पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से साभार
1. यह संविधान सभा भारतवर्ष को एक स्वतंत्र संप्रभु तंत्र घोषित करने और उसके भावी शासन के लिए एक संविधान बनाने का दृढ़ और गम्भीर संकल्प प्रकट करती है और निश्चय करती है।
2. जिसमें उन सभी प्रदेशों का एक संघ रहेगा जो आज ब्रिटिश भारत तथा भारतीय राज्यों के अंतर्गत आने वाले प्रदेश हैं तथा इनके बाहर भी हैं और राज्य और ऐसे अन्य प्रदेश जो आगे स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होना चाहते हों; और
3. जिसमें उपर्युक्त सभी प्रदेशों को, जिनकी वर्तमान सीमा (चौहदी) चाहे कायम रहे या संविधान-सभा और बाद में संविधान के नियमानुसार बने या बदले, एक स्वाधीन इकाई या प्रदेश का दर्जा मिलेगा व रहेगा। उन्हें वे सब शेषाधिकार प्राप्त होंगे जो संघ को नहीं सौंपे जाएंगे और वे शासन तथा प्रबंध सम्बन्धी सभी अधिकारों का प्रयोग करेंगे और कार्य करेंगे सिवाय उन अधिकारों और कार्यों के जो संघ को सौंपे जाएंगे अथवा जो संघ में स्वभावत: निहित या समाविष्ट होंगे या जो उससे फलित होंगे; और
4. जिससे संप्रभु स्वतंत्र भारत तथा उसके अंगभूत प्रदेशों और शासन के सभी अंगों की सारी शक्ति और सत्ता (अधिकार) जनता द्वारा प्राप्त होगी; और
5. जिसमें भारत के सभी लोगों (जनता) को राजकीय नियमों और साधारण सदाचार के अध्यधीन सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय के अधिकार, वैयक्तिक स्थिति व अवसर की तथा कानून के समक्ष समानता के अधिकार और विचारों की, विचारों को प्रकट करने की, विश्वास व धर्म की, ईश्वरोपासना की, काम-धन्धे की, संघ बनाने व काम करने की स्वतंत्रता के अधिकार रहेंगे और माने जाएंगे; और
6. जिसमें सभी अल्प-संख्यकों के लिए, पिछड़े व आदिवासी प्रदेशों के लिए तथा दलित और अन्य पिछड़ें वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षापाय रहेंगे; और 7. जिसके द्वारा इस गणतंत्र के क्षेत्र की अखंडता (आन्तरिक एकता) रक्षित रहेगी और जल, थल और हवा पर उसके सब अधिकार, न्याय और सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार रक्षित होंगे; और
8. यह प्राचीन देश संसार में अपना उचित व सम्मानित स्थान प्राप्त करता है और संसार की शान्ति तथा मानव जाति का हित-साधन करने में अपनी इच्छा से पूर्ण योग देता है। (राज्य सभा के पोर्टल से साभार)
यह संकल्प संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था।