अपन जैसे घुमक्कड़ के लिए इन दिनों घर की यह बालकनी सबसे प्रिय जगह है, जहां दिन भर में दसियों बार पहुंचता हूं। यहां आकर कई दोस्त भी मिल जाते हैं। ये हरे-भरे पेड़ इन दिनों में नजदीकी दोस्त बन गये हैं। परेशान और दुखी करने वाली ख़बरों के बीच इनके पास आने पर काफ़ी राहत मिलती है और हाथ में चाय का कप हो तो फिर पूछ्ना ही क्या? चाय पीते हुए इन पेड़ों, हवा में हिलते इनके पत्तों, सुगठित डालियों और कोमल टहनियों से संवाद में कई नये विचार भी उभरते हैं।
इसी बालकनी से शाम को नीचे सड़क पर छोटी-चमकीली साइकिलों पर सवार बच्चों की मस्त दुनिया नज़र आती है। हाल तक पूरे लाकडाऊन’ में यह दुनिया गायब थी पर आहिस्ते-आहिस्ते अब वापस आ गयी है। राजधानी और आस-पास के इलाकों में हालात तेज़ी से बिगड़ रहे हैं। हो सकता है, बच्चों की दुनिया को फिर कुछ समय के लिए गायब होना पड़े। मां-पिता इन्हें डांट-डपट कर बेडरूम, ड्राइंगरूम और टीवी पर्दे तक सीमित कर दें। फिलहाल, इन्हें कुछ आजादी है। हर शाम ये पांच बजते-बजते अपने घरों से बाहर निकल पड़ते हैं और सोसायटी की उदास पड़ी सड़कें चहकने लगती हैं।
ये अब भी बेफिक्र और मस्त हैं। घंटियां बजाते हुए वे अपनी-अपनी साइकिलों को तेज गति से दौड़ाते हैं। सिर्फ़ बंदरों के आने-जाने पर ही उनकी साइकिलें मद्धिम होती हैं। ये इन दिनों लंबी छुट्टियों पर हैं, इन सबके स्कूल बंद हैं। मां-पिता इनकी सेहत और रख-रखाव के लिए चाहे जितने चिंतित और सतर्क हों पर हमारी सोसायटी की यह ‘बानरी-सेना’ बंदरों के अलावा किसी से नहीं डरती। अपने मां-पिता और अन्य परिजनों की तरह ये किसी ‘दृश्य’ या ‘अदृश्य’ के ‘भक्त’ भी नहीं हैं। हर दिन शाम को (अंधेरा होने से पहले) इनके बीच गये बगैर मेरा काफी वक्त इनकी साइकिल-रेस और तरह-तरह के खेल देखते बीतता है।
आज के दौर में जब बहुत सारे नजदीकी लोग और दोस्त-परिचित एक-दूसरे से मिल नहीं पा रहे हैं, फोन पर एक-दूसरे का हाल-चाल लेने में भी संकोच कर रहे हैं, मेरी बालकनी तक अपनी छाया पहुंचाते ये पेड़, अक्सर इन पर पहुंचने वाले बंदर और हर शाम नीचे सड़क पर घंटियां बजाते हुए साइकिल दौड़ाते ये बच्चे मेरे नजदीकी दोस्त बन गये हैं।
उर्मिलेश/ वरिष्ठ पत्रकार और लेखक । पत्रकारिता में करीब तीन दशक से ज्यादा का अनुभव। ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘हिन्दुस्तान’ में लंबे समय तक जुड़े रहे। राज्यसभा टीवी के कार्यकारी संपादक रह चुके हैं। दिन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता करने में मशगुल।