डॉ. नीलू अग्रवाल
भारत में कई ऐसे सुंदर प्रदेश हैं जहां के सीधे-साधे जीवन को नक्सलवाद का ग्रहण लग गया है। ऐसे ही छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले के नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच के संघर्ष को एक रोचक कथानक के माध्यम से अपने उपन्यास ‘ऑपरेशन बस्तर’ में सुनाया है कमलेश कमल ने। डायरी शैली में लिखा गया यह उपन्यास नक्सलवाद विरोधी ऑपरेशन के बहाने सूदुर प्रांत के जनजीवन, वहां की गरीबी ,बदहाली, विपन्नता जैसी स्थानीय समस्याओं के साथ – साथ वहां की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन आदि से परिचय कराता है।
कमलेश अपने अनुभवों को उड़ेलते हुए सुरक्षाकर्मियों की मार्मिक स्थिति पर गहन प्रकाश डालते हैं। ऑपरेशन प्रहार के दौरान एक तरफ नक्सलियों द्वारा उड़ा दिए जाने का खतरा तो दूसरी तरफ मानवाधिकार वालों की तलवार गर्दन पर लटकी रहने के बावजूद विपरीत परिस्थितियों और सीमित साधनों में भी जंगलों में डटे रहना इनकी नियति है। कड़ी मेहनत करने वाले सिपाहियों को सफलता के बाद फोटो फ्रेम में लाना तो दूर शहीद सिपाही के बिखरे घर को हिम्मत की धूप देना कमांडर सौवीर सिंह के लिये तब और भी कठिन हो जाता है जब पता हो कि उसकी पत्नी को पेंशन या बच्चे को अनुकंपा पर नौकरी के लिए भी कितनी परेशानी झेलनी पड़ेगी।
बुद्धिजीवी और वामपंथी जहां एक ओर नक्सलियों को ‘माटी पुत्र’ बताकर उनकी हौसलाफजाई करते हैं वहीं सरकारी हुक्मरानों की अपने कर्मियों के प्रति असंवेदनशीलता और असहयोगात्मक रवैया उन्हें विचलित करता है । होनहार युवा कैसे नक्सली बनते हैं और फिर माओवादी से कमाओवादी और सुविधावादी बनकर अपने और अपने समाज के विकास के ही दुश्मन किस प्रकार बनते जाते हैं, इसकी पड़ताल लेखक विशु, सुलेखा, हेमा के माध्यम से करता है । वन विभाग की चोरबाजारी को भी लेखक अनदेखा नहीं कर पाता।
अगर आप सुप्तावस्था में भी हैं और आपने यह पुस्तक अपने हाथ में ले ली है तो यह आपकी इंद्रियों को सजग करने में समर्थ है। यहां फैली हरियाली आपकी आंखों को , घास की सुगंध के साथ आम के अचार और बारूद की गंध आपकी नाक को, लाल चीटियों की खट्टी चटनी और मदमस्त सल्फी आपकी जिह्वा को, एंबुश के डर से चौकन्नापन आपके कान को, और अपने पूरे अस्तित्व के साथ प्यार में पड़ी नायिका इला तथा नायक सौवीर का निस्वार्थ प्रेम आपके रोम रोम को रोमांचित करता रहेगा। कथा में कुछ संवाद, पात्र कहते हैं तो कुछ उनकी परिस्थितियां। भाषा – शैली परिवेश के अनुकूल है । दृश्य किसी चलचित्र की तरह आते – जाते हैं । प्रेम और जंग में प्रेम की जीत, सुखी समाज और संपन्न देश की कामना है। अगर आप भी महसूस करना चाहते हैं कि आजादी मनाने की आजादी प्राप्त करना कितना कठिन है तो आपको ‘ऑपरेशन बस्तर’ जरूर पढ़ना चाहिए।
डॉ.नीलू अग्रवाल। नीलू ने हिंदी साहित्य से एमए, एमफिल और पीएचडी की है। पटना यूनिवर्सिटी से ‘हिंदी के स्वातंत्र्योत्तर महिला उपन्यासकारों में मैत्रेयी पुष्पा का योगदान’ विषय पर शोध कार्य।
आभार!