रवि रंजन के फेसबुक वॉल से साभार
दुखद… बहुत दुखद…. आत्मा कराह रही है…. बेहद ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, जी जान लगाकर काम करने वाले और वरिष्ठ भी, लेकिन तनख्वाह इंटर्न से थोड़ी ज्यादा, क्यों? क्योंकि जीवन सादगी भरा था। चापलूसी का हुनर नहीं था, दिमाग शातिर नहीं था, बॉस को साधने की सलाहियत नहीं थी। इन सब के बीच सर पर मुफलिसी का मनहूस साया था। घर पर जिम्मेदारियों का बोझ था। जितना मैं जानता हूं, पत्नी और बूढ़ी मां। कितनी उम्मीद थी चंद्रशेखर जी को मुझसे। जब इंक्रीमेंट का वक्त आता था तो कहते थे देख लीजिएगा सर जी। किसी तरह घर का काम चला पाता हूं। अब मैं उनको क्या बताता कि आपके सरीखे कर्तव्य पारायण, सादगी संपन्न लोगों की भावना को शिद्दत से महसूस करने वाले सैलरी बढ़ाने की हालत में कभी नहीं पहुंचते।
कुछ दिन पहले इंडिया न्यूज से निकाला गया तो मेरे घर आए थे। मैंने दो-तीन जगह फोन भी किया लेकिन चंद्रशेखर जी जैसे सिर्फ और सिर्फ कर्तव्यनिष्ठ मुलाजिम की जरूरत किसे होती है। मुझे माफ कर दीजिएगा चंद्रशेखर जी। मृत्योपरांत शायद आप देख पा रहे हों कि मैं आपकी मदद करने की स्थिति में नहीं था। दिल में तड़प होने के बाद भी कुछ कर नहीं सका। लाचार और बेबस था और हां ये दुनिया तो कतई आपके लायक नहीं थी। सो आपने छोड़ दी चुपके से कोरोना का बहाना…
जब पोस्ट लिख रहा था तो एक और सहयोगी आलोक का फोन आया कि एक अकाउंट नंबर दे रहा हूं जितने पैसे मुमकिन हो डाल दीजिएगा, पहले मुझे लगा कि अपने लिए मांग रहा है, गुस्सा भी आया लेकिन बगैर पूछे रुधे गले से आलोक ने कहा चंद्रशेखर जी नहीं रहे उनके लिए….ओम शांति
रवि रंजन/बिहार में सीवान जिले के मूल निवासी । आजकल गाजियाबाद में आशियाना । बेहद संजीदा और जिंदादिल इंसान । मीडिया में काम करने का लंबा अनुभव । संप्रति जी हिंदुस्तान में कार्यरत ।