
11 जून की सुबह मालन भी माली के पास चली गई. मालन पिछले कुछ दिनों से लगातार माली को याद कर रही थी. वो एक गीत गुनगुनाती- माली ने बगीचा लगाया, फूल खिलाए और मालन को इन फूलों के बीच छोड़ कर चला गया. कुछ ऐसा ही आशय था, उस गीत का. अब मालन भी माली के पास है और फूल यहीं हैं. बगिया सूनी है. मालन-माली के बिना फूलों की गति क्या होगी? ये वही ईश्वर जानता है, जिसने प्रेम और जीवन का ये चक्र बनाया है.
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर
आशा-तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर!
माँ भी पापा के पास चली गई. माली-मालन के मिलन के इन पलों में फूल उदास हैं. वो महसूस कर रहे हैं कि माली ने जितने प्यार से मालन को सँभाल रखा था, पूरी कोशिशों के बाद भी वो उतना ख़्याल नहीं रख पाए. मालन के मन की उदासी को भाँपा तो ज़रूर लेकिन उसे दूर नहीं कर पाए. माली ने फूलों के सहारे मालन को छोड़ा था. मालन बस फूलों को निहारती और खुश हो जाती. मालन उस माली की बगिया में ख़ुशियाँ तलाश लेती. मालन बगिया-बगिया घूम आती और फूलों से मन की बात उतना ही कहती, जिससे फूलों को कोई कष्ट ना हो, दुविधा ना हो. वो अपने सृजित फूलों से भी उतनी ही बात करती, जितने से ख़ुशियों की ख़ुशबू बिखरती रहे. सारे कष्ट वो अपने मन में छिपा लेती. अब माली और मालन ऊपर आसमाँ में बातें करेंगे बहुत सारी, और इधर हम करेंगे अपने-अपने ग़मों की तलाश।
घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे !

माँ, हमेशा अपनी स्मृतियों को संजो कर रखती. मुझसे कुछ कुछ साझा करती, इस उम्मीद में कि मैं इसे संजो कर रख पाऊँगा. माँ नहीं जानती, उसने मुझे ज़िंदगी का सबसे मुश्किल काम सौंप दिया. पापा के जाने के बाद माँ की बगिया कई-कई शहरों में बंट गईं. पिछले एक साल में माँ ने तीन शहरों में अपना वक़्त और प्यार दोनों बाँट दिया- बेंगलुरू, ग्रेटर नोएडा और पूर्णिया.
सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी बेंगलुरू की रही- बड़ी बेटी, दामाद, नाती, नातिन, पर-नाती और पर-नातिन वाली बगिया माँ को खूब रास आई. बेंगलुरू में दीदी के साथ उन्होंने काफ़ी वक़्त गुज़ारा. माँ और पापा का सबसे प्यारा फूल तो दीदी ही रही है. बेटियाँ भले उलाहना देती रहें कि हमें दूर क्यों भेजा लेकिन भाइयों से ज़्यादा प्यार हमेशा अपने हिस्से ले जाती हैं. दीदी भी ले गईं. माँ ने अपनी ज़िद और जीने की लालसा की बदौलत थोड़ा वक़्त ग्रेटर नोएडा में मेरे पास भी गुज़ारा. फिर लौट आईं उस बगिया में जिसे माली ने मालन के साथ मिल कर सजाया था, संवारा था, आबाद किया था.
माँ के गीतों का वो बाग़ जहां से माली निकला तो पलट कर नहीं देखा. उसी बगिया से माली का हाथ पकड़ निकल गई मालन अनंत की यात्रा पर. आज पुष्प की अभिलाषा भी बदल गई है, वो कह रहे हैं
हमें तोड़ लेना वन माली
उस पथ पर देना तुम फेंक
जिस पथ के बटोही हमारे पापा
जिस पथ की हमराही हमारी माँ!
-पशुपति शर्मा (13 जून 2025; शब्दांजली)