सुनील श्रीवास्तव के फैकबुक वॉल से साभार
आज गुरू की आयी चिट्ठी,
गुम होय गयी सिट्टी -पिट्टी ,
लिखे हैं बेटा बनत हो चालू,
लगी तमाचा फुल जाई गालू ,
वहां करत हो जिंदाबाद ,
आओ कभी इलाहाबाद।
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का बनबो तुम हमें बताओ ,
एक बार बस लग्गे आओ ,
बी ए, एम ए कूल कराइब ,
जवन चहबो उहै बनाइब ,
ई बात तुम कर ल्यो याद,
आओ कभी इलाहाबाद
***
बिसबिद्यालय में तुम्हैं पठइबै
हर फैकल्टी खूब घुमइबै ,
छात्र नेतन के उज्जर कपड़ा ,
बात -बात पर जमके लफड़ा,
गुरू बतकही ,चेला दाद
आओ कभी इलाहाबाद।
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लल्ला की चौकी पर बइठो ,
बीच -बीच में मुछवो ऐंठो ,
पिस्टल चाकू अगर चलइबो ,
सीधे नैनी जेल में जइबो ,
इहां मिलीगा मेंटल खाद ,
आओ कभी इलाहाबाद।
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अफसर,बाबू श्योर बनाइब ,
हूल पैंतरा सबै सिखाइब ,
केसवा हाईकोर्ट फरियाई,
निकल जाई कुल पाई -पाई ,
करना होय जब वाद- विवाद,
आओ कभी इलाहाबाद।
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तुमका रचनाकार बनाइब ,
लिखना- पढ़ना कुलै बताइब ,
नाटक का भरपूर मजा ल्यो ,
चौचक आपन रंग जमा ल्यो ,
फिर देख्यो तुम आपन ठाठ,
आओ कभी इलाहाबाद।
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काफी हाउस भी लै जाबै,
और वकीलन से मिलवाबै ,
साहित्यिक चौकी हर चौराहे,
गोष्ठी जितना कर ल्यो चाहे,
लेकिन मन में नहीं विषाद ,
आओ कभी इलाहाबाद।
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तुमका सब समझाय दिया है ,
सारी बात ,बताय दिया है ,
का बनबो तुम करो विचार ,
कर ल्यो अब आपन उद्धार ,
सब गुरुअन क ल्यो परसाद ,
आओ कभी इलाहाबाद।
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माई – बाप को संगम लाओ ,
पंडा से टीका लगवाओ ,
मरतै उनको सरग मिलेगा ,
तुमको भी तो पुन्य मिलेगा ,
जियत न जाबो दारागंज ,
तो फिर जाओ रसूलाबाद ,
आओ कभी इलाहाबाद।