बिहार में शराबबंदी के बाद देश के दूसरे राज्यों में शराबबंदी की मांग जोर पकड़ती जा रही है । लिहाजा जनता के गुस्से को भांपते हुए बीजेपी शासित राज्य एक-एक कर शराबबंदी का फैसला करने लगे हैं । हाल ही में बिहार दौरे पर गए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी अपने राज्य में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी का ऐलान किया है । रमन सरकार एक तरफ तो शराबबंदी का ऐलान कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ इस फैसले से पहले मार्च के आखिरी हफ्ते में शराब बेचेने का कानून पास कर रखा है। ये कानून रमन सरकार की मंशा पर सवाल उठाता है हालांकि जनता के गुस्से को रमन सिंह वक्त रहते भांप गए और शराबबंदी का ऐलान कर दिया । आखिर छत्तीसगढ़ में शराब की दुकान और उससे हर दिन दो चार होती आम जनता के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है । इसका जायजा लिया शिरीष खरे ने ।
स्कूली छात्राओं के रास्ते में पियक्कड़ों का मेला
सरकार के शराब बेचने के फैसले के बाद जब हमने प्रदेश के कुछ इलाकों पर नजर डाली तो रोंगटे खड़े हो गए। हर गांव की कहानी सोचने पर मजबूर कर देती है। रायगढ़ की एक महिला की कहानी तो रुला गई। वहीं, कोरबा में सालों से सड़क की लड़ाई लड़ रहे लोगों की कहानी ने तो मन-मस्तिष्क को झकझोर दिया। राजनांदगांव की बच्चियां जब अपना बैग लेकर शराब दुकान से आगे गुजरती तो सरकार का नारा ‘बेटियां पढ़ेंगी, आगे बढ़ेंगी’ झूठा-सा लगने लगा। धमतरी, जांजगीर-चांपा, दुर्ग और कबीरधाम में भी हालात ऐसे दिखे।
रायगढ़: शराब के लिए बंधक बना राशन-कार्ड
शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्राम मिड़मिडा में करीब 20 से 25 परिवार ऐसे हैं, जो मजदूर और गरीब तबके के हैं। इसके कारण इनके नाम पर राशन-कार्ड भी बना था और सभी को उम्मीद थी कि वे भूखे पेट नहीं रहेंगे, लेकिन घर के कई सदस्यों के शराब का आदी होने से राशन-कार्ड गिरवी रखे जा चुके हैं। कई परिवारों पर कर्ज का बोझ चढ़ गया है। इसके बाद भी जैसे-तैसे परिवार की गृहस्थी चलती रही, लेकिन शराब ने घर में रखे अन्य सामान भी बिकवा दिए। स्थानीय लोगों के मुताबिक इस गांव में कई ऐसे शराबी मौजूद हैं, जो राशन-कार्ड से हर माह राशन उठाते रहे और वह राशन उनके घरों तक पहुंचा ही नहीं। उस राशन को रास्ते में ही बेच दिया, जिसके बदले में शराब खरीदी गई । मिड़मिड़ा ग्राम पंचायत में ऐसी और कई घटनाएं हैं, जिनमें शराब ने पूरा घर बर्बाद कर दिया है। शराब सेवन के लिए घर के सामानों को बेच देने वाले पति से परेशान एक महिला ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वह पूर्व में हुए शराब दुकान के खिलाफ आंदोलन में करीब सवा सौ दिन तक डटी रही। महिला ने बताया कि शराब दुकान बंद होने से महिलाओं के साथ मारपीट में कमी आएगी। कई घरों के जरूरी सामान भी बिकने से बच जाएंगे और पैसों की बचत होगी।
राजनांदगांव: मयखाने से गुजर कर कौन सा फलसफा पढ़ेंगी बेटियां!
शहर से सटे मोहारा बस्ती के पास ही प्रशासन ने बायपास पर शराब की दुकान खुलवाई, जहां से रोज स्कूली छात्राओं की आवाजाही होती है। दुकान खुलने के बाद अब यहां पीने वालों का मेला लग रहता है। इसी माहौल के बीच छात्राएं आ और जा रही हैं। प्रशासन ने जानबूझकर माहौल खराब कराया। ऐसा इसलिए कि मोहारा के रहवासियों ने सड़क पर उतरकर अपनी पीड़ा बताई थी। विशेषकर महिलाओं ने मौके पर पहुंच रहे अफसरों से कहा था कि इसी रास्ते से गांव के स्कूली बच्चे आते-जाते हैं, जिनमें छात्राओं की संख्या ज्यादा है। पार्षद अवधेश प्रजापति बताते हैं, ‘श्रमिक वार्ड की बेटियों को उनके पिता बहुत मुश्किल से पढ़ाई कराने के लिए शहर भेजते हैं। बालोद मार्ग पर वाहनों का दबाव अधिक रहता है। इसी रास्ते पर प्रशासन ने यह जानते हुए भी कि बेटियों का आना-जाना है, दुकान खुलवा दी।’ ऐसी स्थिति में अगर बेटियां पढ़ाई छोड़ देंगी तो फिर जिम्मेदार कौन होगा? बस्ती के दुर्गेश प्रजापति का कहना है कि ‘शराब दुकान खुलवाने के लिए प्रशासन ने अपनी जिद का परिचय दिया है। दुकान खुल जाने से यहां पीने वालों का जमावड़ा रहता है।’
कोरबा: 3 साल से नहीं बनी सड़क, 3 दिन में खुल गई शराब की दुकान
दो गांव को जोड़ने वाली महज डेढ़ किलोमीटर लंबी सड़क के लिए तीन साल से संघर्ष हो रहा है। सड़क न बनने से लोगों को करीब आठ किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। वे नकटीखार के रास्ते से होते हुए रिस्दी चौक और फिर कोरबा शहर की ओर जाने वाली सड़क से जुड़ते हैं। अगर यह सड़क बनी तो भालूसटका के अलावा रजगामार क्षेत्र के लिए वरदान साबित होगी। उनके लिए रेलवे स्टेशन पहुंचना आसान हो जाएगा। लेकिन, ऐसा नहीं हो पा रहा। दूसरी ओर, दादर में तीन दिन से भी कम समय में शराब की दुकान बनकर तैयार हो गई है। एक अप्रैल से इसका संचालन भी शुरू हुआ। सड़क के लिए एक करोड़ 40 लाख की है जरूरत । कोरबा जिले में आने वाले तीन वर्षों के लिए केवल खनिज न्यास मद से 600 करोड़ रूपए के विकास कार्य प्रस्तावित हैं। दादर से भालूसटका की जर्जर डेढ़ किलोमीटर लंबी सड़क के निर्माण पर प्रशासन विचार कर रहा है।
महासमुंद : इन्हें भगवान का भी डर नहीं
चर्रा सांसद चंदूलाल साहू का आदर्श ग्राम है, लेकिन सरकार की हठधर्मिता देखिए कि विरोध के बावजूद यहां भी शराब की दुकान खोल दी गई, जिसकी शिकायत सांसद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की है। बुनियादी सुविधाओं के नाम पर जिस गांव में बीते दिनों दस करोड़ रु. खर्च किए, उसी की एक किमी सड़क से शराब की दुकान को सीधे जोड़ा गया है। शत-प्रतिशत ओडीएफ और डिजीटल ग्राम के तौर पर पहचान बनाने वाले चर्रा में शराब की दुकान मजार से आधे किमी की जद में है। वहीं, धमतरी के हटकेशर वार्ड में विधि-विधान से हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की थी, जिसे अफसरों ने हटा दिया।
दुर्ग :गांव जाने के हर रास्ते पर शराब दुकान
लोग शराबियों से बचने के लिए जो नया मार्ग बना रहे हैं, सरकार उसी रास्ते पर शराब की दुकान तान रही है। विरोध में जब दो सौ महिलाओं ने कलक्टर के सामने प्रदर्शन किया तब भी किसी पर कोई असर नहीं दिखा। दुर्ग जिले की उमरपोटी ग्राम पंचायत एक या दो नहीं बल्कि तीन शराब दुकानों से घिरी है। अफसरों ने यहां घुसने के हर रास्ते पर एक-एक दुकान खोल दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद जिले के राजमार्गों से 41 दुकानों को हटाया गया है। इनमें से अधिकतर को पुरानी जगहों के आसपास सरकारी या निजी जगहों पर शिफ्ट किया गया है। इनमें से उतई नगर पंचायत की दो दुकानों को नई व्यवस्था के तहत उमरपोटी जाने के रास्ते पर शिफ्ट किया गया है, जबकि उमरपोटी-नेवई और पुरई-धनोरा-रिसाली मार्ग पर पहले से ही दुकानें चल रही हैं। ग्रामीणों का सबसे ज्यादा विरोध उतई मार्ग की सीमा पर इंदिरा नगर में खोली दुकान को लेकर है। इसके नजदीक शासकीय हाई और हायर सेकंडरी स्कूल है।
शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति राजस्थान पत्रिका के लिए रायपुर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।