलेगी… वक्त दौड़ेगा वैसे ही आंसूओं को
बहती हुई नदी थे अनुपम जी
राकेश कायस्थ अनुपम जी को मैं बहुत अच्छी तरह जानता था। लेकिन कभी मुलाकात नहीं हुई। एक दिन अचानक उनके
आज भी खरे हैं ‘अनुपम मिश्र’
पुष्यमित्र सुबह से मन अनुपम मिश्र जी की यादों में अटका है। एक पल के लिये भी खुद को मुक्त