पशुपति शर्मा
साहित्य अकादमी का सभागार शनिवार, 27 मई की शाम एक और पुस्तक विमोचन का गवाह बना। प्रभात प्रकाशन के कर्ताधर्ता प्रभातजी ने अतिथियों का स्वागत किया और फिर मंच पर आए पुस्तक के लेखक सच्चिदानंद जोशी। लोकप्रिय कहानियां सीरीज में उनकी कहानियों का संग्रह यूं तो पुस्तक मेले के दौरान ही आ गया था, लेकिन इस आयोजन की वजह हलके-फुलके अंदाज में जोशीजी ने साझा की। उनकी गुजारिश ये कि आयोजन को सामूहिक विवाह के बाद रिसेप्शन पार्टी की तरह समझा जाए।
जोशीजी ने अपनी रचनात्मक यात्रा का एक संक्षिप्त ब्योरा सामने रखा। उन्होंने बताया कि कॉलेज के फर्स्ट इयर से ही वो नाट्य रुपांतरण करने लगे थे। इस दौरान बड़े-बड़े लेखकों के संपर्क में आए। 2 साल तक कला समीक्षाएं भी लिखीं। आई मालती जोशी के स्नेह और सतत आशीर्वाद का जिक्र किया। पत्नी मालविका का आभार जताया और मंच पर आसीन दोस्तों को पुस्तक समीक्षा के जरिए ‘दुश्मनी’ निभाने का न्योता दे डाला।
कवि और लेखक यतीन्द्र मिश्र ने कहा कि सच्चिदानंद जोशी की कहानियां शॉर्ट फिल्मों की तरह हैं। कहानियां में ब्योरा नहीं, सूक्ष्म ऑब्जर्बेशन हैं। कहानियां विचार और ब्योरों को परे रखकर बंदिश को पकड़े रखती हैं। सच्चिदानंद जोशी मालती जोशी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। यतीन्द्र मिश्र ने संकलन की ‘बौनों का आकाश’, ‘अंत का आरंभ’ और ‘सांता क्लॉज मुझे माफ कर दो’ कहानियों का जिक्र किया। उनके मुताबिक सच्चिदानंद जोशी की कहानियां मां मालती जोशी से भाषा संस्कार में अलग हैं। उनमें शोर नहीं बल्कि हीरोदात्त संगतकार की तरह सच्चिदानंद जोशी उस्ताद की बंदिश में एक नया सुर जोड़ते हैं।
पत्रकार अनंत विजय ने ‘भोगे हुए यथार्थ’ के जुमले पर चोट करते हुए अपनी बात शुरू की। उन्होंने आरोपित आग्रहों, विचारधारा के आग्रहों से कहानी की मुक्ति की बात की। उन्होंने कहा कि जोशीजी की कहानियां इसी ‘छलात्कार’ का प्रतिरोध करती हैं। उन्होंने ‘मृदुला’ और ‘नंगी टहनियों का दर्द’ का जिक्र किया। कहानियां नारी के देह विमर्श की बजाय परिवार विमर्श पर जोर देती हैं और इस ओर लौटना जरूरी है। उन्होंने चलते-चलते जोशीजी को कहानियों पर टिके रहने की नसीहत दी।
वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुदगल ने संकलन की कहानियों में मनुष्य की अंत:पीड़ा और द्वंद्व की अभिव्यक्ति की सराहना की। उन्होंने कहा कि ‘नंगी टहनियों का दर्द’ ये जाहिर करता है कि महज दहेज ही कन्या भ्रूण हत्या की वजह नहीं है। आर्थिक दबावों में भी आज का मनुष्य ऐसे कठोर फ़ैसले लेने को मजबूर है। कहानी के नैरेटर का द्वंद्व और ‘शिवानी’ को न पाने की पीड़ा उम्र के हर पड़ाव में है। ‘अभी मनुष्य जिंदा है’ सांप्रदायिक सद्भाव पर मासूम कहानी है। संकलन की कहानियां साफ-सुथरी हैं और कई जगह इनमें बच्चों के मनोविज्ञान की चौंकाने वाली पकड़ दिखती है। चित्रा मुदगल ने कहा कि भविष्य का कथाकार अपनी ज़मीन बना चुका है।
कथाकार मालती जोशी ने कहा कि मां को आशीर्वाद देने के लिए मंच की जरूरत नहीं है, मैं तो यहां आए लेखकों और दूसरे साहित्यप्रेमियों का आभार व्यक्त करने आई हूं। उन्होंने कहा कि बच्चों को कोई भौतिक विरासत नहीं दी। लोकसंग्रह, साहित्य प्रेम और कर्मठता के बीज दिए। समृद्धि की हर किसी की अपनी परिभाषा होती है। 4 साल पहले सच्चिदानंद जोशी का कविता संग्रह आया था और अब कहानी संग्रह आया है। बच्चों की यही उपलब्धियां हमें गर्व करने का मौका देती हैं। उन्होंने कहा, जो कुछ लिखो मनमर्जी का, मनचाहा लिखो। लेखक का मन गोदाम होता है, वो घटनाओं और पात्रों को उनमें डालता रहता है। और जब लेखनी चले तो इन पात्रों का मेकअप ऐसा हो कि पात्र पहचाने न जाएं। व्यक्तिगत राग-द्वेष के लिए लेखनी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
अंत में कमल किशोर गोयनका ने अध्यक्षीय टिप्पणी की। उन्होंने बात की शुरुआत ही प्रकाशक पर एक तंज से की। पहला संग्रह ही लोकप्रिय कहानियां सीरीज में कैसे? साथ ही लेखक पर ये कहकर भार बढ़ा दिया कि अब आप इस चिंता में लग जाएं कि 2-3 संग्रह जल्द से जल्द कैसे आएं? प्रेमचंद के अध्येता कमल किशोर गोयनका ने प्रेमचंद और अमृत राय के बीच के रिश्तों का जिक्र करते हुए मालती जोशी और सच्चिदानंद जोशी की परंपरा की बात की। उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात है कि सच्चिदानंद जोशी अपनी माता मालती जोशी के प्रभामंडल में नहीं दबे। उन्होंने भी अनंत विजय के तर्क का समर्थन करते हुए कहा कि ‘भोगा हुआ यथार्थ’ साहित्य की कसौटी नहीं हो सकता।
कमल किशोर गोयनका ने ‘अभी मनुष्य जिंदा है’, ‘कमाऊ पूत’ और ‘संज्ञाशून्य’ कहानियों के जरिए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि संज्ञा शून्य सच्चिदानंद जोशी के जीवन अनुभव की कहानी है। समाज में ईमानदार आदमी का रहना मुश्किल है। बेईमान उसे अपनी बिरादरी में शामिल करने में लगे हैं। सच्चिदानंद जोशी की कहानियां अच्छे मनुष्य होने का संदेश देती हैं। उन्होंने कहा कि एक विधा तक सीमित रहने की जरूरत नहीं। रचनात्मकता का आकाश बड़ा होना चाहिए। कहानी के साथ तमाम अन्य विधाओं में भी लिखते रहें।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।