पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से साभार
पुलवामा में 40 CRPF जवानों की शहादत का बदला देश की फौज ने लेना शुरू कर दिया है । आतंकियों को सेना के जवान चुन-चुनकर मार रहे हैं । 100 घंटे के भीतर हमारी सेना ने पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड को ढेर कर दिया । सेना अपना काम पहले भी करती रही है और आज भी कर रही है। देश की आवाम सेना के वीर सपूतों के साथ खड़ी है, लेकिन सवाल ये है कि क्या हमारी सरकारें सुरक्षाबलों के प्रति संजीदा और गंभीर हैं । क्यों सरकारों को शहादत के बाद ही जवानों की चिंता होती है । ये वक्त सियासत का बिल्कुल नहीं है, लेकिन सोचने का जरूर है । CRPF जवानों की शहादत के बाद वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कुछ सवाल उठा रहे है, जिसपर देश और सरकार को जरूर सोचना चाहिए ।
जब जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में जवानों का डिप्लॉयमेंट हो रहा था तो उन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए ड्राप क्यों नहीं किया गया, जब ये सवाल सरकार से पूछा गया तो गृह मंत्रालय का जवाब आया कि CRPF ने उनसे एयर लिफ्टिंग की सुविधा की मांग नहीं की थी। इसलिये सुविधा नहीं दी गयी। मगर मंत्रालय यह नहीं बात रहा कि जब 31 दिसम्बर 2017 में सरकार ने खुद दिल्ली-जम्मू-कश्मीर और दिल्ली गुवाहाटी के बीच मुफ्त वायुयान सेवा की सुविधा जवानों को देने का फैसला किया था तो फिर वह कब और क्यों बन्द हो गयी।
खबरें बताती हैं कि पैसों के अभाव में इसे बन्द कर दिया गया। तो क्या इस देश में जवानों की सुविधा पर खर्च करने के लिये पैसा कम पड़ रहा है? दूसरी बात, बर्फबारी में फंसे आम लोगों को जब सरकार ने उस वक़्त एयर लिफ्ट करवाया था, तो वहीं मौजूद CRPF जवानों को क्यों नहीं करवाया। यह खबर जागरण में छपी है। इसमें CRPF के IG का बयान भी है।
इस मामले में गृह मंत्रालय का अपराध सिर्फ इस लिये कम नहीं होता कि CRPF ने कथित तौर पर उससे सुविधा नहीं मांगी। यह सुविधा जब 31 दिसम्बर, 2017 को शुरू हुई थी तो सरकार को उसे जारी रखना चाहिए था। और इस विपरीत परिस्थिति में जब इतने जवान फंसे से इसे आवश्यक समझ कर लागू कराना चाहिये था। वैसे मुझे अभी भी लगता है कि CRPF ने सुविधा मांगी होगी, सरकार अब लीपापोती कर रही है। कल रात एक मित्र ने जो सेना में ठीक ठाक अधिकारी हैं, ने बताया कि ”मौजूदा सरकार में सेना में पहली बार कॉस्ट कटिंग का दौर आया है। स्थिति यह बन गई है कि हमें ऑफिसियल टूर पर भी अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं। बिल जमा करने पर कहा जाता है अभी बजट एलोकेशन नहीं है, जब होगा तब पेमेंट होगा। जबकि पहले हमें टूर एडवांस मिलता है। उन्होंने बताया कि ऐसी कटौती हर क्षेत्र में है और आधुनिकीकरण के नाम पर है।”
उन्होंने यह भी बताया कि आजकल सेना में अधेड़ सिपाहियों की भीड़ बढ़ती जा रही है। इसकी वजह भी सरकार की नीति ही है। पहले सैनिक 15 साल की नौकरी के बाद स्वेच्छा से रिटायर हो जाते थे। जिससे सेना में युवा सैनिकों की तादाद बरकरार रहती थी। मगर इस सरकार ने नियम बना दिया कि स्वेच्छा से रिटायर होने वालों को OROP का लाभ नहीं मिलेगा। जिस वजह से अब कोई सैनिक 25 साल की नौकरी के पहले रिटायर नहीं होना चाहता। सरकार फौजियों को दिये जाने वाले पेंशन को भी फालतू मानती है। इसमें कटौती के नए नए रास्ते गढ़े जा रहे हैं। जैसे 15 साल में रिटायर होने वाले को पेंशन का 70 फीसदी ही मिलेगा। 20 साल वालों को 80 फीसदी। इस वजह से भी हमारी सेना जवान रहने के बदले बूढ़ी होती जा रही है।
यह सब इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि अभी सेना के प्रति लोगों में बहुत सहानिभूति है। इसी वक्त उनके बेसिक मुद्दों को भी हमें संवेदना के साथ समझना चाहिये।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी।