गांव की माटी की महक

गांव की माटी की महक

श्वेता जया के फेसबुक वॉल से साभार

क्या आपने गाँव को करीब से देखा है? खपरैल के घर, फूस की मड़ई, छान छप्पर, खूंटे पर बँधी गाय, भूसहूल, खेतों के मेड़, जुताई करते बैल, धान की रोपाई, मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाती अम्मा, कुएं से पानी निकालती दादी, बछिया को सुघराती नानी, मिट्टी में लोट के कंचे खेलते बच्चे, चापा कल का ढेंचो ढेंचो, खेत में लगे मचान और हल जोतते किसान… अगर नहीं देखा तो हिंदुस्तान की असली तस्वीर नहीं देखी। आपके बच्चे ”आलू के पेड़ ” ही कहेंगे और आप उन्हें कभी वास्तविक भारत समझा नहीं पाएंगे।
हाँ हमने देखा और जीया है इस भारत को, ट्टी में सने हैं, पेड़ पर चढ़े हैं, बरगद के पेड़ से लटक कर खूब झूले हैं,नानाजी के साथ मचान पर बैठ कर खेतों की रखवाली की है, गाय चराई है और उसका दूध भी दूहा है। द में भूसा और खल्ली सान के खिलाया भी है। छड़े को गोद में ले के लाड भी किया है।खाट पर महीनों सोए हुए हैं और खेत के बोरिंग पर नहाए भी हैं,लौकी कद्दू, मिर्च, पालक, भुट्टा और आलू सबकी बुआई की है और हल के पाटा पर बैठकर सैर भी किया है चना बथुआ के साग खोंटे हैं और पेड़ पर बैठ के डाइरेक्ट मुंह से तोड़कर जामुन भी खूब खाए हैं। मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाया है और बैलगाड़ी पर मेला घूमने भी गए हैं । हाँ, मुझे लगता है जिंदगी का असली मज़ा वही था। बचपन… गाँव का बचपन… हिंदुस्तान की मिट्टी में गुज़रा असली बचपन… जो ज़मीन से जुड़े होने में मदद करता है… और हम क्या हैं इसका हर पल एहसास कराता है।
तो एक बार सोचिएगा ज़रूर कि गर्मी और नए साल की छुट्टियों में, पर्व त्योहार में आपको विदेश घूमने जाना है या बच्चों को असली हिंदुस्तान दिखाना है।


श्वेता जया पांडे /  इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा । इलाहाबाद से ही पत्रकारिता की शुरुआत कर आज दिल्ली में अपनी अलग पहचान बनाने में मशगुल ।

One thought on “गांव की माटी की महक

  1. अब्बड़ सुग्घर वर्णन गाँव के जीवन ही सच्चा जीवन हवय शहर मा तो केवल बनावटी जीवन हवय। बधाईयाँ

Comments are closed.