ब्रह्मानंद ठाकुर
आगामी 2 अक्टूबर को बदलाव पाठशाला का एक साल पूरा हो जाएगा। 6 साल से 13 साल तक के 8 बच्चों के साथ 2 अक्टूबर 2017 को पाठशाला शुरू हुई थी । ये वो बच्चे थे जिनका नाम गांव के सरकारी स्कूल में दर्ज तो था लेकिन ज्यादातर बच्चे स्कूल के नाम पर बस खानापूर्ति कर रहे थे। जो स्कूल जाते उनमें भी पढ़ाई लिखाई को लेकर कोई खास अभिरुचि नहीं थी । यही वजह थी कि जब ये बच्चे बदलाव पाठशाला में आये तो छठी कक्षा तक के बच्चों को हिंदी तक ठीक से पढ़ना नहीं आता था, गणित की बात तो छोड़ ही दीजिए । ना बच्चों का पढ़ने में लगाव था और ना ही इनके परिवार को इसमें कोई अभिरुचि । लिहाजा बदलाव पाठशाला की चुनौती दोगुनी हो गई ।
बदलाव पाठशाला का पहला बरस
गांधी जयंती के दिन 8 बच्चों के साथ (बाद में १४ बच्च्चे) रोजाना पाठशाला 2 घंटे तक चलनी शुरू हुई । शुरुआत में इन बच्चों के साथ तालमेल बैठाना थोडा मुश्किल रहा । क्योंकि पहली कक्षा से लेकर छठी, सातवीं कक्षा तक के बच्चों को एक साथ तालीम देना आसान नहीं, लेकिन बदलाव पाठशाला के शिक्षक बिंदेश्वर राय की मेहनत और लगन ने इन बच्चों में ना सिर्फ शिक्षा के प्रति अभिरुचि जगाई बल्कि बच्चों के प्रदर्शन में भी अप्रत्याशित सुधार हुआ ।दो महीने बीतते बीतते रोजाना 2 घंटे की क्लास के अतिरिक्त बच्चे स्वाध्याय भी करने लगे । यानी बच्चे खुद से भी पढ़ने लगे । नतीजा ये हुआ कि जो बच्चे स्कूल नहीं जाते थे वो नियमित रूप से स्कूल जाने लगे और उनके माता-पिता में भी उनको लेकर थोड़ी रूचि दिखने लगी । बच्चों में आए इस बदलाव का असर गांव के आसपास के लोगों पर भी पड़ने लगा । लिहाजा बच्चों की पढ़ाई के लिए लोग मदद के लिए आगे आने लगे । औराई ब्लॉक निवासी किसलय कुमार ने बच्चों के लिए ड्रेस का प्रपोजल दिया और उसके लिए आर्थिक सहयोग भी दिया जिससे बच्चों के लिए बाकायदा यूनिफॉर्म बनवाए गए, जिसे चारु यादव ने डिजाइन किया।
यही नहीं बंदरा के तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी विजय कुमार ठाकुर ने खेल सामग्री और पाठ्यपुस्तक भी उपलब्ध कराया। अमेरिका में कार्यरत बिहारी के मूल निवासी (किशनगंज ) युवा कम्प्यूटर इंजीनियर प्रेम पियूष को जब बदलाव पाठशाला के बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने बदलाव बाल पुस्तकालय के लिए बालोपयोगी किताब मुहैया कराने के लिए आर्थिक मदद भेजी साथ ही एकलव्य प्रकाशन से प्रकाशित चम्पक बाल पत्रिका का दो साल का सब्स्क्रिप्सन भी जमा करा दिया। जो हर महीने बच्चों के लिए आ रही है ।
टीम बदलाव ने बदलाव पुस्तकालय में प्रेम पियूष जी की मां श्रीमती रेणुका वाला घोष के नाम से एक अलगस समृद्ध पुस्तकालय खंड बनाया । मुजफ्फरपुर के कतिपय साहित्यकारों ने भी इस बाल पुस्तकालय में पुस्तकें देकर उसे समृद्ध बनाया है । डॉक्टर संजय पंकज और डाक्टर वीरेन नन्दा का तो विशेष सहयोग प्राप्त है ही। स्थानीय रतबारा गांव के युवा समाज सेवी डॉक्टर श्याम किशोर जी पाठशाला में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में जब जब आए , बच्चों के लिए कलम-कापी जरूर लाए। प्रभात खबर के तत्कालीन स्थानीय सम्पादक और वर्तमान में जी बिहार झारखंड न्यूज चैनेल के राजनीतिक सम्पादक शैलेन्द्र जी जब तक मुजफ्फरपुर में प्रभात खबर में कार्यरत रहे, अपनी उपस्थिति से हमें उत्साहित करते रहे। आज भी वो फोन कर पाठशाला का हालचाल लेते रहते हैं ।
इस दौरान टीम बदलाव आभारी है ढाई आखर फाउंडेशन की जिसने बच्चों में कंप्यूटर ज्ञान और आधुनिक शिक्षा की सोच विकसित करने के लिए पाठशाला के लिए एक लैपटॉप मुहैया कराई । जिससे निजी स्कूलों की तरह गांव के इन बच्चों को भी कंप्यूटर की शिक्षा से रूबरू कराया जा रहा है । ऐसे में आपको ये भी जानना जरूरी है कि जो बच्चे पाठशाला में आते हैं उनमें कितना विकास हुआ । तो हम अलग अलग रिपोर्ट के जरिए आपको हर बच्चे के बारे में अगले 2 अक्टूबर तक बताते रहेंगे । लेकिन शुरूआत उस छात्र से जो एक साल पहले सबसे लापरवाह माना जाता है ।
नाम भोला कुमार । उम्र आठ साल । दो भाई-बहनों में सबसे छोटा । बहन तन्नु भी बदलाव पाठशाला की छात्रा है । दोनों गांव के सरकारी स्कूल में नामांकित हैं। तन्नु छठी और भोला दूसरी कक्षा में है। पिता सितेश कुमार ठाकुर निम्न मध्यम वर्गीय किसान हैं। बचपन में ही किसी बीमारी की वजह से आंख की रोशनी कम हो गई । आर्थिक अभाव के कारण बेहतर इलाज नहीं करा पाए। खेती-किसानी ही जीविका का मुख्य साधन है। जिंदगी की जद्दोजहद में बच्चों की शिक्षा के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं रही। पत्नी गृहणी हैं, रात-दिन अपने काम में व्यस्त रहती हैं । जिसका असर बच्चों पर भी पड़ा । भोला दिनभर हम उम्र बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त रहता। मां के दबाव में झोला लेटर घर से जब स्कूल के लिए चलता तो बगल के घर में बैग रख कर दूसरे लडकों के साथ बगीचे में खेलने चला जाता। विद्यालय का समय समाप्त होते ही फिर बैग टांगे घर लौट जाता । मां-बाप समझते बेटा स्कूल गया है मगर बेटे को स्कूल से मतलब ही नहीं रहा । 2 अक्टूबर 2017 को जब बदलाव पाठशाला की शुरुआत हुई तो उन आठ बच्चों में भोला भी शामिल था। आदत के मुताबिक अक्सर पाठशाला से गायब हो जाता । पूछने पर उसकी बहन तन्नु बताती कि पता नहीं कहां चला गया ? उधर भोला बगीचे में खेलने में व्यस्त रहता। कभी कोई उसका पता बता देता तो दूसरे लडके को भेज पकड़ कर मंगाया जाता। रुआंसा भोला कक्षा में बैठ टुकुर-टुकुर ताकता।
उसकी इस दशा पर मुझे दया आती और याद आ जाता अपना बचपन। एक बार मैंने भोला के पिता को डांटा। उसे उसका फर्ज समझाया। समय बीतता रहा भोला में धीरे धीरे परिवर्तन आने लगा। वह अब प्रतिदिन पाठशाला आने लगा है। नियत समय से आधा घंटा पहले पहुंच जाता है। बैठ कर कुछ-कुछ लिखता रहता है । पिछले दिन मेरे मन में विचार आया, बदलाव पाठशाला के एक साल पूरा होने पर पाठशाला के बच्चों से कविता पाठ कराया जाय। बस मैंने बच्चों के मानसिक स्तर का खयाल रखते हुए, सबों को एक-एक कविता उपलब्ध करा दिया। बच्चे याद करने लगे। मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मुझे बताया गया कि भोला ने उसी दिन वह कविता याद कर लिया, जिस दिन उसे वह कविता उपलब्ध कराई गई थी। मैंने आज भोला को पुकारा और वह कविता सुनाने को कहा। उसने एक सांस में कविता सुना दी ।
टूट गया जब डाल से पत्ता
उडकर जा पहुंचा कलकत्ता
भीड़ देखकर वह घबराया
धूल, धुएं से सिर चकराया
शोर सुना तो फट गये कान
वापस फिर बगिया में आया।
बदलाव पाठशाला से जुड़ना मेरे लिए गर्व का विषय रहा है। मैं इसके बेहतर भविष्य की कामना करते हुए श्री ब्रह्मानंद जी के इस काम के लिए सादर अभिवादन करता हूं जो हम सभी के प्रेरणा स्त्रोत हैं।