अगर आप किसान हैं और व्यावसायिक खेती करना चाहते हैं तो आपके लिए स्टीविया की खेती एक बेहतर विकल्प हो सकती है। स्टीविया के खेती किसानों के लिए जितनी आमदनी बढ़ाने वाली है, उतना ही मधुमेय रोगियों का शुगर घटाने वाली। स्टीविया एक पत्तेदार फसल होती है, जिसकी पत्तियां काफी मीठी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये चीनी से करीब 300 गुना ज्यादा मिठास घोलती है। ऐसे में जब दुनिया में मधुमेय रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है तो इस प्राकृतिक मिठास की डिमांड बढ़ रही है। एक आंकड़े के मुताबिक इस वक्त भारत में मधुमेय रोगियों की तादाद 7 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है । ऐसे में डॉक्टर लोगों को शुगर फ्री इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि ये शुगर फ्री ज्यादातर स्टीविया से ही बनाये जाते हैं।
पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित कृषि मेले में मेरी मुलाकात राजीव नाम के एक किसान से हुई जो दिल्ली में पिछले कुछ साल से करीब 7 एकड़ में स्टीविया की खेती करते हैं। राजीव बताते हैं कि स्टीविया की खेती करके आज वो हर साल प्रति एकड़ 4-5 लाख रुपये कमा रहे हैं। हालांकि स्टीविया की खेती में लागत थोड़ी ज्यादा आती है, लेकिन मुनाफा भी करीब 4 से 5 गुना होता है। राजीव बताते हैं कि एक एकड़ में स्टीविया की खेती पर करीब एक लाख से डेढ लाख रुपये का खर्च आता है और इसकी फसल करीब 4 महीने में तैयार हो जाती है। एक बार फसल तैयार होने के बाद अगले 3-4 साल तक उत्पादन होता है। यानी एक बार फसल लगाईए और उसे करीब 3 साल तक काटिए ।
एक आंकड़े के मुताबिक एक एकड़ की फसल से करीब एक बार में करीब ढाई क्विंंटल तक पत्तियां निकलती हैं जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 4 से 5 लाख रुपये होती है। पूरी दुनिया में इस वक्त स्टीविया की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। मौजूदा दौर में जापान, ताईवान, अमेरिका स्टीविया का सबसे बड़े उत्पादक देश माने जा रहे हैं। इसके अलावा भारत में पुणे, बेंगलुरु, दिल्ली और यूपी में कुछ जिलों में स्टीविया की खेती होने लगी है। स्टीविया को चीनी के सबसे सशक्त विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही वजह है कि सरकार और कई संस्थाएं स्टीविया की खेती पर जोर देने लगी हैं। खासकर स्टीविया का उपयोग औषधीय उत्पादों के लिए किया जा रहा है। नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के मुताबिक स्टीविया की खेती के लिए 20 फीसदी तक सब्सिडी भी दी जाती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक स्टीविया की पत्तियां काफी मीठी होती हैं और मीठी पत्तियों में प्रोटीन और फाइवर की मात्रा सबसे ज्यादा मिलती है। कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होने के साथ कई और खनिज स्टीविया में पाए जाते हैं। जिस वजह से ये एक अच्छा विकल्प तैयार हो रहा है ।
यही वजह है कि दुनिया के साथ-साथ भारत में भी स्टीविया की मांग तेजी से बढ़ रही है । खासकर कई बड़ी कंपनियां स्टीविया से निर्मित प्रोडक्ट बाजार में उतार चुकी हैं । एक आंकड़े के मुताबिक स्टीविया से निर्मिति 100 से ज्यादा उत्पाद आज बाजार में मौजूद हैं । चाय में इस्तेमाल के लिए चीनी की जगह स्टीविया से बना प्रोडक्ट यूज किया जा रहा है। यही नहीं चाय की पत्ती बकायदा स्टीविया के लेप से तैयार की जा रही है। ताकि शुगर मरीज की चाय की मिठास बनी रहे। राजीव बताते हैं कि वो 7 एकड़ में स्टीविया की खेती करने के साथ ही अब वो अपनी खुद की कंपनी भी बना लिए हैं । जितना स्टीविया का उत्पादन उनके खेतों से होता है उसका काफी हिस्सा वो खुद प्रोडक्ट बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं । राजीव खुद स्टीविया युक्त चाय की पत्ती, बिस्किट के अलावा स्टीविया का लिक्विड तैयार करते हैं ताकि मधुमेय रोगियों को चीनी की कमी महसूस ना हो ।
राजीव ने बताया कि वे लोग अब स्टीविया की कॉन्ट्रैक्ट खेती की भी शुरुआत करने जा रहे हैं। इसके लिए पौधा लगाने से लेकर उसकी देखभाल और उत्पाद खरीदने की पूरी जिम्मेदारी उनकी कंपनी की होगी। हालांकि इसके लिए वो पहले से ही किसानों के साथ अनुबंध करेंगे ताकि बाद में कोई अड़चन न आए। अगर आप स्टीविया की नर्सरी तैयार करते हैं तो भी काफी मुनाफा कमा सकते हैं, स्टीविया के एक पौधे की कीमत करीब 10 रुपये होती है ।
ऐसे में किसान भाई स्टीविया की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको शुरुआत में थोड़ा इनवेस्टमेंट करना होगा साथ ही बाजार की तलाश करनी होगी ।
अरुण यादव। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।