गांव की सेहत का मददगार आशा बहुओं का स्मार्टफोन

asha umeshउमेश कुमार

अब जब सुनीता देवी किसी गर्भवती महिला के पास जाकर आयरन गोली खाने के फायदे बताती हैं, तो उस महिला के साथ-साथ उसकी सास और घर के अन्य सदस्य भी गौर से सुनते हैं। सुनीता का स्मार्ट फोन वहीँ की स्थानीय बोली में गर्भावस्था में आयरन गोली खाने के फायदे और उसके प्रभाव पर आडियो सन्देश सुनाता है। साथ ही स्मार्ट फोन गर्भवती महिला से सवाल भी करता है कि पिछली बार उसने अपनी स्वास्थ्य जांच कब करवाई थी। महिला के जवाब और हेल्थ कार्ड को देखकर यह जानकारी सुनीता देवी फोन में भर देती हैं। सुनीता देवी जैसी लगभग तीन सौ आशा बहुएं उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले में स्मार्टफोन की मदद से गाँव में स्वास्थ्य स्तर सुधारने की मुहिम में लगी हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, कैथोलिक रिलीफ सर्विसेज (सी.आर.एस) और वात्सल्य नामक स्वयंसेवी संगठन की मिली-जुली पहल से आशा बहुओं के काम को ध्यान में रखते हुए एक स्मार्ट फोन एप्लीकेशन बनाया गया। इस एप्लीकेशन को शुरूआती तौर पर 11 आशा बहुओं के साथ शुरू किया गया। लगभग छह महीने गहनता से यह अध्ययन किया गया कि किस तरह इस एप्लीकेशन को और बेहतर बनाया जा सकता है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग की मदद से गर्भवती महिलाओं के सहयोग सम्बन्धी विभिन्न सन्देशों को स्थानीय बोली में बदलकर एप्लीकेशन में शामिल किया गया। चाहे गर्भावस्था में आयरन गोली खाने की बात हो , या फिर टी टी इंजेक्शन लगवाने की,  सारे सन्देश स्थानीय भाषा में ही तैयार किये गये हैं। साथ ही इन संदेशों को एक आशा की आवाज में ही रिकार्ड करवाया गया है। आशा बहु जब इस स्मार्ट फोन में गर्भवती महिला का रजिस्ट्रेशन करती है, तब से गर्भावस्था के महीने के अनुसार सम्बंधित सन्देश एप्लीकेशन स्वयं तैयार कर देता है।

asha bahu-2ख़ास बात यह है कि एम हेल्थ के इस प्रयोग को जमीनी तौर पर लागू करते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि आशा बहुएं इस एप्लीकेशन को सिर्फ अपने काम में मदद के रूप में लें नाकि पूरी तरह इसी पर निर्भर हो जाएँ। इसीलिए गर्भवती महिला के घर भ्रमण के दौरान बातचीत के तरीकों, घर के अन्य सदस्यों को चर्चा से जोड़ने आदि विषयों पर उनकी क्षमता बढ़ाने के काम पर भी पूरा ध्यान दिया गया। आधिकतर आशा बहुओं का मानना है कि एप्लीकेशन की मदद से जो सन्देश हम देना चाहते हैं, वह बहुत स्पष्ट और सीधी-सादी भाषा में लोगों तक पहुँच जाता है। हम लोग तो कई बार बहुत सी अहम बातें बताने में चूक कर जाते हैं पर यह एप्लीकेशन कुछ नहीं भूलता।

asha bahuएक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस एप्लीकेशन की मदद से कोई भी यह जान सकता है कि आशा बहु ने गर्भवती महिला के घर कब-कब भ्रमण किया और कौन-कौन से सन्देश उसे सुनाये। साथ ही यह भी जाना जा सकता है कि एक सन्देश और दूसरे सन्देश को सुनाने की बीच कितना अंतर था। ताकि यह सुनिश्चित हो सके की सन्देश सुनाये जाने के बाद कोई चर्चा हुई या नहीं। इन सभी तीन सौ आशा बहुओं की मासिक रिपोर्ट उसके भ्रमण के आधार पर साफ्टवेयर अपने आप तैयार कर देता है। इस रिपोर्ट को ब्लाक के स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (एच.ई.ओ.) के साथ साझा किया जाता है। इसके आधार पर मासिक आशा बैठक के दौरान एच.ई.ओ. आशाओं से उनकी प्रगति रपट पर चर्चा करती हैं और क्षेत्र में होने वाली दिक्कतों को हल करने के उपाय भी सुझाती हैं। अच्छी बात यह है कि उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 20 आशा बहुओं पर उनके काम में सहयोग के लिए एक नए कैडर आशा संगिनी को लाया गया है। ये आशा संगिनी भी आशाओं के बीच से ही चुनी गयी हैं। इसलिए वे आशाओं के काम और आने वाली दिक्कतों को बखूबी जानती हैं। इन संगिनियों के सक्रिय सहयोग से आशाओं का काम और बेहतर हुआ है।

यदि हम कौशाम्बी में स्वास्थ्य मापकों पर गौर करें तो जहाँ एक तरफ स्वास्थ्य केन्द्रों पर सुरक्षित प्रसव की संख्या में इजाफा हुआ है, वहीँ दूसरी ओर स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर नियमित जांचों के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। यह एक शुरुआत भर है। इस प्रयोग में यह ध्यान रखा गया है कि टेक्नोलॉजी किसी भी स्तर पर हावी न हो बल्कि वह सिर्फ एक मददगार की भूमिका तक ही सीमित रहे। इसीलिए स्मार्टफोन एप्लीकेशन के साथ- साथ आशाओं की परामर्श क्षमता बढ़ाने के काम को पहले की तरह ही जारी रखा गया है। कोशिश यह भी है कि राज्य के अन्य जिलों में इस प्रयोग को लागू किया जाये।       


photo-umeshउमेश कुमार। माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के 2001 बैच के छात्र रहे हैं। विकास से जुड़े मुद्दों अपर सक्रिय लेखन। नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ सक्रिय रूप से काम करने का लगभग डेढ़ दशक का अनुभव। वर्तमान में लखनऊ में कार्यरत।


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