घोंचू उवाच- जैसी बहे बयार ,पीठ तब तैसी दीजिए

घोंचू उवाच- जैसी बहे बयार ,पीठ तब तैसी दीजिए

ब्रह्मानंद ठाकुर

घोंचू भाई खेती – पथारी का काम निबटा कर शाम होते ही मनकचोटन भाई के दरबाजे पर जुम गये। मनकचोटन भाई का दरबाजा  टोले के बुजुर्गों का एक ऐसा अड्डा है जहां शाम के बखत काज- परोजन से फुर्सत पाते ही लोग जुटने लगते है और बतकही शुरू हो जाती है। खेती – पथारी  ,हाइब्रिड  बीज की कीमत के अनुपात में किसानों की उपज का अलाभकारी मूल्य, श्रीविधि और जीरो टिलेज से धान की बुआई , एक हजार रूपये क्विनटल पर भी मक्के का खरीददार न मिलना , बिजली का समय पर दगा देना आदि की चर्चा के साथ प्रदेश और देश की राजनीतिक गतिविधियों की चर्चा और उस पर बहस भी यहां होती है। इसमें शामिल लोग अपनी अपनी  समझ से इस बैठकी मे इस पर चर्चा करते हैं।

इस बीच  भूजा, कचरी या कभी- कभी  लिट्टी-चोखा भी प्लेट में भर-भर कर अंदर से  आ जाया करता है। मनकचोटन भाई के बिना कुछ कहे हुए ही।  हां ,चाय नियमित आ जाती है। एक बार बतकही शुरू होने के बाद और दुबारे लोगों को  यह बतकही समाप्त कर अपने – अपने घर वापस जाने से पहले।  इस अंतिम दौर की चाय को एक तरह से बतकही को समाप्त करने का मनकचोटन भाई का परोक्ष संकेत ही समझ लीजिए।

तो  कल  शाम के छ:  सवा  छ: होते ही मनकचोटन भाई के दरबाजे पर पहले घोंचू भाई पहुंच गये फिर उनकी देखा – देखी परसन कक्का ,चुल्हन भाई, बटेसर , बिल्टु भाई, भगेरन चच्चा भी आ गये। हमहूं जल्दी-जल्दी गाय दूहे और दूध वाला बाल्टी धनेसरा के हाथ में थमाते हुए उसे तिमूल के सेंटर पर  पहुंचाने को कह कर जल्दी – जल्दी  कल पर हाथ – मुंह धोए और बैठकी में जुम गये। इसी बीच मनकचोटन भाई का नाती मनसुखबा जिसको मनकचोटन भाई ने हाल ही में एक लैपटाप खरीद दिया हे , अपने लैपटाप से एक गीत बजाने लगा – ‘  जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे / तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे ।’

इस गीत को सुनते ही घोंचू भाई अचानक ध्यानमग्न हो गये। मुझे लगा, घोंचू भाई  गम्भीर होकर गीत के भाव को ह्रदयंगम कर रहे हैं। उनके चेहरे का भाव भी कुछ ऐसा ही बता रहा था। वहां बैठे अन्य लोग  सदा मुखर रहने वाले घोंचू भाई का यह मुद्रा देख भकुआ गये कि आखिर इस गीत में  वैसा क्या है कि घोंचू भाई  इतने मनोयोग से सुन रहे हैं। मुझसे रहा नहीं गया तो मैने  घोंचू भाई से कहा –‘ ई गीत तो सफर फिल्म का है जिसे मुकेश ने गाया है, इसका भाव यह है कि एक किशोर वय का प्रेमी अपनी प्रेमिका को पटाने के लिए गा रहा है। उसे वह मुलम्मा- पट्टी दे रहा है। गदह पच्चीसी वाली उमिर में तो ऐसा होता ही है ,घोंचू भाई। तब ये युवक अपनी प्रेमिका के लिए आसमान से तारे तोड़ लाने और उससे उसकी मांग सजा देने तक की बात करते नहीं थकते और  यदि इस झांसे मे आकर उसने विवाह कर लिया तब जो होता है वह किसी से छिपा नहीं रहता । हर दिन गाली – गलौज और मारपीट की  रुटीन- सी बन जाती है।
उस गीत पर मेरी इस यथार्थवादी प्रतिक्रिया के समाप्त होते ही, गीत पूरा बज कर खत्म हो चुका था। आगे कोई गीत  जब नहीं बजा तो मुझे लगा, शायद मनसुखबा सो गया है। आजकल का इसकुलिया लड़का पढ़ते – पढ़ते सो जाया करता है। मनसुखबा भी पढ़ने के नाम पर लैफटाप पर गीत बजा कर सो गया था। इस गीत को सुनकर घोंचू भाई को आज की बैठकी का एक बड़ा मुद्दा मिल गया था। वे शुरु हो गये, कहन लगे -‘ तुमको  भले ही इस गीत में प्रेमी – प्रेमिका का आपसी प्रेम का इजहार दिखाई देता हो लेकिन आज के जमाने में यह गीत अपने भीतर बहुत बड़ा संदेश छिपाए हुए है। समझो , जिसने इस संदेश की मूल भावना को पकड़ लिया, उसकी इस लोक में चांदी ही चांदी है और जिसने इस  गीत को  दो प्रेमी – प्रेमिका का  एक-दूसरे के प्रति दीर्घ प्रेमालाप समझ लिया, उसकी लुटिया डूबी ही समझो। उसका कोई तारणहार नहीं। वह तिल – तिल कर जलेगा , घुट- घुट  कर मरेगा।
मैंने पूछा –‘सो कैसे ? ‘ इस पर घोंचू भाई  ने अपनी बात बाबा नागार्जुन की एक चर्चित बाल कहानी सुनाते हुए  शुरू की। ‘ पुराने जमाने में एक जंगल में  शेर, स्यार, सूअर और खरगोश में बड़ी गाढी दोस्ती थी। एक दिन शेर  कहीं से शिकार कर भरपेट भोजन करने के बाद अपनी गुफा के सामने लेटा हुआ था। उसके आस-पास  खरगोश , सूअर और स्यार बैठे हुए थे। अब चूंकि शेर भरपेट भोजन किए हुए था  तो उसका डकार लेना स्वाभाविक ही था। शेर ने डकार ली  तो उसका  दुर्गंध सूअर ,स्यार और खरगोश की  नाकों तक पहुंचा। सूअर ने कहा ,श्रीमान् ,आपके मुंह से दुर्गंध आ रहा है।’  यह सुनते ही शेर का गुस्सा सातवें आसमान पर। उसने मन ही मन सोचा ‘ मैं जंगल का राजा और मेरे सामने मेरी ही तौहनी !  इस तुच्छ जंतु की इतनी हिम्मत ! शेर ने आव देखा न  ताव , मारा सूअर पर एक झपट्टा और उसका काम तमाम। शेर ने सूअर को भी उदरस्थ कर लिया।
अब बारी बेचारे स्यार की थी। शेर ने फिर डकार ली और स्यार से पूछा – कहो , तुम्हें  भी मेरे मुंह से दुर्गंध महसूस हो रही है ?  ‘ वैसे भी स्यार  काफी चालाक होता है। उसने सूअर की दुर्गति देख ली थी। उसने झट से कहा –  नहीं महाराज , नहीं , आपके मुंह से तो इलायची की गंध आ रही है ।’  शेर ने सोंचा , मैंने कभी इलायची खाई नहीं ,उसका स्वाद तक नहीं जाना और यह मेरे मुंह से इलायची की गंध वाली बात कह रहा है ! कितना बड़ा झूठा और चापलूस है यह! ‘ शेर ने स्यार की भी सूअर वाली दुर्गति कर डाली। अब बारी खरगोश की थी। शेर ने खरगौश से पूछा –‘ कहो, तुमको मेरे मुंह का गंध कैसा लगा ?’  खरगोश स्थिति की गम्भीरता समझ चुका था।  उसने झट से हाथ जोड़ते हुए कहा – ‘ हुजूर ,मुझे चार दिनों से भयंकर जुकाम हो आया है। दोनों नाक बंद है । इसलिए मैं तो किसी तरह का  गंध महसूस ही नहीं कर रहा हू।’ इस पर बेचारे खरगोश की जान बच गई और वह उछलता हुआ जंगल मे अदृश्य हो गया, जहां आज भी जंगल में मौज मना रहा है।
घोंचू भाई ने फिर इसका आधुनिक संदर्भों में विस्तार से विश्लेषण करते हुए कहा कि सच कहने वाले और सच को झूठ बनाकर परोसने वाले दोनों आज मारे जा रहे हैं। भला इसी में है कि  यदि जीवित रहना है, ऐशो-आराम की जिंदगी जीना है तो जनविरोधी व्यवस्था का नग्न सच कभी भी  उजागर नहीं करो।  घोंचू भाई इतने पर भी नहीं रुके। उन्होंने एक कवि की कविता भी सुना दी।
” राजा जी नंगा है ,चुप रहना ,मत बोलो
यह तो बे ढंगा है ,चुप रहना ,मत बोलो
मानुष बहु रंगा है ,चुप रहना मत बोलो
नंगापन ट्रेड है , नंगापन बिकाउ है
नंगापन ग्लोबलाइजेशन है
राजा जी नंगा है ,चुप रहना मत बोलो। “
 मुझे घोंचू भाई के तर्क में दम दिखाई देने लगा किंतु मैंने अपनी शंकाओं के समाधान के उद्देश्य से उनसे सवाल किया कि जब ऐसी ही बात थी तो आजादी की लड़ाई में अपना कैरियर दांव पर लगा देने वाले शहीद राष्ट्भक्तों  के त्याग और बलिदान को क्या यों ही व्यर्थ जाने दिया जा सकता है ?  घोंचू भाई हत्थे से उखड़ गये और कहने लगे- ‘  हां   मगत सिंह , राजगुरू , सुखदेव , अशफाकुल्ला खां , खुदीराम बोस , चन्द्रशेखर आजाद , सुभाष चंद्र बोस सरीखे सैंकड़ों देश भक्त क्रांतिकारियों ने राष्ट्र हित में अपना बलिदान किया, यह बात सही है लेकिन आज उनकी जयंतियों पर  भाषण देने वाले ,उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करने वाले कितने ऐसे राजनेता हैं जो अपने बच्चों को भगत सिंह ,जैसे क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेकर देश के नवनिर्माण की खातिर शोषितो पीड़ितों की सेवा मे जुट जाने की बात कहते हैं ?
आज आप सभी लोग देख ही रहे हैं कि कुछ  संघर्षशील पत्रकार जब व्यवस्था का नग्न  सच उजागर करने की कोशिश करते हैं तो उनकी क्या गति होती है ?  गौरी लंकेश ,श्याम शर्मा , शांतनु भौमिक , के जे सिंह , राजेश मिश्र , सुदीप दत्ता , नवीन  गुप्ता , सुजात बुखारी जैसे पत्रकारों की हत्या क्या साबित करती है। और तो और बिहार के ही एक पत्रकार नवीन निश्चल की हत्या में एक मुखिया की संलिप्तता सामने आई। उस पत्रकार ने मुखिया के काले कारनामों को उजागर करने  का  काम किया था।  अपने देश में सरकार की आलोचना करने वालों की मुश्किलें बढी हैं। इसलिए यदि खरगोश की तरह जिंदा रहना है तो सच को न कहने के लिए जुकाम का बहाना तो करना ही होगा। ऐसे में सफर फिल्म का वह गीत  ‘ जो तुमको हो पसंद ,वही बात कहेंगे ,तुम दिन को अगर रात कहो ,रात कहेंगे’  में छिपे संदेश को समझते हुज अमल में लाना ही होगा, वरना….।
घोंचू भाई से मेरा अंतिम सवाल था -‘  हमारी आने वाली पीढी का क्या होगा ? इस पर घोंचू भाई  यह कहते हुए चलते बने कि हमारे पूर्वज काफी पहले कह चुके हैं  -‘ पूत कपूत त का धन संचै ,पूत सपूत त का धन संचै ? उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दीजिए। यही आज की राष्ट्र भक्ति है। मैं भी एक फिल्मी गीत गुनगुनिते हुए अपने बथान की ओर लौटता हूं  ‘ अपनी तो जैसे तैसे कट जाएगी जनाबे आली आपका क्या होगा ?


ब्रह्मानंद ठाकुर। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।