बासु मित्र
कहते हैं जहां चाह होती है, राह खुद ब खुद मिल जाती है। बिहार के पूर्णिया जिले के सबसे व्यस्ततम इलाके लाइन बाजार में जहां इंच-इंच जमीन की मुंह-मांगी कीमत मिल जाती है। वहीं एक 5500 स्क्वायर फुट का ऐसा बाग़ है, जो हमें और आपको चौंकाता है। ज़मीन न मिली तो छत पर ही बहार ला दी।
छत के इस बाग में आपको दुर्लभ प्रजाति के मेडिसीनल प्लांट के साथ-साथ सपाटू, शहतूत, 32 मशालों की खुशबू वाला ऑल स्पाईस, निम्बू, शो प्लांट, गुलाब, गुलदावादी के साथ-साथ चायनीज अमरुद समेत तमाम सब्जी भाजी के पौधे मिल जायेंगे। पेशे से बीमा अभिकर्ता गुलाम सरवर ने अपने छत पर पेड़ पौधों का एक नया संसार ही बसा रखा है। इनमें से कई पौधे ऐसे हैं जो 20 से 25 साल पुराने हैं, जिन्हें उन्होंने बोनसाई तकनीक के सहारे अपने छत पर संजो कर रखा है।
गुलाम सरवर मूल रूप से डगरुआ के कन्हरिया गांव के रहने वाले हैं। उनके दादा डॉ अब्दुल जब्बार खान डॉक्टर थे, लेकिन उनको पेड़-पौधों से बहुत ज्यादा लगाव था। जिस जगह पर सरवर का घर है, 70 के दशक में वहां आम का बागान था। इमरजेंसी के बाद पारिवारिक बंटवारा हुआ और आम बागान खत्म हो गया। घर के पीछे जो जमीन थी उसी पर पापा मोहम्मद वाली खान पेड़ और कलम लगा कर रखते थे। बचपन में उनको देखते-देखते गुलाम सरवर को भी पेड़ों से प्यार हो गया। 1989 में यहां मार्केट बनने लगा, जमीन खत्म होने के बाद नीचे की बागवानी छत पर शिफ्ट हो गई।
गुलाम सरवर बताते हैं- ”जहां भी जाता हूँ, वहां से नए और दुर्लभ पेड़ तलाश कर लाता हूँ। मेरी छत पर आपको दर्लभ प्रजाति के खिरनी, सपाटू, शहतूत के अलावा देशी मसालों के पेड़ और लिविंग फॉसिल कहे जाने वाले वाले साइक्स पेड़, नींबू की कई तरह की प्रजाति और चायनीज अमरुद, इलाहाबादी अमरुद मिल जायेंगे। मैं जहां भी जाता हूँ वहां से कोई न कोई पेड़ जरूर लाता है, फिर उसे कलम कर नया पेड़ बनाता हूँ। धीरे-धीरे मेरे छत पर 700 से ज्यादा पेड़ जमा हो गए हैं।”
बढ़ते पेड़ की संख्या से छत को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचे, इसके लिए उन्होंने बेकार थर्मोकॉल के डब्बों से गमले बनाए। गुलाम सरवर बताते हैं कि उन्हें पापा से विरासत में कलम और पेड़ को बोनसाई बनाने का हुनर मिला। उनके छत पर आज भी 20 साल पुरानी तुलसी, पीपल, पाखर समेत अन्य पौधे हैं। गुलाम सरवर भाग दौड़ की जिन्दगी में लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए हरेक साल 500 से ज्यादा कलम किये हुए पेड़ मुफ्त में देते हैं।