गांधीजी के हत्यारे को देशभक्त बताने के पीछे की सोच को समझिए

गांधीजी के हत्यारे को देशभक्त बताने के पीछे की सोच को समझिए

उर्मिलेश

उसने अपनी विचारधारा के अनुसार अपने ‘मन की बात’ ही तो कहीं है! उसके अनेक सियासी पूर्वज भी यही कहते रहे: ‘नाथूराम गोडसे जी एक देशभक्त थे!’
यही बात अपना चुनाव बीतने के बाद भाजपा की भोपाल-प्रत्याशी और मालेगांव ब्लास्ट कांड की ‘आतंकी गतिविधियों की प्रमुख अभियुक्त’ प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आज कही है!
विचारधारा के स्तर पर इसे आप क्या कहेंगे? मैं ‘हिन्दू आतंक’ या ‘मुस्लिम आतंक’ कभी नहीं कहता! बिल्कुल सही, आतंक का कोई धर्म नहीं होता! पर आतंक की राजनीति और वैचारिकी तो होती है! इसलिए मैं इस प्रवृत्ति को ‘मनुवादी आतंक’ कहता हूं!

पुष्यमित्र

मुझे प्रज्ञा ठाकुर का बयान अच्छा लगा, वह वही कह रही है, जो उसके दिल में है। आज भाजपा के जिन लोगों ने दबाव बनाकर उससे माफी मंगवाई, दिल ही दिल में वे भी यही सोचते हैं कि गांधी हिन्दू विरोधी था और गोडसे ने उसे मार कर ठीक किया। मगर गांधी उनके लिये मजबूरी बन गये हैं चुनावी वैतरणी पार करने की मजबूरी। आज भी सोशल मीडिया पर देखिये, 90 फीसदी संघी और मोदी भक्त अलग अलग तरीके से प्रज्ञा ठाकुर का बचाव करते दिखेंगे। क्योंकि गांधी, सामाजिक न्याय, शांति, अहिंसा, समानता, सहअस्तित्व आदि बातें संघ के कोर्स में है ही नहीं। ये उनकी चुनावी मजबूरी है कि उन्हें इनकी बातें करते रहना पड़ता है। गोविन्दचार्य ने ठीक ही कहा था, भाजपा को हमेशा एक मुखौटे की जरूरत रहती है। जिसका चेहरा समाजवादी होता है और उस मुखौटे के पीछे ये गुंडे लण्ठई करते रहते हैं। ये संघ के मूल सिद्धांत को लागू कराते रहते हैं। जिसका आधार है समाज का विभाजन, तनाव, सवर्ण हिन्दुओं के स्वर्ण युग की स्थापना। इसलिये बेहतर है यह मुखौटा हट जाये। सारी राजनीति खुलेआम हो। गोडसे को पसंद करने वाले खुल कर बोलें कि हां, गोडसे हमारा नायक है।