प्रद्युम्न ने खामोश कर दिया !

प्रद्युम्न ने खामोश कर दिया !

फाइल फोटो- प्रद्युम्न

देवांशु झा

मां जब कहती है कि
उसे ईश्वर ने आंखें ही क्यों दीं
तब मुझे शेक्सपीयर की पंक्तियां याद आती हैं
अंधकार में खुद को धिक्कारती हुई
और तब मैं किसी अंधी दुनिया में
रोशन जिन्दगी का झूठा सच भी देखता हूं
मां जब कहती है कि
तोड़ डालते उसके हाथ पांव
गला क्यों रेत डाला
तब मैं हत्या के घिसेपिटे बाइस्कोप में
सिनेमाई बदलाव के रील पलटता हूं
जब मैं सोचता हूं कि उसी एक क्षण भला
प्रद्युम्न को क्यों जाना था बाथरूम
तब मैं ऐसी ही स्तब्धकारी हत्याओं
के काल में असंभव छेड़छाड़ करता हूं
इससे अधिक तो मैं सोच नहीं पाता
फिर मैं सोचता हूं कि मां का क्या होगा
प्रद्युम्न तो एक द्युति है उसकी आंख और
आत्मा में जलती हुई
एक स्पर्श है हर हवा पर सवार
एक धोखा है किसी कोने से धप्पा करता हुआ
कभी सोता हुआ, कभी जागता, बतियाता
कभी दीदी के बाल खींचता
कभी खाने में हील हुज्जत करता
कभी दोपहर के ढाई बजे का
चीन्हा हुआ पदचाप सा बजता हुआ
और आलिंगनबद्ध तो हर क्षण
वह भला कैसे पार पा सकेगी इन
भुतहा स्वरों, रूप, रस और आभासी स्पर्श से
उसे तो न जाने कितने दिवस मास तक मरना होगा
निरंतर ही मरती रहेगी वह जीवन की हर छटा में
कौन जाने उसे कब मिलेगी मुक्ति इस मृत्यु से
या मिल भी सकेगी कि नहीं, जानता है कौन ।


devanshu jhaदेवांशु झा। झारखंड के देवघर के निवासी। इन दिनों दिल्ली में प्रवास। पिछल दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। कलम के धनी देवांशु झा ने इलेक्ट्रानिक मीडिया में भाषा का अपना ही मुहावरा गढ़ने और उसे प्रयोग में लाने की सतत कोशिश की है। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं

 

 

 

One thought on “प्रद्युम्न ने खामोश कर दिया !

  1. Speechless! Hamesha ki tarah iss Baar bhi jo likha woh sach toh hai hi, sochne par aur bhi zyda mazboor karne wala. Dard ko shabd diye, ek maa ka Dil malool ho gya.

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