अवधेश कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार
“होली के त्यौहार में, कालिख असली रोय।।
उस तन काला ना चढ़े , जो मन काला होय”
24 मार्च , रविवार, शाम को 3.00 बजे “सेंट्रल पार्क” सेक्टर-4 वैशाली , गाज़ियाबाद में पेड़ों की छांव तले 54वीं गोष्ठी “होली के सब-रंग हास्य-व्यंग्य के संग ” सम्पन्न हुई । चैती फाग के पारंपरिक साहित्यिक रसों के साथ कविता , दोहे , गीत, गजल और नज़म का दौर देर शाम तक चला। रंगा-रंग होली से हटकर चन्दन रोली के तिलक के साथ आमंत्रित कवियों और प्रबुद्ध श्रोताओं ने होली मिलन समारोह मनाया।
कवियों में वरिष्ठ कवि विष्णु सक्सेना ने कहा “ लाल हरे नीले पीले रंगों पे जंग है / होली का रंग है मस्ती हुड़दंग है ” वहीं अवधेश सिंह ने दोहा पढ़ा -होली के त्यौहार में, कालिख असली रोय।। उस तन काला ना चढ़े , जो मन काला होय।“ इसी क्रम में होली में नायिका की जुदाई की पीड़ा व्यक्त करती नज्म पढ़ी –
“ काश तू आये तो / रंग सारे आ जाएं / गुलाल हवा में घुले /मस्ती सी एक छा जाए।”
वहीं वरिष्ठ कवि कन्हैया लाल खरे ने गीत पढ़ा– “केशर गंध भरी पिचकारी से / भीगत अंग फुहार भली है/ भेटि रहे गल बांह मिले सब / प्यार भरी पुर गांव गली है ।“ इसी क्रम में वरिष्ठ कथाकार कवि सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा ने होली पर गीत पढ़ा “ कर लिया है चेहरा लाल / तुम्हारे गुलाल से / मत कहना ये कि / मुझे सँवरना नहीं आता “। नवोदित श्यामा कान्त प्रसाद ने होली के साथ विरह को समेटते हुए गजल पढ़ी-“ दीवानों को दिल से गिराने से पहले / चिरागे मोहब्बत बुझाने से पहले / इतना बता दो मेरे दिल के रहबर/ जाऊँ कहाँ मौत आने से पहले । गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ वरुण कुमार तिवारी ने निराशा में आशा को संचारित करती कविता शीर्षक “जीवन की बांसुरी “ पढ़ी ।
श्रोताओं में जी एल गुप्ता , राम अवतार गर्ग , अमर सिंह राठोर , नरेंद्र नाथ मिश्र , बृजमोहन गुप्त , कपिल देव नागर, शत्रुघन प्रसाद व सी.एम झा आदि रहे । गोष्ठी की संचालन संयोजक अवधेश सिंह ने किया ।