चंदन शर्मा
जीवन संघर्ष के उतार-चढ़ाव में कई बार ऐसा क्षण आता है जब लगता है कि जिंदा रहकर कोई फायदा नहीं। ऐसे विचार आते ही संभल जाएं। बिना लड़े हार कर आप हमेशा अपना नाम कायरों में शुमार करते हैं। चिंताजनक स्थिति यह कि जीवंत शहर जमशेदपुर में ऐसे कायरों की संख्या बढ़ती जा रही है। जरा सोचिए। दिल्ली की एक राजनीतिक सभा में किसान आत्महत्या कर लेता है। क्या इसके बाद किसानों की समस्या समाप्त हो गई या देशभर में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रुक गया?
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला के मरने के बाद भी खूब बवाल हुआ। सुसाइड नोट वायरल हुआ। इससे क्या हुआ? क्या दलितों की समस्याएं समाप्त हो गई या देशभर में भेदभाव मिट गया? रांची में एक थानेदार और डीएसपी की प्रताड़ना से तंग आ एक होनहार नौजवान की आत्महत्या के बाद क्या पुलिसिंग सुधर गई? आम जन की बात छोडि़ए, चंद रोज पहले बक्सर के युवा डीएम की अकाल मौत से क्या बदला? उनके परिजनों का झगड़ा खत्म हो जाएगा या देशभर में घरेलू कलह अब होगी ही नहीं?
ऊपर के सभी सवालों का जवाब एक ही है कि किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। न समाज, न सिस्टम, न सरकार पर। ऐसी कायराना मौत बस मीडिया में चंद दिनों की सुर्खियां बन कर रह जाती है। हां, आपके परिजनों और चाहनेवालों पर जरूर कुछ दिनों के लिए फर्क पड़ता है। तो आत्महत्या का विचार मन में आए तो, क्या करना चाहिए? एक ही जवाब है- लडऩा चाहिए। खुद से, समाज से, सिस्टम से। आखिरी सांस तक। अगर जिंदा रहकर लड़ते रहेंगे तो यकीनन समस्याओं का समाधान भी खोज पाएंगे।
अगर खुदकशी से समस्याओं का समाधान निकलता तो बापू को लंगोट पहन के क्यों जीवन पर्यंत संघर्ष करना पड़ता। भगत सिंह को क्यों शहीद होना पड़ता? मेधा पाटेकर को क्यों लगातार बिना थके, बिना थमे लड़ाई जारी रखनी पड़ती? सिस्टम, समाज या सरकार को सुनाने के लिए बार-बार तेज आवाज में चिल्लाना पड़ता है। सड़क से संसद तक संग्राम छेड़ना पड़ता है। यकीन मानिए, बहरे हो चुके सिस्टम पर आपका सुसाइड नोट कोई असर नहीं छोड़नेवाला।
जन्म लेनेवाले हर एक शख्स से देश व समाज की उम्मीदें जुड़ी होती है। वह दुनिया को सुंंदर बनाने में अपना योगदान देगा। इसी उम्मीद में एक मां अपनी कोख में नौ महीने पालती है। प्रकृति बिना स्वार्थ सब कुछ प्रदान करती है, जिससे जीवन चलता है और आप सबका ऋण चुकाए बिना सभी कष्टों से छुटकारा चाहते हैं? ऐसा कैसे संभव है?
सभी धर्म ग्रंथों को खंगाल कर देख लें, ऐसी कायराना मौत पर कभी आत्मा को शांति नहीं मिलती। जिस संघर्ष से हार कर आप खुद को समाप्त करते हैं, उससे कहीं बुरा संघर्ष मरने के बाद भी आपका इंतजार कर रहा होता है। साथ ही, आपसे जुड़े लोग आपकी गलती की सजा जीवन भर भुगतने हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस अंधेरे से आप भागना चाह रहे हैं, वह आपके मरने के बाद और घना हो जाता है। जबकि आपके संघर्ष से घने अंधकार को उजाले में तब्दील होना पड़ता है।
ऐसे तमाम उदाहरण आसानी से दिख जाएंगे। सोशल मीडिया पर सर्च करें आर अनुराधा को। खुद कैंसर से लड़ते हुए देशभर में अवेयरनेस के लिए आखिरी दम तक सैकड़ों सेमिनार करती रहीं, अभियान चलाती रहीं। युवराज सिंह मौत को हरा कर मैदान पर वापसी करते हैं। एप्पल के संस्थापक को ही लें, बार-बार झटके खा कर भी वह दुनिया को इतना कुछ दे कर जाते हैं। क्या आपकी बीमारी स्टीफन हॉकिंग्स से ज्यादा गंभीर है? एक व्हील चेयर पर वर्षों से दुनिया को सुंदर बनाने के लिए वह दिन-रात लगे रहते हैं।
अगर आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, तो अपने आसपास निगाह दौड़ाइए। कोई ऐसा तो नहीं जो खुद से हारना चाह रहा। ऊंचाई पर दिखने वाला शख्स भी अकेला हो सकता है। ध्यान रहे कि आत्महत्या का ख्याल आना लंबी प्रक्रिया हो सकती है, पर इसका प्रयास एक झटके में होता है। इसलिए आप और हम सब जाने-अनजाने में किसी को बचाने वाले देवदूत हो सकते हैं। आपका छोटा सा प्रयास, चंद लम्हों का साथ किसी की जिंदगी बचा सकता है। न जाने कौन देश-दुनिया को खुशनुमा बनाने का माध्यम बन जाए। हम कितनी तरक्की करते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है? फर्क केवल खुश रहने और खुशियां बांटने से पड़ता है।
(साभार दैनिक जागरण, 18 अगस्त 2017 को प्रसंगवश कॉलम के तहत प्रकाशित)
चंदन शर्मा। धनबाद के निवासी चंदन शर्मा ने कई शहरों में घूम-घूमकर जनता का दर्द समझा और उसे जुबान दी। दैनिक हिंदुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, जागरण समूह और राजस्थान पत्रिका में वरिष्ठ संपादकीय भूमिका में रहे। समाज में बदलाव को लेकर फिक्रमंद।