बीमार ‘स्वास्थ्य केंद्रों’ की फिक्र किसे है?

मधेपुरा के खोपैती पंचायत का स्वास्थ्य केंद्र। फोटो-रुपेश कुमार
मधेपुरा के खोपैती पंचायत का स्वास्थ्य केंद्र। फोटो-रुपेश कुमार

एमएलसी चुनाव के बहाने बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सियासत एक बार फिर सुगबुगाने लगी है। इन दिनों एमएलसी के लिए कोसी क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने के बाद उम्मीदवार जनसंपर्क अभियान में जोर-शोर से लगे हैं। इस चुनाव में मतदाता हैं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के जनप्रतिनिधि। सभी नेताजी पंचायत जनप्रतिनिधियों को उनके साथ हुए अन्याय और इसके ख़िलाफ़ ईंट से ईंट बजाने का आश्वासन देने में जोर शोर से लगे हैं। जिले में प्रखंडवार मुखिया संघ भी बना है और अध्यक्ष भी हैं। अध्यक्ष जी की इन दिनों पौ बारह है। हर प्रखंड में पंचायत प्रतिनिधियों की बैठक कभी इस दल के साथ तो कभी उस दल के साथ हो रही है। सबको एक समान भरोसा भी मिल रहा है लेकिन सब जानते हैं कि यह भरोसा तो अंतिम बोली पर ही निर्भर करेगा। इस चुनाव पर अप्रत्यक्ष वोटर यानी आम आदमी की भी नज़र है। पंचायत प्रतिनिधियों की हरकत पर कस्बों में चौराहों पर, और चाय की दुकानों में चर्चा चल रही है।
सिंहेश्वर थाना के सामने बेचन की चाय की दुकान पर अखबार में छपे प्रचार अभियान पर बहस चल रही है। एक तरफ तीन वार्ड सदस्य हैं और दूसरी ओर सिंहेश्वर पंचायत के रिंकू सिंह… अच्छा ये बताइए तो सिंहेश्वर और गौरीपुर तो आसेपास है। सिंहेश्वर पीएचसी से काम चल जाता है लेकिन 10 किमी दूर बैहरी पंचायत का लोग कहां इलाज कराता है।
जवाब था – सिंहेश्वर..!
आठ किमी पर है इटहरी गहुंमनी… है न ! यहां का लोग कहां जाता है…?
जवाब एक बार फिर वही था – सिंहेश्वर..!
त.. बताइए कि पंचायत बनाने का कोन फैदा हुआ..? रिंकू मूड में आ गये थे. ‘‘ किस बात का पंचायत खाली मुखिया जी और पंचायत समिति के योजना के लिए..?
सच ही तो है। मनरेगा हो या इंदिरा आवास या अन्य विकास योजनाएं। मुखिया जी सहित अन्य पंचायत प्रतिनिधियों की दिलचस्पी केवल और केवल इसी में है। न पंचायत में पुस्तकालय है न गांव के लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं ही मुहैया हैं। अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र बनाये तो गये हैं लेकिन उन भवनों में कहीं ताला लगा है तो कहीं उसका इस्तेमाल भूसा रखने के लिए किया जा रहा है।
मधेपुरा प्रखंड में है खोपैती पंचायत. यहां के ग्रामीण वर्षों से बंद पड़े अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र को शुरू कराने के लिए डीएम के जनता दरबार में कई बार गुहार लगा चुके हैं। गांव की आबादी सात हजार है. यहां से नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र सदर अस्पताल 12 किलोमीटर दूर है। एक और कच्चा रास्ता है जो आठ किलोमीटर लंबा है। वर्षों पहले गांव में अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केद्र खुला था लेकिन वर्षों से स्वास्थ्य विभाग से कोई नहीं आया है। कुछ वर्ष पहले इस एपीएचसी की हल्की फुल्की मरम्मत की गयी। गांव वाले कहते हैं कि यह ज़रूर हल्की मरम्मत कर भारी भरकम बिल निकालने का खेल रहा होगा।
करीब वर्ष 1960 में गांव के जमींदार गंगा प्रसाद सिंह की मसोमात बहू तारा देवी ने अस्पताल के लिए जमीन का दान दिया था। इस आशा के साथ कि गांव में एक अस्पताल होगा। अब भवन का उपयोग चारा रखने के काम में हो रहा है। वहीं दूसरे भवन का ग्रिल टूट गया है। जंगल झाड़ उग आये हैं। यही हाल रहा तो कुछ ही वर्षों में पूरा एपीएचसी खंडहर में तब्दील हो जायेगा। यही हाल पूरे जिले में बने अरिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र का है।
हैरत है कि पंचायत प्रतिनिधियों की बैठक में कभी इस बात का जिक्र नहीं होता. कहीं भी नहीं… कभी भी नहीं…!
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-मधेपुरा से रुपेश कुमार की रिपोर्ट। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।

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