पीवी सिंधु के साथ देश की उम्मीदें जुड़ गई हैं। सोशल मीडिया पर अभी जय-जय सिंधु के बोल सुनाई दे रहे हैं। उन्हीं में से कुछ प्रतिक्रियाएं बदलाव के पाठकों के लिए।
सिंधु का गुडमिंटन
मैच से पहले आश्वस्त नहीं था। वजह इतिहास में दर्ज हैं लेकिन जैसे-जैसे पहले सेट में सिंधु का दबदबा कायम होता गया वैसे-वैसे मेरी शंका दूर होती चली गई और दूसरे सेट में तो सिंधु साक्षात भैरवी बन गई। मैं आश्चर्यचकित रह गया। कैसा लाघव, कैसे प्रहार, कैसे नियोजन और कैसी चपलता से भरी थी सिंधु। जापान तो जैसे सिंधु के सुनामी झटकों से दहल गया। कमाल का खेल दिखलाया।
अब तो मैं रजतगिरि की ओर नहीं बल्कि स्वर्णिम ज्योतिर्मय प्रभात की ओर देख रहा हूं। मेरा विश्वास है सिंधु स्वर्ण पताका लहराएगी । पूरे मैच में सिंधु के साथ-साथ उसके साधु गुरु पुलेला गोपीचंद को भी देखता रहा जिसने चोट की वजह से अपने करियर की युवावस्था में बैडमिंटन को छोड़ा। कितना संतोष से भरा हुआ और अहंकार से मुक्त चेहरा है उस व्यक्ति का। एक सात्विक सम्राट है गोपीचंद, जिसने सायना नेहवाल और सिंधु जैसे रत्नों को रचा है। तुम्हें प्रणाम करता हूं गोपीचंद। तुम न होते तो न सायना होतीं, न सिंधु।
देवांशु झा। झारखंड के देवघर के निवासी। इन दिनों दिल्ली में प्रवास। पिछल दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। कलम के धनी देवांशु झा ने इलेक्ट्रानिक मीडिया में भाषा का अपना ही मुहावरा गढ़ने और उसे प्रयोग में लाने की सतत कोशिश की है। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं।
हिन्द की स्वर्णिम उम्मीद सिन्धु
रक्षाबंधन के दिन भारत की बेटियों, साक्षी मलिक औऱ पी वी सिन्धु ने सारे देशवासियों को ओलंपिक मेडल का शानदार तोहफा दिया है। बहुत बहुत बधाई। पी वी सिन्धु के लिए हम ये दुआ करते हैं कि अब वो हमारी झोली में सोना डालेंगी। ब्रिटेन और चीन पदकों की दौड़ में सबसे आगे है। इन देशों में छोटी उम्र में ही खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें ओलंपिक के लिए तैयार किया जाता है। हमारे देश में ऐसा नहीं हो रहा है। खेल से सम्बंधित बजट भी छोटा होता है। इस कारण हम पदकों की दौड़ में पीछे पड़ रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आगामी ओलंपिक एवं अन्य विश्व स्तरीय खेलों के लिए हमारी सरकार इस ओर कारगर कदम उठाएंगी।
जाहिद अख़्तर। बिहार के अररिया के निवासी। पेशे से शिक्षक। जवाहर नवोदय विद्यालय पूर्णिय के पूर्व छात्र।