आशीष सागर दीक्षित
बीते दिनों कान्हा नेशनल टाइगर में प्रवास के दौरान ग्राम खटिया में यह श्यामलाल साधुराम बिसेन मिले। रहवासी ग्राम सरेखा, तहसील जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश से हैं। अपनी दो पहिया की फटफटिया में सुदूर गाँव में बहनों, माताओं को राखी पहुंचा रहे हैं। शुद्ध गवई अंदाज में अल्ताफ राजा के ‘तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे ? ‘ गीत जुगाड़ के टेप रिकार्डर में बजाते सरपट राखी बेचते हैं श्याम लाल।
उन्होंने कहा यहाँ राखी नहीं मिली तो गाँव वाले कैसे खुश होंगे त्यौहार में ? इनसे मिलकर मजा आया !! मेरे साथ दिनेश दर्द, अखिलेश पाठक भी थे। हम तीनों ने इनका दर्शन 14 अगस्त की शाम में चार मर्तबा किया। मजेदार बात ये है कि वापसी में मेरा मोबाइल एक चाय की दुकान में छूट गया था लेकिन कान्हा में बसते शेरो के ‘ मीत ‘ रामलाल ने उसे सहेज के रखा। जब वापस रिसॉर्ट में आये तो मोबाइल की सुध आई। घंटी लगा के दर्द ने देखा तो कमरे में नही बजी ! समझ आया कि हो गया जंगल में मंगल। आखिर हम शहरी जो थे ! …वैसे ही जो मरे आदमी की जेब से मोबाइल निकाल लेते हैं ! वही, जैसे केदार घाटी में पंडों, जिंदा यात्रियों ने लाशों से सोने की चेन,रूपये लूटे थे !
पर जब फोन उठा तो उधर से आवाज आई ‘ फोन चाय की दुकान में छोड़ गए है भाई साहेब ‘ ! …साधन से दर्द और भाई राकेश मालवीय को साथ लेकर वापस जब उसी चाय दुकान में पहुंचे तो खिड़की के पट्टी में मोबाइल रखा था। अँधेरे में रामलाल का तस्वीर नहीं लिए कैमरा कमरे में ही रह गया था। …उसको धन्यवाद किये इससे अधिक की औकात क्या है हम शहरी की ! और बरबस बोल गए ‘ रामलाल सच में ईमानदारी के मीत हो तुम ‘ ! जंगल के पहरु बने वनविभाग देख रहे हो न, ये गरीब है मगर लकड़ी चोर नहीं।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।
बहुत ख़ूब आशीष भाई।
लगभग ढाई दिन साथ रहे हम। और ढाई दिन में जैसे साल भर के लिए रीचार्ज हो गए। एक तो अपनी यायावरी तबीयत, उस पर धुले हुए जंगल, गाँवों और रास्तों को देखने-जानने व समझने की ललक में हम ख़ूब भटके। लौटते में लंबी दूरी हमने पैदल ही नापी। पैदल चलने से हुई थकान तो शायद एक-दो दिन या कुछ घंटों में उतर जाएगी। मगर, वहाँ हमने जो एहसास और तजुर्बात पाए, यक़ीनन वो ज़िंदगी भर नहीं भूल पाएंगे।
तुम उन्हीं ढाई दिनी प्रवास में जिस तरह मिले थे, बिल्कुल उसी तरह बा-शक्ल हू-ब-हू याद आ रहे हो।