राजगीर की प्राकृतिक छटा और टमटम की सवारी

राजगीर की प्राकृतिक छटा और टमटम की सवारी

 पुष्यमित्र

राजगीर का घोड़ाकटोरा झील, मानसरोवर नहीं है, न ही सिक्किम के नाथुला इलाके में बसा छांगू लेक। मगर जनवरी के इस आधे कंपकपाते आधे सुलगते दिन में जब आप वहां पहुंचते हैं और जिस तरह पहुंचते हैं तो आपको यह झील दुनिया की सबसे सुंदर झील मालूम होती है। दुनिया की सबसे पुरानी राजधानियों में से एक राजगृह में जहां एक जमाने में भारत के सबसे मजबूत साम्राज्य मगध की नींव रखी गयी थी। और उससे भी पहले जो इलाका बौद्ध, जैन और दूसरे ब्रात्य संप्रदायों के पनपने और देश और दुनिया में छा जाने का ठिकाना था, वहां से आज भी इस झील तक आप टमटम से ही जा सकते हैं। पहाड़ियों के किनारे से गुजरने वाले तकरीबन साढ़े छह किलोमीटर के उस कच्चे रास्ते में मोटरगाड़ियों के चलने पर रोक है। यह वन एवं पर्यावरण विभाग की व्यवस्था है। पहले तो यह जानकर खीझ होती है कि टमटम से जाना होगा, मगर सफर करते वक़्त अहसास होता है कि ठीक ही नियम है। वह ऐसा आनंद है जो सफर के बाद ही महसूस होता है। वहां पहुंच कर मुझे लगा कि इक्कीसवीं सदी में चलने वाली ये घोड़ागाड़ी ही, घोड़ाकटोरा झील की असली ब्रांड अम्बेसडर हैं। राजगीर शहर में आज भी बड़ी संख्या में टमटम या कहिये तांगा या इक्का या घोड़ागाड़ी मौजूद हैं। ये थोड़े महंगे हैं, मगर समझदार पर्यटक आज भी घूमने फिरने का काम इन तांगों के सहारे ही करता है। क्योंकि आज की तारीख में यह आनंद और कहीं नहीं मिल सकता और मेरे जैसा समझदार पर्यटक होटलों के बदले सोर्स पैरवी लगाकर रात ठहरने का इंतजाम किसी जैन धर्मशाला में करवाता है। पिछली दफा मैं नौलखा मंदिर के पास वाले धर्मशाला में ठहरा था, इस बार जैन साध्वी चन्दना श्री द्वारा स्थापित राजगीर की शान वीरायतन में ठहरने का मौका मिल गया।

अफसोस, जैनियों के महत्वपूर्ण तीर्थ होने के बावजूद इस शहर में खाने पीने के ढंग के बहुत ही कम ठिकाने हैं। लोकल फ्लेवर वाला भोजन तो शायद ही कहीं मिलता हो। ले देकर एक ग्रीन होटल है जो गर्म कुंड के सामने है। भले ही जैन और मारवाड़ी भोजनालय के नाम से दर्जनों होटल दिख जाते हैं। लोकल के नाम पर सिर्फ सिलाव का खाजा है जो बिहारशरीफ और राजगीर के बीच बसे सिलाव कस्बे में मिलता है।हां, गर्म कुंड। यह राजगीर की बड़ी खासियत है। पहाड़ों के बीच से यहां कई गर्म जल के सोते निकलते हैं जो सेहत के लिये लाभप्रद माने जाते हैं, मगर पण्डों ने इस जगह को घेर कर जिस तरह अजीबोगरीब शक्ल दे दी है, उससे सिर्फ उबकाई आती है। सरकार को इस व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर इसे दुरुस्त करना और सबके लिये सुगम बनाना चाहिये। मगर वहां की जो स्थिति है, उसमें यह मुमकिन नहीं लगता कि सरकार कुछ कर पायेगी। इसके बावजूद कुछ दशक पहले तक बिहार का इकलौता पर्यटन स्थल राजगीर आज भी आपकी रुचियों को संतुष्ट करने का माद्दा रखता है। खासकर अगर आप महंगी एसयूवी गाड़ियों के बदले तांगे से घूमने के लिये तैयार हों।


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं