यूपी में योगी सरकार अपना शतक पूरा कर चुकी है । सरकार के 100 दिन का लेखा-जोखा पेश करने के लिए खुद मुख्यमंत्री योगी मीडिया से रूबरू हुए । इस दौरान सीएम योगी ने अपनी सरकार का खूब महिमा मंडल किया । सीएम योगी की मानें तो यूपी में कानून का राज कायम हो चुका है । कानून अपना काम बखूबी कर रहा है, लेकिन बांदा जिले में जो कुछ हो रहा है उसे देख तो ऐसा लगता नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद केन नदी का सीना चीरकर अवैध तरीके से खनन का खेल चल रहा है और ये सब हो रहा है प्रशासन की नाक के नीचे ।
ऐसा नहीं है कि सरकार के मंत्रियों, सत्ताधारी पार्टी के विधायकों या फिर स्थानीय प्रशासन अवैध खनन से अनजान है, क्योंकि बांदा में अवैध खनन पर धरना-प्रदर्शन लगातार चल रहा है । बांदा के सांडा की रहने वाली उषा निषाद ने अवैध खनन के खिलाफ पहले प्रदर्शन किया और अब वो अनशन पर बैठ चुकी हैं। ऊषा का आरोप है कि सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक के इसारे पर अवैध खनन कराया जा रहा है । ऊषा निषाद ने अवैध खनन की जांच की मांग की है और कहा है कि जब तक सरकार जांच नहीं बैठा देती तब तक वो अनशन नहीं तोड़ेंगी ।
बांदा जिले में 8 खदानों में बालू खनन की इजाजत है जबकि 20 खदानों में खनन का काम बेरोक-टोक चल रहा है । भारी-भरकम पोकलैंड और जेसीबी से दिन-रात अवैध खनन किया जा रहा है । 24 जून को इसी मामले में ऊषा निषाद ने गाँव वालों और कुछ वर्कर के साथ मिलकर धरना भी दिया था । उषा के मुताबिक बाँदा में बांसी मानपुर,कोलावल, पाणादेव , गौर शिवपुर, कुल्लूखेड़ा, बरछा, चंदौर, लोहरा, बरसडा मानपुर, बिलहरका, बड़ेहा, मुगौरा, लहुरेटा, नसेनी,बरछा, लमेहटा में खनन किया जा रहा है जबकि आठ खदान का पट्टा 6 माह के लिए टेंडर में हुआ था ।
हालांकि कुछ लोग उषा निषाद के अनशन को सियासत करार दे रहे हैं । विरोधी गुट का आरोप है कि ऊषा निषाद चाहती हैं कि खच्चर के चलिए बालू निकालने का काम करने वालों को खनन की छूट दी जाए । जबकि स्थानीय प्रशासन ने इसपर रोक लगा रखी है। सत्ता पक्ष के सूत्र बताते हैं कि अनशन सिर्फ विरोधी खनन माफियायों पर दबाव बनाने की एक कोशिश की जा रही है ताकि पिछली सरकार के दौरान खपटिहा में खनन करने वालों को इस बार भी चेकपोस्ट और बालू खनन में शामिल किया जा सके । ये वर्चस्व की लड़ाई है या फिर सियासी चाल, जो भी हो इससे तो एक बात साफ है कि केन नदी में अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा है आवाम से लेकर माननीय तक किसी की मंशा कानून के मुताबिक मानव श्रम से खनन करवाने की नहीं है। हफ्ता उगाही से लेकर अवैध वसूली तक ये जूतम-पैजार इसलिए भी की जा रही है ताकि बरसात के बाद खुलने वाले बालू व्यापार में केन का सीना चीरने वालों के मंसूबो पर पानी न फिरे । सर्वोच्चत अदालत के आदेश के मुताबिक कागज पर तो नदी में मशीन से खनन पर पूरी तरह प्रतिबन्ध है लेकिन खनन का खेल जारी है ।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।