पशुपति शर्मा 20 जनवरी, 2018 की उस दोपहर, राजधानी के मंडी हाउस इलाके में ‘अलग मुल्क के बाशिंदे’ से मुखातिब
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ग्वालियर के ‘गुंडे’ ने किसी रंगकर्मी से बदसलूकी नहीं की
अनिल तिवारी करीब 1962 के दौरान पिता जी का तबादला ग्वालियर हो गया और मेरा दाखिला उस समय के सर्वश्रेष्ठ
‘खिड़की’ से झांकता लेखक और वो लड़की
संगम पांडेय विकास बाहरी के नाटक ‘खिड़की’ में कथानक के भीतर घुसकर उसकी पर्तें बनाने और खोलने की एक युक्ति
बात निकली तो है… कितनी दूर तलक पहुंची?
नीतू सिंह कुछ बातें ऐसी होती हैं, तो दिल की गहराइयों से छूकर निकलती हैं और बड़ी दूर तक अपनी
रंगमंच पर साकार राजकमल चौधरी की ‘मल्लाह टोली’
संगम पांडेय नीलेश दीपक की प्रस्तुति ‘मल्लाह टोली’ एक बस्ती का वृत्तचित्र है। ‘कैमरा’ यहाँ ठहर-ठहरकर कई घरों के भीतर
कनुप्रिया ने याद दिला दिए रामलीला वाले दिन
ब्रह्मानंद ठाकुर बात उन दिनो की है जब देश को आजाद हुए दस –बारह साल ही हुए थे। गांव सच्चे
आजमगढ़ का शारदा टाकीज बना रंगमंच का नया ठीहा
संगम पांडेय आजमगढ़ के उजाड़ और खस्ताहाल शारदा टाकीज को अभिषेक पंडित और ममता पंडित ने रंगमंच के लोकप्रिय ठीहे
इंटरनेट के दौर में दो पीढ़ियों के दो अलग-अलग युग
संगम पांडेय जो दर्शक वही-वही नाटक देख-देख कर ऊब चुके हों उन्हें निर्देशक सुरेश भारद्वाज की प्रस्तुति ‘वेलकम जिंदगी’ देखनी
रायपुर में ‘मोचीराम’ की चीख और चुप्पी
टीम बदलाव “बाबूजी सच कहूं, मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा, मेरे लिए हर आदमी एक