फूलन देवी की मां को किस कसूर की सज़ा?

फूलन देवी की मां को किस कसूर की सज़ा?

phoolan maaएक समय में जिस फूलन के नाम से सरकार और शासन का पसीना छूटता था और अधिकारी त्राहि-त्राहि करते थे, उसी दस्यु और पूर्व सांसद फूलन की मां की एक अदना सा राशन कार्ड बनवाने के लिए ग्राम प्रधान और लेखपाल के यहां दौड़ते-दौड़ते सांसें अटकने लगी हैं। 80 वर्ष की मूला देवी 2001 में अपनी 37 वर्ष की बेटी फूलन के मारे जाने से उतनी बुरी तरह से नहीं टूटी थीं जितनी आज पाई-पाई के लिए मोहताज होने के बाद टूट चुकी हैं। सरकार की बेगानगी के कारण वे भिखमंगई की हालत तक पहुंच चुकी हैं।

दस्यु से लेकर संसद तक की बुलंदियों को छूने वाली उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के गांव गुढ़ा का पुरवा की फूलन देवी की मां मूला देवी को दो जून की रोटी नसीब नहीं हो पा रही है। वह एक-एक दाने को मोहताज हो गयी हैं। पिछले तीन सालों से पड़े भयंकर सूखे और पट्टीदार मैयादीन द्वारा आधी से अधिक खेती पर कब्जा करने के कारण उनकी हालत भुखमरी की स्थिति पर पहुंच गयी है। घर में भरपेट अनाज मिले, इसके लिए उन्हें किसी पड़ोसी या बाहर से आकर दान देने वालों पर आश्रित रहना पड़ रहा है। सूखाग्रस्त इलाके में शामिल जालौन को लेकर अखिलेश सरकार के आदेश के बावजूद निराश्रित परिवारों को अधिकारी मरने से बचाने के लिए कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व सांसद फूलन देवी का अपना गांव और उनकी खुद की मां हैं।

यमुना और नून नदियों के बिल्कुल कटान पर बसे गुढ़ा का पुरवा गांव में फूलन देवी का घर आखिरी में है। भयंकर गर्मी और तीन साल से लगातार पड़ते सूखे के कारण गांव से नदी दूर होती जा रही है और गुढ़ा का पुरवा के लोगों का जीवन दिन प्रतिदिन सरकारी आश्रय के भरोसे होता जा रहा है। गांव की हालत देखकर समझा जा सकता है कि बेकारी और सूखे के कारण दो हाथ लिए लोगों पर एक पेट भारी पड़ता जा रहा है और जिनके घर में बाहर से कमाकर दो पैसा भेजने वाले मर्द नहीं हैं, उन घरों में महिलाओं का जीवन भारी मुश्किल में है। उसी मुश्किल की बानगी फूलन की मां और बहन हैं जो एक-एक दिन गिनकर जी रही हैं। उन्हें नहीं मालूम की खाली पेट में मौत कब दस्तक दे जाए।

सांसद फूलन देवी का अंदाज।
सांसद फूलन देवी का अंदाज।

एक समय में जिस फूलन के नाम से सरकार और शासन का पसीना छूट जाया करता था उसी फूलन की मां को दो जून की रोटी नसीब नहीं हो पा रही है। भुखमरी की हालत पर पहुंच चुकी फूलन की मां और उनकी सबसे छोटी बहन रामकली जो आता है उसी के आगे मदद के लिए हाथ फैला देती हैं। मां कहती हैं, ‘एक समय वह भी था जब मेरी बेटी की एक जुबान पर हजारों भूखों के घर अन्न पहुंच जाता था और आज हमारी हालत कैसी दरिद्र की हो गयी है कि हम एक-एक पाई को मोहताज हैं। हमारे पास इतना भी नहीं कि रोज शाम को हम सब्जी और रोटी खा सकें।

फूलन की मां मूला देवी उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं, ‘जब तक फूलन दस्यु थी हमारे घर की तीन-तीन बार कुड़की हुई, हमारे बेटे को पुलिस उठा ले जाती थी। हमसे पुलिस वाले गाली-गलौच करते थे कि पता बताओ नहीं तो तुम्हारे बेटे को गोली मार देंगे। तब भी कोई सुख नहीं मिला, हमारे हिस्से दुख ही आया। बाद में मिर्जापुर से चुनाव लड़ सांसद बनी तो वह वहीं की हो गई। हमारे लिए तब भी कुछ नहीं कर गयी। सोचिए, पूर्व सांसद की मां के घर में एक नल तक नहीं है। बाद में वह मारी गयी, वह जो धन संपत्ति छोड़ गयी थी उसे ककरौला का उम्मैद सिंह ले गया या कोई और हमें क्या पता। हमारे बेटे को एक पाई नहीं मिली।’

फूलन की मां और बहन दोनों ही दो दिन पहले पांच किलो चावल, दस किलो आटा और दाल दे गए कुछ युवाओं का बार-बार नाम लेती हैं। कहती हैं, ‘आज हमलोग बैठकर यहां बात कर पा रहे हैं और आप हमें जिंदा देख रहे हैं, यह उन बच्चों की कृपा है जो हमारी हालत देख खाने का इंतजाम कर गए। बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप बताते हैं, ‘हमने कुछ साथियों से सौ-सौ रुपए चंदा जुटाया, जिससे इन्हें जिंदा रखा जा सके। इनकी आगे की जरूरतों के लिए हमने जिलाधिकारी जालौन से निवेदन किया है, देखिए वह क्या कदम उठाती हैं।’ फूलन की छोटी बहन रामकली की माने तो वह और उनकी मां भुखमरी की कगार पर हैं।

फूलन और रामकली दोनों की शादी दस वर्ष में हो चुकी थी। लेकिन विक्रम डाकू फूलन को उठा ले गया और रामकली अपने ससुराल में रहने लगी। विक्रम फूलन के साथ दुष्कर्म करता रहा। प्रतिशोध में फूलन ने अपना गैंग बनाया, हथियार उठाए, हत्याएं कीं, फिरौती मांगी, बदला लेने को ठानी और उसकी एक नई दुनिया बनीं। पर रामकली एक बहू बनकर रह गयी। बाद में कुछ सालों बाद रामकली के पति ने उन्हें छोड़ दिया। पिछले दसियों साल से रामकली एक परित्यक्ता का जीवन बिता रही हैं। उनका जाॅबकार्ड बना है, पर काम नहीं है। जो काम किया है उसका पैसा सरकार के यहां बकाया है। उनका एक बेटा है जिसका एक्सीडेंट हो गया, फिर पारालिसिस मार गया। अब थोड़ा ठीक है, पर उसके पास भी कोई काम नहीं है। रामकली के पास अपना कोई घर नहीं है, वह मां के दिए एक झोपड़े में रहती हैं। रामकली कहती हैं, ‘कोटेदार राशन कार्ड बनाने के लिए 500 रुपए घूस मांगता है। मैं महीनों से बीमार हूं, चक्कर आता है। मेरे पास इलाज कराने के पैसे नहीं हैं, घूस कहां से दूं। बेटे की बीमारी में 50 हजार कर्ज लिया था, अभी 10 हजार बकाया है, कोई दे दे तो उसकी मैं पूजा करूं।

फूलन देवी पर बनी फिल्म का एक दृश्य।
फूलन देवी पर बनी फिल्म का एक दृश्य।

फूलन के गांव में ज्यादातर निषाद जाति के लोग हैं। फूलन भी इसी जाति से थीं। गांव में निषाद के अलावा हरिजन, नाई और पाल जाति की भी आबादी है। यहां शत-प्रतिशत लोग बीपीएल कार्डधारी है। कुछेक लोगोें को छोड़ दें तो शायद ही किसी का घर ईंट से बना है। और जिनका बना भी है उनका घर आधा ईंट आधा रोड़ा ही है। 1085 वोटर वाले इस गांव में कुल 5 लोग सरकारी नौकरी में हैं तो गांव की बहुतायत आबादी 5वीं पास भी नहीं है। तीन साल से सूखा राहत का पैसा आ रहा है। पर लेखपाल दे नहीं रहा है। करीब तीन महीने पहले लेखपाल ने गांव के सभी 250 घरों से 5 सौ से एक हजार रुपए घूस के रूप में लिये। ग्रामीण भारत सिंह बताते हैं, ‘हमें लगा कि एक हजार देने से अगर सूखे का दस हजार मिल जाए तो एक हजार कोई नुकसान का सौदा नहीं है।’ रामजीवन, शर्मन पाल जैसे दर्जनों लोगों की भी यही कहानी है पर फूलन की मां का यह सौभाग्य नहीं है जो यह सौदा कर सकें। उनके पास तो आटा-चावल खरीदने का पैसा नहीं है।

पूर्व सांसद फूलन देवी की हत्या को 15 साल से उपर हो चुके हैं, पर अभी भी उनकी ख्याति में कोई कमी नहीं आई है। उनकी महिला राॅबिनहुड की छवि लोगों के दिलों में आज भी शेष है। जालौन, झांसी, कानपुर हो या महोबा, चित्रकूट या बांदा पूरे क्षेत्र में फूलन का नाम लेने से लोग एक झटके में बता देते हैं कि कानपुर-झांसी रोड पर कालपी के पास बीहड़ में फूलन का गांव है। पर यह ख्याति उनकी मां और बहन के लिए किसी काम की साबित नहीं हो रही। फूलन की मां कहती हैं, ‘डीएम तो बड़ी बात है, फूलन के नाम का मोल तो अब लेखपाल भी नहीं देता, मजाक जरूर बनता है देखो दस्यु फूलन की मां आ रही हैं।’

(यह रिपोर्ट भास्कर में प्रकाशित हो चुकी है। वहीं से साभार।)


ajay prakashअजय प्रकाश। देवरिया के निवासी। फिलहाल दिल्ली से सटा गाजियाबाद ठिकाना। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा। एक दशक से ज्यादा वक्त से पत्रकारिता में सक्रिय। http://www.janjwar.com नाम से एक बेवसाइट भी चलाते हैं।


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