अपने बचपन का गणतंत्र दिवस याद है। तब मैं 8-9 साल का था । गांव के प्राइमरी स्कूल में पढता था। तब आज की तरह इस स्कूल में विरानगी नहीं छायी रहती थी । शिक्षक दूर दराज वाले होते तो विद्यालय में ही उनका आवास हुआ करता था । ‘सादा जीवन और उच्च विचार ‘के जीवंत प्रतीक हुआ करते थे हमारे वे शिक्षक । गणतंत्र दिवस , स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर गजब का उत्साह हुआ करता था। ऐसे अवसरों की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती थी। इन्हें मनाने की तैयारी एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती थी ।नारे भी याद कराए जाते थे, लेकिन सबसे खात होती थी प्रभात फेरी । गणतंत्रदिवस के दिन चार बजे भोर में हमलोग स्कूल में जमा हो जाते। तब हमारे पास आज की तरह न स्वेटर होते और ना ही जैकेट या जींस-पैन्ट। चादर ओढे हुए हमलोग पंक्ति बद्ध हो कर गांव की सडकों पर जोर-जोर से नारे लगाते हुए प्रभात फेरी किया करते थे। दो घंटे के इस कार्यक्रम में हमारे शिक्षक भी साथ होते थे। फिर वापस स्कूल में आते और वहां से अपने अपने घर आकर स्नान नाश्ता के बाद फिर स्कूल में जमा होते। आठ से साढे आठ बजे के बीच तिरंगा फहराया जाता । शिक्षक हमें गणतंत्र दिवस की महत्ता बताते । एक बड़े हाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होता और उसके बाद हमलोग घर आते थे। बचपन में आजादी और गणतंत्र पर्व मनाने की जो परंपरा रही वो 60 साल तक चलती रही । 1973 में शिक्षक बना । पांच साल सकरा के गोपालपुर स्कूल में रहने के बाद जिले के बोचहा स्कूल में तबादला कराया ।तब बोचहा मिडल स्कूल जिले का एक मात्र प्रतिष्ठित विद्यालय माना जाता था। यहां छात्रावास में दूर दूर के छात्र रह कर पढते थे। उस वक्त न कॉन्वेंट कल्चर था और ना ही पब्लिक स्कूल। ना कोई छोटा था ना कोई बड़ा सभी एक ही स्कूल में पढ़ते थे ।
बोचहा मिडल स्कूल में श्री रामेश्वर त्यागी हेड मास्टर थे। विद्यालय के प्रति पूर्ण समर्पित । तभी तो जिले के तत्कालीन एक शिक्षाधिकारी ने मेरा तबादला करते हुए कहा था कि त्यागी जी के नेतृत्व में काम करने पर आदमी बन जाओगे । पता नहीं कि मैं कितना आदमी बन सका। खैर, वहां 12वर्षों तक रहा । इस बीच त्यागी जी अप्रैल 1987, में सेवानिवृत हो गये। उन्हें राज्य सरकार ने शिक्षक दिवस पर पुरस्कृत भी किया था ।उस स्कूल में गणतंत्र दिवस , स्वतंत्रता दिवस के आयोजन की एक अलग परम्परा थी, पता नहीं कि अब वह परम्परा है भी या नहीं । चूंकि वह स्कूल प्रखंड मुख्यालय का स्कूल था इसलिए कार्यक्रम आयोजित होने से पहले प्रखंड विकास पदाधिकारी के कार्यालय में एक बैठक होती थी जिसमें मिडिल स्कूल, हाई स्कूल के हेड मास्टर, स्थानीय थाने दार, सीओ, बीसीओ, मेडिकल आफिसर आदि निश्चित रुप से शामिल होते थे और उन स्थानों पर झंडोत्तोलन का समय निर्धारित किया जाता था । 10 मिनट से आधे घंटे का अंतराल रख कर समय का निर्धारण होता था ताकि दोनों स्कूल के छात्र और शिक्षक सभी जगहों पर कार्यक्रम में शामिल हो सकें, लेकिन आज देखता हूं तो लगता है वह उत्साह ही नहीं रहा अब । सब कुछ औपचारिक-सा हो गया है ।
ब्रह्मानंद ठाकुर/ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले । पेशे से शिक्षक फिलहाल मई 2012 में सेवानिवृत्व हो चुके हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने की ललक आज भी जागृत है । गांव में बदलाव पर गहरी पैठ रखते हैं और युवा पीढ़ी को गांव की विरासत से अवगत कराते रहते हैं ।