पुष्यमित्र
यह कैसी विडंबना है कि हम साहित्यकारों को तो याद रखते हैं, इतिहासकारों को भूल जाते हैं। उन इतिहासकारों को जिन्होंने हमारी स्मृतियों और धरोहरों को पढ़कर हमें ऐतिहासिक स्थापनाएं दीं। आज इतिहासकार रामशरण शर्मा की 98 वीं जयंती है। अभी उन्हें गये हुए मुश्किल से 6-7 साल बीते हैं। पिछले ही दशक में पटना के बोरिंग केनाल रोड में उनकी मौजूदगी शहर को एक वजन देती थी। 92 साल की उम्र में भी वे सक्रिय थे। किताब लिख रहे थे। सौ से अधिक किताबें अगर उनके नाम हैं तो उनमें शायद ही कोई ऐसी किताब हो जिसे कमतर कहा जा सके। आप उनकी स्थापनाओं से असहमत हो सकते हैं मगर उनकी प्रतिभा, उनका अध्यवसाय, दुनिया भर को अपनी स्थापनाओं से प्रभावित और चमत्कृत करने की उनकी क्षमता से नहीं।
बरौनी कस्बे के एक गरीब परिवार से उठकर दुनिया भर की ऐतिहासिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाना, संस्थानों को मजबूती प्रदान करना। रिटायरमेंट के बाद पटना शहर में बस जाना और 26 साल तक यहां रहकर सक्रिय रहना। अद्भुत था उनका जीवन। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम भारतीय सामंतवाद को लेकर था। उन्होंने यह स्थापना दी कि हमारा सामंतवाद यूरोपीय सामंतवाद, गुलामी प्रथा से किसी सूरत में कम नहीं था। उन्होंने शूद्रों का इतिहास लिखा और जातिवाद की व्याख्या की। हालांकि कुछ पश्चिमी इतिहासकारों ने उनके पूर्वाग्रह की आलोचना भी की। मगर अमूमन उन्हें कौशाम्बी के बाद सबसे महत्वपूर्ण इतिहासकार माना गया। उन्होंने इतिहास को नई समझ दी। रोमिला थापर, सुमित सरकार, इरफान हबीब जैसे इतिहासकार उनके प्रशंसक रहे हैं। एमएल बाशम जैसे इतिहासकार के सान्निध्य में उन्हें काम करने का अवसर मिला।
फिर भी, अपने ही राज्य में उनको लेकर गहरी उदासीनता है। हम जिस तरह दिनकर, रेणु, नागार्जुन को अपना घोषित करते हैं। उन पर गर्व महसूस करते हैं, लगभग उसी तरह की या कहें तो अपने क्षेत्र में इनसे भी अधिक प्रतिष्ठा हासिल करने वाले रामशरण शर्मा पर, बिहार के लोग बहुत कम बातें करते हैं। मैं सर्च कर रहा था तो नेट पर उनके बारे में बहुत सतही जानकारियां थीं। अंग्रेजी में तो कुछ है भी, हिंदी में बिल्कुल नहीं है। स्कॉलरी आर्टिकल के अलावा उनके जीवन का जिक्र भी जरूरी था। पटना, आरा और बिहार के दूसरे शहरों में रहते हुए उन्होंने कैसा जीवन जिया। लोगों से उनके ताल्लुकात कैसे थे। हमें बिल्कुल पता नहीं। यह पोस्ट इसी उम्मीद में लिख रहा हूँ कि कोई व्यक्ति उनके बारे में थोड़ी विस्तृत जानकारी दे सके। ताकि हम जैसे अल्पज्ञों को भी थोड़ी बेहतर जानकारी मिल सके।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।