टीम बदलाव
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बाल यौन हिंसा की लगातार बढ़ रही घटनाओं को राष्ट्रीय आपातकाल बताया। उन्होंने कहा, हर पल दो बेटियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं और इसमें से कई को मार दिया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आत्मा पर चोट हो रही है और हम खामोश हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘आधुनिक और स्वतंत्र भारत बनाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि बच्चे असुरक्षित हैं।’ उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे इस मुद्दे की गंभीरता को समझें और दुष्कर्म के शिकार बच्चों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके, इसके लिए संसद का कम से कम एक दिन बच्चों को समर्पित करें।
कैलाश सत्यार्थी ने ‘’द चिल्ड्रेन कैननोट वेट” नामक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट बाल यौन शोषण के लंबित पड़े मुकदमों की एक राज्यवार रूपरेखा प्रस्तुत करती है। भारत में बाल यौन दुर्व्यवहार के मामलों में लचर न्यायिक व्यवस्था के चलते न्याय मिलते-मिलते दशकों लग जाते हैं। बच्चों को स्वाभाविक रूप से न्याय मिल सके इसके लिए उन्होंने ‘’नेशनल चिल्ड्रेन्स ट्रिब्यूनल” की मांग की। पॉक्सो के तहत लंबित पड़े मुकदमों के त्वरित निपटान के ख्याल से उन्होंने फास्ट ट्रैक कोर्ट की भी मांग की। कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि दायित्वपूर्ण और त्वरित न्याय मिलने के अभाव में ही कठुवा, उन्नाव, सूरत और सासाराम में बलात्कार और दुर्व्यवहार के लगातार मामले सामने आ रहे हैं और बढ़ रहे हैं।
‘द चिल्ड्रेन्स कैननोट वेट” और लंबित मामले
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सबसे कम समय में न्याय देने वाले राज्य पंजाब, नगालैंड और चंडीगढ़ हो सकते हैं, जहां बच्चों को 2018 में न्याय मिल सकता है।
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हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दादर और नागर हवेली में बच्चों को 2019 में न्याय मिल सकता है।
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उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाल यौन शोषण के शिकार बच्चे 2026 में न्याय की उम्मीद कर सकते हैं। दिल्ली और बिहार के बच्चों को न्याय के लिए 2029 तक इंतजार करना पड़ेगा। वहीं, महाराष्ट्र में इसके लिए बच्चों को 2032 तक इंतजार करना पड़ेगा।
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केरल के बच्चों को 2039 तक, मणिपुर के बच्चों को 2048 तक और अंडमान निकोबार के बच्चों को 2055 तक न्याय के लिए इंतजार करना पड़ेगा।
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गुजरात में न्याय के लिए जहां 2071 तक इंतजार करना पड़ेगा, वहीं अरुणाचल प्रदेश में इसके लिए 2117 तक इंतजार करना पड़ेगा।
फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश का ही एक उदाहरण यदि हम सामने रखें तो, वहां के एक बच्चे को, जिसके यौन शोषण का मामला रजिर्स्टड है, उसे न्याय के लिए 99 साल इंतजार करना होगा। वह भी, तब जब आज से कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि उसको जिंदगी भर न्याय नहीं मिल पाएगा। गुजरात की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है। गुजरात में बलात्कार के शिकार बच्चे को न्याय के लिए 53 साल तक लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
बाल यौन शोषण के तहत दर्ज मुकदमों को निपटाने में जिस तरह से लंबा और दुखद इंतजार करना पड़ता है उस स्थिति-परिस्थिति में कैलाश सत्यार्थी सवाल करते हैं कि, क्या आप चाहते हैं कि 15 वर्ष के बच्चे के साथ आज जो दुर्व्यवहार हुआ है उसके लिए 70 वर्ष की उम्र तक उसे न्याय के लिए इंतजार करना पड़े? कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन की ओर से आयोजित शोध संगोष्ठी “एवरी चाइल्ड मैटर्स : ब्रिजिंग नॉलेज गैप्स फॉर चाइल्ड प्रोटेक्शन इन इंडिया” में कई और मुद्दे भी उठे।
इस रिपोर्ट के अलावा दो अन्य रिपोर्ट भी इस कार्यक्रम में जारी की गई। एक रिपोर्ट भारत के युवाओं के बीच एक ओर जहां जागरुकता को बढाने और बाल यौन दुर्व्यवहार को कम करने से संबंधित है, वहीं दूसरी रिपोर्ट बाल यौन दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप बच्चों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव को समझने और उससे निपटने और उसका स्थाई समाधान खोजने से संबंधित है।
(प्रेस रिलीज पर आधारित रिपोर्ट)