ब्रह्मानंद ठाकुर
जाने-माने समाजवादी चिंतक और लेखक सच्चिदानन्द सिन्हा का चयन सत्राची फाउंडेशन द्वारा इस बर्ष के सत्राची सम्मान के लिए किया गया है।यह सम्मान कल बुधवार को उन्हें शहर के मिठनपुरा स्थित होटल मयूर में आयोजित एक समारोह में दिया जाएगा।यह जानकारी सत्राची फाउंडेशन,पटना के निदेशक डाक्टर आनन्द बिहारी ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दी है।
सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान’ की शुरुआत 2021 में की गयी थी। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित करना ‘सत्राची सम्मान’ का उद्देश्य है. 2021 में श्री प्रेमकुमार मणि और 2022 में प्रो. चौथीराम यादव इस सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। सत्राची सम्मान 2023 के लिए प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी थी।. इस समिति के सदस्य पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो. तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक प्रो. कमलेश वर्मा रहे।सत्राची फाउंडेशन के निदेशक डॉ. आनन्द बिहारी ने चयन समिति की सर्वसम्मति से प्राप्त निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि वर्ष 2023 का तीसरा ‘सत्राची सम्मान’ प्रसिद्ध लेखक-चिन्तक और राजनीतिक बुद्धिजीवी श्री सच्चिदानंद सिन्हा को दिया जाएगा.
श्री सच्चिदानंद सिन्हा जीवन भर एक लेखक, विचारक, वक्ता, पत्रकार, संपादक और कार्यकर्त्ता के रूप में सक्रिय रहे. उनकी वैचारिकी के स्रोत समाजवादी विचारधारा के भीतर मौजूद रहे, मगर उन्होंने समाजवादी राजनीति और उसके नेताओं के प्रति आलोचनात्मक दृष्टि रखने में अपना विश्वास जताया. उनके संपूर्ण लेखन, भाषण, साक्षात्कार आदि को पढ़कर यह समझा जा सकता है कि उनकी चिंता के केंद्र में न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के बारे में सोचने-विचारने और लिखने की प्रवृत्ति रही है. उन्होंने न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को समकालीन विषयों पर सूझ-बूझ के साथ लिखकर और बोलकर प्रकट किया है।
आगामी 20 सितम्बर, 2023 को श्री सच्चिदानंद सिन्हा को सम्मान-स्वरूप इक्यावन हजार रुपये का चेक, मानपत्र, अंगवस्त्र और स्मृति-चिह्न प्रदान किया जाएगा.
सच्चिदानंद बाबू का जन्म 1928 में हुआ था। आज वे लगभग 95 वर्ष के है। मूल रूप से पूर्वी चंपारण के रहनेवाले श्री सिन्हा के जीवन का बड़ा हिस्सा मणिका, मुजफ्फरपुर में बीता।. पटना, हजारीबाग, बम्बई, हैदराबाद और दिल्ली में रहकर उन्होंने पढ़ाई, लिखाई, नौकरी और राजनीतिक गतिविधियों को संपन्न किया।. जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे दिग्गज नेताओं से वे जुड़े रहे और अपने ढंग से समाजवाद की धारा पर विचार करते रहे। श्री सिन्हा का समाजवादी चिंतन-लेखन भारतीय परिवेश से जुड़ा है। उन्होंने गाँधीवाद पर गहराई से सोचा-विचारा और अपने लेखन-चिंतन को भारत के प्रसंगों में विकसित करने का प्रयास किया।. 1942 की क्रांति से शुरू होनेवाली उनकी राजनीतिक यात्रा विभिन्न रूपों में पिछले दशक तक चलती रही। आठ खण्डों में प्रकाशित उनकी रचनावली में उनके कई लेख, भाषण और इंटरव्यू पिछले दशक के हैं।. कहा जा सकता है कि विभिन्न रूपों में उनके योगदान की कालावधि लगभग 75 वर्षों में फैली हुई है. यह अवधि अपने आप में आश्चर्यजनक मालूम पड़ती है.
श्री सच्चिदानंद सिन्हा ने हिन्दी और अंग्रेजी में समान अधिकार से लिखा है. उनकी पुस्तकों की संख्या लगभग दो दर्जन है और ‘सच्चिदानंद सिन्हा रचनावली’ के संपादक अरविन्द मोहन ने उनके लेखों-भाषणों को लगभग 27 शीर्षकों में बाँटकर प्रस्तुत किया है.। लगभग 4000 पृष्ठों में प्रकाशित श्री सिन्हा के लेखन-भाषण को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि उन्होंने आजादी के बाद के भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रश्नों का दृष्टिसंपन्न इतिहास रचा है. उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं – 1. ‘केअस एंड क्रिएशन’ (अरूप और आकार) 2. संस्कृति विमर्श 3. संस्कृति और समाजवाद 4. मानव सभ्यता और राष्ट्र-राज्य 5. एडवेंचर्स ऑफ़ लिबर्टी (आजादी के अपूर्व अनुभव) 6. जिन्दगी : सभ्यता के हाशिये पर 7. कड़वी फसल 8. निहत्था पैगंबर 9. मार्क्सवाद की लोहियावादी समीक्षा 10. नक्सली आन्दोलन का वैचारिक संकट 11. इमरजेंसी इन पर्सपेक्टिव – रिप्रीव एंड चैलेंज 12. जनता पार्टी की त्रासदी 13. जाति व्यवस्था : मिथक, वास्तविकता और चुनौतियाँ 14. समाजवाद और सत्ता 15. पूँजी 16. भूमंडलीकरण और उसका बोझ 17. आंतरिक उपनिवेश 18.भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता19. .मानव समाज की चुनौतियां 20.पूंजीवाद का पतझड़ 21. मार्क्सवाद को कैसे समझें 22.उपभोक्तिवादी संस्कृति का जाल 23.स्थानीय पक्षियों पर सचित्र बाल कविता 24.सोशलिजम एक मैनिफेस्टो फार सर्वाइवल।
श्री सिन्हा जाति के विभाजन को कृत्रिम मानते हैं. इस विभाजन को नकारते हुए वे सह-अस्तित्व की संस्कृति को विकसित करने पर जोर देते हैं. यदि ऐसा नहीं हुआ तो जाति-आधारित विभिन्न संघर्षों को ध्यान में रखकर यह स्थापना दी जा सकती है कि यह निरुद्देश्य लड़ाई अनंत काल की हो जाएगी. जाति की शुद्धता एक भ्रामक धारणा है. मनुष्य जाति आपस में मिश्रित समूह ही है.
श्री सच्चिदानंद सिन्हा का दीर्घ जीवन त्याग और परिश्रम का प्रतीक है. उन्होंने पद या किसी भी तरह के लाभ से अपने जीवन और लेखन को सदैव बचाकर रखा.
इस तरह के दुर्लभ योगदान को ध्यान में रखकर श्री सच्चिदानंद सिन्हा को ‘सत्राची सम्मान’ – 2023 से सम्मानित किए जाने के निर्णय से सत्राची फाउंडेशन स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा है.।