पुष्यमित्र
बराज नहीं, तटबंध भी अविरल बहने नहीं देते नदियों को- दिनेश मिश्र
कोसी और बागमती नदियों की समस्या पर शोध पुस्तक लिखने वाले दिनेश मिश्र जो अभी नमामि गंगा थिंक टैंक टीम के सदस्य हैं, कहते हैं- यह सच है कि फरक्का बराज के बनने से गंगा नदी की स्वभाविक धारा प्रभावित हुई है। मगर गंगा में सिल्ट के बढ़ने की इकलौती वजह फरक्का बराज नहीं है, जैसा कि बताया जाता है। गंगा नदी के किनारे-किनारे सुरक्षा तटबंध भी बने हैं, जो गाद को बाहरी इलाकों में फैलने से रोकते हैं। इसके अलावा रास्ते, रेल लाइन और नदियों के बीच में बस गयी बस्तियां भी नदियों के अविरल धारा को बाधित करती हैं। यह सिर्फ गंगा की समस्या नहीं है। उत्तर बिहार की ज्यादातर नदियां गाद से भरी हैं और उनकी वजह बराज नहीं बल्कि उनके किनारे बने तटबंध हैं। इन तटबंधों की वजह से राज्य के 8.36 लाख हेक्टेयर भूमि पर स्थायी जलजमाव है। यह बाढ़ से बड़ी समस्या है। इनका मसला तो हमारे हाथ में है, राज्य के हाथ में है। हम इसका समाधान खुद कर सकते हैं। और जहां तक फरक्का का सवाल है, क्या आज की तारीख में उस बराज को हटा देने से समस्या सुलझ जायेगी इस बारे में भी गंभीर विचार की जरूरत है।
क्या है फरक्का बराज का मसला
1975 में कमीशंड हुए इस बराज का मुख्य उद्देश्य हुगली को गाद से मुक्ति दिलाना था, ताकि जहाज बंदरगाह से कोलकाता तक आ जा सकें। मगर इसके निर्माण के बाद से गंगा में गाद का भरना शुरू हो गया और नदी उथली होने लगी। साथ ही प्रजनन के लिए जो 67 किस्म की मछलियां बनारस तक जाती थीं, उनका आना भी बंद हो गया और मछुआरों की आजीविका चौपट हो गयी। गंगा के उथले होने से उसकी सहायक नदियों पर भी असर पड़ा और उनका पानी गंगा में पूरी तरह आ नहीं पा रहा।
फरक्का हटे न हटे पर दूसरे बराज तो न बनें- डॉ. योगेंद्र
गंगा मुक्ति आंदोलन में भागीदारी कर चुके भागलपुर के रहने वाले डॉ. योगेंद्र ने काफी पहले किताब लिखी थी “गंगा को अविरल बहने दो।” वे कहते हैं कि सबसे पहले भागलपुर के मछुआरों ने ही मांग की थी, फरक्का बराज को तोड़ दो। यह 1984-85 की बात है। तब से अब तक बिहार से अलग-अलग स्तर पर यह मांग की जाती रही है। यह शुभ संकेत है कि अब इस मांग को मुख्यमंत्री महोदय का भी समर्थन है। दरअसल, अभी गंगा को फरक्का से अधिक उन नये बराजों से खतरा है जो लगातार बन रहे हैं। टिहरी और फरक्का के बीच दो बराज बन चुके हैं और कुल 27 बराज बनने वाले हैं। अगर एक बराज ने बिहार की हालत बुरी कर दी है तो इन 27 बराजों से तो जीना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए इस तरह की आवाज उठाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि गंगा के साथ-साथ उत्तर बिहार की दूसरी नदियों जैसे कोसी, महानंदा और गंडक के सिल्टेशन को दूर करने के भी इमानदार प्रयास किये जाने चाहिये।
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(साभार-प्रभात ख़बर)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।